आज युग विज्ञान और तकनीक का है. हम सभी चीजों का साइंटिफिक कारण तलाशते हैं, ऐसे में दिमांग में एक यह बात भी आती है कि आखिर जौहरी की आंखों में ऐसा क्या होता है? इसे भी पढ़ें : Global Hunger Index : भारत में और बढ़ी भूखमरी, पाकिस्तान-श्रीलंका से भी पिछड़ा, 121 देशों की सूची में 107वें पायदान पर…

हीरे की क़ीमत उसकी क्लैरिटी, कलर और कट से तय होती है. यह काम मशीन से बेहतर इंसान की आंखें करती हैं. हीरा कैसा है, यह उसके कट से पता चलता है. उसमें कितनी चमक है और वह कितनी रोशनी बिखेरता है, यह उसकी क्लैरिटी से जुड़ा है. यह हीरे को तराशने वाले के शिल्प कौशल पर भी निर्भर करता है.

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जौहरी की आंख निर्धारण करती है कीमत का

जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ़ अमरीका के चीफ़ क्वालिटी अफसर जॉन किंग एक पेशेवर डायमंड और जेमस्टोन ग्रेडर हैं. हीरों की ग्रेडिंग करते समय-समय वह कई ख़ूबियों को देखते हैं. हीरे और दूसरे रत्न में क्लैरिटी, कलर, कट और कैरेट के पैमाने पर आंके जाते हैं. किंग कहते हैं, “मेरी आंखों की रोशनी सामान्य है. जो दूसरों से अलग है वह प्रशिक्षण और लगातार निरीक्षण से आया है.” वह गहराई और बारीकी से बारीक अंतर को देखने की कोशिश करते हैं.

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मशीन से कारगर आंखें

रत्नों के रंग का आंकलन करने के लिए हर काम आंख से किया जाता है. रत्न के रंग की पहचान इंसान ही करते हैं, लेकिन आप क्या तलाश रहे हैं यह वास्तव में उस रत्न पर निर्भर करता है. इस लिए अंत में यही कहा जा सकता है आखों मे कुछ खास नही होता है, बस सिर्फ अनुभव होता है. आप एक ही वस्तु काफी समय तक जब बार-बार देखते है तो आपकी आंख उस पर सेट हो जाती है. इसलिये हीरे के ढेर में अगर कांच का टुकड़ा आ जाये तो पहचान करने वाली की आंख उसको तुरंत पकड़ लेती है.

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