चंद्रकांत देवांगन,भिलाई. मानवता या समाज के हित में कोई अच्छा कार्य करना हो तो बस मन में एक चाहत होनी चाहिए और फिर आपका एक छोटा सा प्रयास समाज को बदलने की दिशा में आगे बढ़ता चला जाता है. हम इसीलिए यह बात कह रहे है कि भिलाई के रहने वाले व्यवसायियों ने एक ऐसा कदम उठाया है,जो आम तौर पर सब नहीं कर पाते.

इन व्यावसायियों ने अपने छुट्टी वाले दिन घर में बिताने की बजाये. लोगों के हित में मम्मा की रसोई खोलकर लोगों का पेट भरने की ठानी है और आज उनका यह कारवां आगे बढ़ता ही चला जा रहा है. वैसे तो सरकार तमाम योजनाएं चला कर समाज की जरुरतों को पूरा करने की कोशिश करती है. इसके बावजूद कभी-कभी जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है. ऐसे में कुछ लोग खुद ही लोगों की भलाई का बीड़ा उठा लेते हैं.

5 रुपए में मिलता है लजीज भोजन…

दरअसल भिलाई के आकाश गंगा, सुपेला स्थित कुछ व्यवसायियों ने समाज हित में कुछ करने की सोच के साथ मम्मा की रसोई की शुरुआत की है. जहां महज 5 रूपये में लोगों को स्वादिष्ट भोजन कराया जाता है .इस रसोई में रविवार के अपने छुट्टी वाले दिन व्यवसायी दोपहर में लोगों को भोजन कराते हैं. जहां गरीब से लेकर माध्यमवर्ग सब तरह के लोग इस रसोई के खाने का लुफ्त उठाते हैं.

मजदूरों के लिए ये…

आसपास काम करने वाले मजदूरों के लिए ये रसोई तो सचमुच मां की रसोई की तरह है. जहां उन्हें दोपहर में मात्र 5 रूपये में स्वादिष्ट खाना मिल जाता है. वहीं आने जाने वाले राहगीर भी अपना पेट इसी रसोई से भरते है. यहां खाना खाने वाले अभिनंदन और संजू कुमार इस रसोई की सराहना करते हए कहते हैं कि मानवता के लिए किये जाने वाला यह काम काबिले तारीफ है. वहीं इतने सस्ते दर पर स्वादिष्ट भोजन से घर में मिलने वाले खाने की कमी भी पूरी हो जाती है.

जन्मदिन से निकला आईडिया…

इस सराहनीय कार्य को करने वाले मम्मा की रसोई के सदस्य रुबिंदर बावेजा बताते हैं कि दोस्तों के साथ मिलकर समाज हित में कुछ करने की बात अक्सर होती रहती थी. लेकिन बात आगे बढ़ नहीं पाती थीं. एक दिन इसके एक सदस्य ने अपना जन्मदिन लोगों को फ्री में खाना खिलाने का निर्णय लेते हुए अपने दोस्तों के साथ इस काम को शुरू किया. फिर यहीं से निकला मम्मा की रसोई का आइडिया.

एक बार इसकी शुरुआत होने के बाद आसपास के व्यवसायियों ने इसे सहयोग देते हुए हर रविवार के दिन करने का प्लान बनाया और अब मम्मा की रसोई में हर रविवार स्वादिष्ट खाने का तड़का लगता है. जिससे कई छोटे और गरीब लोगों का पेट भी भरता है. इतना ही नहीं अब तो इस रसोई को चलाने वालो के घरवाले भी अब अपने परिजनों के नेक काम में हाथ बटाने लगे हैं. कई बार तो यहां कि रेसिपी उनके घर से ही बन की आती है.

लोगों से करते हैं अपील…

हमने रसोई के सदस्य रूबिंदर से पूछा कि वे इन रेसीपी में लगने वाले समानों की व्यवस्था कैसे करते हैं, क्योंकि आम तौपर 5 रूपए में लोगों को भर पेट खाना खिलाना आसान नहीं होता. उन्होंने बताया कि हम लोगों से अपील भी करते हैं कि वे अपने इस्तेमाल किए हुए कपड़े यहां छोड़ दिया करें. जिससे हम इस रसोई को चलाने के लिए कुछ पैसों की व्यवस्था कर लेते हैं.बावेजा कहते हैं कि  छुट्टी के दिन घर में बिताकर वो आम लोगों की तरह तो जी सकते हैं. पर समाज के प्रति अपना दायित्व निभा कर उन्हें भी बड़ा सुकून मिलता है .

अगर आप भी रविवार के दिन दोपहर में दुर्ग या भिलाई के रस्ते अपना सफ़र तय कर रहे हो और जोरों की भूख सता रही हो तो आपको महंगे रेस्टोरेंट या होटल में जाने की ज़रूरत नहीं केवल 5 रूपये खर्च करने पर आपको मम्मा की रसोई के स्वादिष्ट खाने का लुफ्त आप भी उठा सकते हैं. जिससे आपको घर जैसा खाना भी मिलेगा और जेब में लगने वाली भारी रकम की चोट से भी छुटकारा मिल जायेगा.