रायपुर. संविलियन पर तमाम कोशिशों के बाद शिक्षाकर्मियों के संविलियन पर बात नहीं बनी. शिक्षाकर्मियों के संविलियन को लेकर विगत दिनों हुए राजधानी में बड़े आंदोलन से आप वाकिफ तो होंगे ही. उस समय ऐसा लग रहा था कि मानो सरकार मजबूर होकर दंडवत झुक जाएगी. आंदोलन से उत्साही शिक्षाकर्मियों को लगने लगा था कि इस बार 2012 के 38 दिन की आंदोलन की तरह निराश नहीं होना पड़ेगा. विगत वर्ष 2012 में आंदोलन का स्वरुप देखकर वाकई सरकार घबराती नजर आ रही थी. मगर संविलियन पर बात बिल्कुल नहीं बन पाई. अचानक रातोंरात आश्चर्यजनक तरीके से आंदोलन वापस ले लिया गया. मुख्यमंत्री ने संविलियन को छोड़कर शिक्षाकर्मियों की अन्य आठ मांगों को पूरा करने कमेटी गठित भी कर दी.

चूँकि अब चुनावी साल के मद्देनजर शिक्षाकर्मियों का आंदोलन फिर मुखर होता नजर आ रहा है. फिलहाल ये आंदोलन आपको अभी धरातल पर नहीं दिख रहे होंगे. मगर आपको बता दें कि संविलियन नहीं मिलने से नाराज शिक्षक अब सोशल मीडिया में एक ‘कर शपथ’ का कैम्पेन चला रहे हैं. लोग इस कैम्पेन का लगातार समर्थन कर रहे हैं. संविलियन नहीं तो सत्ता परिवर्तन की सोशल मीडिया में अब नाद गूंजने लगी है. उनकी इस मुहिम को देखकर आपको हरिवंश राय बच्चन की कर शपथ- अग्नि पथ की अंतर्ध्वनि जरुर सुनाई देगी. हाँ ! ये नाद कब सत्ता परिवर्तन का यथार्थ संघोष बन जाये ये तो फ़िलहाल हम नहीं कह सकते. मगर अब आप शिक्षाकर्मियों के सोशल कैम्पेन की थोड़ी और जानकारी समझ लीजिये.

दरअसल संविलियन नहीं होने से खफा शिक्षाकर्मियों ने व्हाट्सएप में ‘कर शपथ’ नाम से मुखपत्र तैयार किया है. जिसमें उन्होंने क्या कहा है आप भी हुबहू पढ़ लीजिये. आपको पूरा मामला बिन बताये समझ आ जायेगा. ? *कर शपथ*?.मैं भारत माता को साक्षी मानकर आज 25 जनवरी 2018 *राष्ट्रीय मतदाता दिवस* के दिन *शपथ* लेता हूं कि मैं *आगामी विधानसभा चुनाव* में मताधिकार का प्रयोग अपने व अपने परिवार सहित करूँगा/करूंगी। ??????

अपना नाम लिख कर आगे बढ़ाए..
*मैं शिक्षाकर्मी हूं संविलियन बिना परेशान*
संविलियन नही मिला मुझे
तो मेरा मत लाएगा परिवर्तन का सैलाब,
*अब घोषणा नही अमल चाहिए,शिक्षाकर्मी नही शिक्षक पद चाहिए*
अबकी बार मेरा वोट संविलियन-शासकीयकरण को

इस मैसेज में हज़ारों शिक्षाकर्मी अपने दस्तख्वत कर चुके हैं. हालाँकि इस सूची में नाम लगातार बढ़ते जा रहे है. चूंकि मध्यप्रदेश में शिक्षाकर्मियों के संविलियन की घोषणा सरकार ने कर दी है. छत्तीसगढ़ में बीजेपी लीडरशिप के साथ कांग्रेस भी इसी पक्ष में है लिहाज़ा इस दबाव को चुनावी साल में बढ़ाने की कवायद शिक्षाकर्मियों की है.