कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। हाईकोर्ट जज की कार छीनने के मामले में न्यायालय ने दो छात्रों को जमानत देने से इनकार कर दिया है। इसके बाद आज से ABVP प्रदेश व्यापी आंदोलन करेगी। यह आंदोलन जेल में बंद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के छात्रों के समर्थन में किया जाएगा। पूरे प्रदेश भर में उन्हें आंदोलन कर रिहा करने की मांग की जाएगी। 

ABVP छात्र नेताओं ने दोनों साथियों की जमानत के लिए एक बार फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हाईकोर्ट में दायर जमानत याचिका पर सोमवार के बाद सुनवाई होगी। जेल में दोनो की तबियत बिगड़ने पर उन्हें जयारोग्य अस्पताल में भर्ती कराया गया है। एक छात्र को वायरल फीवर औऱ दूसरे का यूरिन इंफेक्शन का इलाज चल रहा है। ABVP आज आज सांकेतिक प्रदेश व्यापी आंदोलन के बाद कल से प्रदेश भर में हल्ला बोल आंदोलन करेगी।

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 कोर्ट ने कहा- मदद विनम्रता से मांगी जाती है बलपूर्वक नहीं 

जेल में बंद ABVP ग्वालियर सचिव हिमांशु श्रोत्रिय और उप सचिव सुकृत शर्मा के मामले में सुनवाई की गई थी। इस दौरान यह दलील दी गई कि दोनों ने कुलपति की जान बचाने के लिए कार ली थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि किसी से मदद विनम्रता पूर्वक मांगी जाती है न की बलपूर्वक। यह कहते हुए न्यायालय ने दोनों की जमानत याचिका खारिज कर दी। 

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क्या है पूरा मामला

दरअसल शिवपुरी पीके यूनिवर्सिटी के 68 साल के पूर्व वाइस चांसलर रणजीत सिंह यादव दिल्ली से झांसी जा रहे थे। तभी अचानक ट्रेन में उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। उसी ट्रेन में ABVP संगठन से जुड़े हुए कुछ छात्र भी सफर कर रहे थे। उनकी तबीयत बिगड़ती देख छात्रों ने उन्हें ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर उतार दिया और इलाज के लिए रेलवे स्टेशन से बाहर ले आए। स्टेशन के बाहर एक हाईकोर्ट के जज की गाड़ी खड़ी थी। गाड़ी के ड्राइवर से उन्होंने जबरदस्ती गाड़ी लेकर वीसी को जयारोग्य अस्पतला पहुंचाया। लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

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इसके बाद दोनों छात्र हिमांशु श्रोत्रिय और सुकृत शर्मा के खिलाफ मप्र डकैती और व्यापार प्रभाव क्षेत्र अधिनियम (एमपीडीवीपीके अधिनियम), डकैती विरोधी कानून के तहत आरोप लगाया गया था। ABVP पदाधिकारियों ने कहा कि उन्होंने एक व्यक्ति की जान बचाने के लिए गाड़ी ली थी। कार्यकर्ताओं ने स्टेशन में रेलवे अधिकारियों और पुलिस कर्मियों को इसकी सूचना दी थी मगर किसी ने कोई मदद नहीं की। जिसके बाद उन्हें मजबूरन स्टेशन के बाहर खड़ी गाड़ी ले जानी पड़ी। 

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