निमिष तिवारी, बागबाहरा. जनवरी 2015 में बागबाहरा नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद के लिये कांग्रेस की बसंती बघेल चुनकर आईं. वे अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा के पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष रहे शंकर तांडी को करीब 2285 वोटों से हराकर अध्यक्ष बनीं. बसंती बघेल को जरा भी भनक नहीं था कि उनके कार्यकाल के पूरा होने के पहले ही उन्हें फिर से चुनाव का सामना करना पड़ेगा. कार्यकाल के प्रारंभ से ही 5 कांग्रेस, 5 भाजपा और 5 निर्दलीय पार्षदों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाने के कारण अध्यक्ष की परेशानी शुरू हो चुकी थीं. निर्दलीय पार्षद बलराम ठाकुर का उपाध्यक्ष बनना और फिर भाजपा में चले जाना बसंती बघेल के लिये राहों में कांटे बिछने की तरह साबित हुआ. तीन बार पीआईसी में फेरबदल के बाद भी अध्यक्ष की परेशानी कम नहीं हुई.

दरअसल 9 पार्षदों ने अध्यक्ष पर मनमानी करने और अध्यक्ष पति के द्वारा पालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हुए कलेक्टर को सामूहिक इस्तीफा सौंपा है. मगर इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया. कुछ स्थानीय नेताओं की समझाइस के बाद पार्षदों और अध्यक्ष के बीच दिखावटी समझौता तो हो गया, लेकिन अंदर ही अंदर कड़वाहट बढ़ती गई. 26 जून 2018 को 15 में से 14 पार्षदों ने कलेक्टर को “राईट टू रिकॉल” का आवेदन दिया. आवेदन में पार्षदों ने आरोप लगाया था कि अध्यक्ष के पति योगेश बघेल द्वारा पार्षदों से पालिका कर्मचारियों से और पालिका के अधिकारियों से दुर्व्यवहार किया जाता है और पालिका के कार्यो में अनावश्यक हस्तक्षेप किया जाता है. गौर करने की बात यह है कि कांग्रेस की अध्यक्ष के इस विरोध में कांग्रेस के ही 4 पार्षद भी शामिल थे.

27 जून को जांच अधिकारी ने आवेदन में किये गये पार्षदों का हस्ताक्षर मिलान किया और उसे सही पाया. 29 जून को कलेक्टर ने 14 पार्षदों का अलग-अलग बयान लिया और प्रकरण राज्य शासन को भेज दिया. राज्य शासन ने राज्य निर्वाचन आयोग को प्रकरण भेजा और अंततः राज्य निर्वाचन आयोग ने आवश्यक प्रक्रियाओं को पूरा करते हुए 14 अक्टूबर को मतदान और 17 अक्टूबर को मतगणना की तिथि घोषित कर दी है.

अध्यक्ष और पार्षदों के बीच की इस आपसी खींचतान ने जहाँ एक तरफ विकास कार्यों की गति को धीमा कर दिया. वहीं यहाँ के विवाद को देखते हुए यहां का प्रभार लेने से सीएमओ घबराने लगे हैं. .अब तक पदस्थापना और प्रभार सहित 25 सीएमओ इस पालिका की कुर्सी पर बैठे और उसे जल्दी जल्दी छोड़कर रवाना हो चुके हैं.

जनता के बीच हो रही चर्चा के अनुसार अध्यक्ष और पार्षदों के बीच कमीशनखोरी की बंदरबांट के ही कारण यह “कुर्सी दौड़ की प्रतियोगिता” आयोजित हो रही है. चुनाव आयोग ने प्रतियोगिता शुरू करने सीटी बजा दी है. अब अध्यक्ष जीते या पार्षद, पर जनता को मजबूरन दौड़ना पड़ रहा है. अध्यक्ष को “वापस बुलाने के इस अधिकार” के तहत यदि भरी कुर्सी जीतती है तो अध्यक्ष तो फिर से अपनी कुर्सी पर विराजेंगी, मगर पार्षद तो वहीं रहेंगे और उनके विरोध का स्वर भी वही होगा. अगर खाली कुर्सी जीतती है तो पालिका की व्यवस्था प्रशासन के हाथों पर होगी. अगर जनता की माने तो कुल मिलाकर उसे अपनी समस्याओं के निराकारण के लिये एकबार फिर जनप्रतिनिधियों और प्रशासन का मुंह ताकना होगा.

अब देखना यह है कि “खाली कुर्सी और भरी कुर्सी” के बीच होने वाले इस चुनाव में किसकी जीत होती है. बहरहाल शोर शराबे के साथ प्रचार पर रोक लग गई है. डोर टू डोर संपर्क हो रहा है और 14 अक्टूबर को बागबाहरा की जनता के मत ईव्हीएम में कैद होंगे.