कुमार इंदर, जबलपुर।  मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को कहा कि राज्य शासन अपनी गलती को ठीक करने के लिए पुनर्विचार याचिका का लाभ नहीं ले सकती। जस्टिस विवेक अग्रवाल की सिंगल बैच ने यह टिप्पणी के साथ राज्य सरकार की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। 

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मामला आरक्षक से प्रधान आरक्षक के उच्च पद पर प्रभार देने से जुड़ा हुआ है,  मंडला निवासी 35वी बटालियन में तैनात आरक्षक रामदीन सेन, विनोद शर्मा और भगवान दिन को भी अन्य आरक्षकों के साथ 15 दिसंबर 2021 को प्रधान आरक्षक के पद पर प्रभार दिया गया था।  लेकिन महज एक महीने के बाद ही इन तीन आरक्षकों का प्रभार वापस ले लिया गया। तीनों आरक्षक की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने पक्ष रखते हुए बताया कि, मध्य प्रदेश शासन द्वारा मध्य प्रदेश पुलिस मैनुअल में संशोधन कर नियमित पदोन्नति की जगह पुलिस कर्मचारियों को उच्च पद पर प्रभार देने का प्रावधान किया गया था।  

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कोर्ट को बताया गया कि शासन ने 14 अक्टूबर 2021 को केवल तीन आरक्षको की पदोन्नति का आदेश वापस ले लिया, पुलिस महकमे ने प्रमोशन वापस लेने के पीछे की वजह बताते हुए कहा कि, जिन तीन जवानों का प्रमोशन वापस लिया गया है उन्होंने संविलियान के वक्त 10 साल पूरे नहीं किए हैं लिहाजा इनका पदभार वापस दिया जाता है।

इसके पहले भी कोर्ट कर चुका है याचिका खारिज 

इससे पहले भी इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी तब हाई कोर्ट ने  पद को वापस लेने का आदेश निरस्त कर दिया था लेकिन हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ राज शासन ने फिर से अपील की और यह बताया कि भूल वो आदेश जारी कर दिया गया था हाई कोर्ट ने अपील निरस्त कर दी इसके बाद शासन ने पुनर्विचार याचिका दायर की वह भी हाईकोर्ट ने निरस्त कर दी।

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