रायपुर। राजधानी में सरकार की नाक के नीचे निजी हॉस्पिटल मनमानी कर रहे हैं और सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं पर अपनी पीठ थपथपाने में लगी हुई है. वहीं 108 एंबुलेंस के कर्मचारियों की भी लापरवाही सामने आई है.

पैसों के लिए अस्पताल ने शव को बनाया बंधक

राजधानी के निजी नारायणा अस्पताल ने महिला के शव को परिजनों को देने से इनकार कर दिया.

दरअसल दुर्ग के पाटन के पास के एक गांव में रहने वाले गोलू धीवर के छोटे भाई की पत्नी को प्रसव पीड़ा हुई. उन्होंने 108 एंबुलेंस को बुलाया. 108 एंबुलेंस ने इन्हें रायपुर के सरकारी अस्पताल मेकाहारा में छोड़ने के बदले प्राइवेट हॉस्पिटल नारायणा में छोड़ दिया. जबकि ये परिवार बेहद गरीब है.

असंवेदनशील अस्पताल प्रबंधन

देवेंद्र नगर में स्थित नारायणा हॉस्पिटल में गर्भवती महिला को भर्ती कराया गया. इलाज के लिए परिवार से 25 हजार रुपए लिए गए. हॉस्पिटल ने गर्भवती महिला का ऑपरेशन किया, लेकिन बच्चे की मौत प्रसव के दौरान हो गई. इसके बाद हॉस्पिटल ने कहा कि मां की जान बच जाएगी, आप और पैसे ले आइए. इसके बाद गरीब परिजनों ने घर की बहू की जान बचाने के लिए किसी तरह और 55 हजार रुपए का इंतजाम किया. दो किश्तों में कुल 80 हजार रुपए दिए, बावजूद इसके मां की जान भी नहीं बचाई जा सकी.

इधर मां और बच्चे दोनों की जान जाने से परिवार खुद ही सदमे में था, ऊपर से नारायणा अस्पताल ने शव देने से इनकार कर दिया. हॉस्पिटल ने शव को देने के लिए और 57 हजार 800 रुपए की डिमांड की. जैसे-तैसे पीड़ित परिवार ने 12 हजार 500 रुपए अस्पताल में जमा कराए, फिर भी अस्पताल ने शव नहीं दिया.

मीडिया के हस्तक्षेप के बाद दिया शव

खबर मिलने पर मीडिया नारायणा अस्पताल पहुंच गई. तब जाकर अस्पताल ने शव को परिजनों को सुपुर्द किया.

परिजनों ने लगाई न्याय की गुहार

मृत महिला के जेठ गोलू धीवर ने कहा कि उनका परिवार बेहद गरीब है, इसके बावजूद 108 एंबुलेंस ने उन्हें जिला अस्पताल के बजाए निजी अस्पताल पहुंचाया. उन्होंने ये भी कहा कि उनके परिवार ने किसी तरह कुल 92 हजार रुपए का इंतजाम किया. उन्होंने कहा कि अस्पताल का रवैया बेहद असंवेदनशील था. हालांकि उन्होंने मीडिया का धन्यवाद दिया, जिसकी वजह से उन्हें उनकी बहू का शव मिल सका.