
राम कुमार यादव, अंबिकापुर। सरगुजा के लखनपुर वन परिक्षेत्र में विभाग के अफसरों की कोताही के कारण धड़ल्ले से हरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जारी है. बेखबर विभाग वन माफिया, तस्कर और अतिक्रमणकारियों पर शिकंजा कसने में नाकाम साबित हो रहा है. हाईटेक मशीनों से इमारती और बेशकीमती पेड़ों की कटाई हो रही है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि वन अमला तस्कर और अतिक्रमणकारियों पर चुप्पी साधे बैठे हैं. कार्रवाई महज कागजों तक सीमित है, जबकि जंगलों में पेड़ों की ठूंठों की अंबार है.
दरअसल, सरगुजा के लखनपुर वन परिक्षेत्र में जंगल के सैकड़ों पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से परेशान स्थानीय लोगों ने वन परिक्षेत्र अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप लगाया है. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि जंगल के बीच में तस्कर बेखौफ होकर बेशकीमती लकड़ियों को सिल्ली में बदल रहे हैं. जंगल से ही इमारती लकड़ियों को आकार देकर पार कर दे रहे हैं, लेकिन वन विभाग मौन बैठा हुआ है.
ग्रामीणों के मुताबिक लखनपुर वन परिक्षेत्र रेमहला , खिरहिर, कुंवरपुर , अलगा बेंदोपानी, आमा पानी,तिरकेला ,सुगाआमा, चांदों घंटा, डूंगु सहित अन्य जंगलों में अतिक्रमणकारी और तस्कर बड़े-पैमाने पर बेशकीमती पेड़ों की कटाई कर रहे हैं. लकड़ी की तस्करी की जा रही है. साथ ही वन भूमि पर पेड़ों की कटाई कर कब्जे का खेल भी जारी है.
स्थानीय लोगों ने कहा कि वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी मूक दर्शक बने हुए हैं. वन विभाग के द्वारा प्रत्येक वर्ष वनों की सुरक्षा और संरक्षण की योजना बनाई जाती है, लेकिन या सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गया है. वहीं पेड़ों की कटाई से वन्य प्राणियों के जीवन पर भी संकट उत्पन्न हो गया है.
लखनपुर वन परीक्षेत्र अंतर्गत ग्राम रेमहला में भी पेड़ों की कटाई जारी है. अतिक्रमणकारी कई एकड़ वन भूमि में सैकड़ों इमारती पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करते हुए जंगल के बीच गोला और सिल्ली बना रहे हैं. वन विभाग इससे बेखबर है. कहीं ना कहीं जिस तरीके से जंगल के बीचोंबीच पेड़ की कटाई कर गोला और सिल्ली का तैयार किया जा रहा. ऐसा प्रतीत होता है कि विभागीय कर्मचारी और अतिक्रमण कारी सांठगांठ कर इस पूरे खेल को अंजाम दे रहे हैं.
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वहीं दूसरा मामला ग्राम जुनाडीह सागौन जंगल का है. यह जंगल लखनपुर वन क्षेत्र कार्यालय से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर है. जहां लकड़ी तस्कर रात के अंधेरे में सागौन प्लांटेशन में आधुनिक मशीन से पेड़ों की कटाई कर लकड़ी की तस्करी कर रहे हैं. स्थानीय लोगों ने वन विभाग को इसकी जानकारी दी, लेकिन वन विभाग की कार्रवाई सिर्फ और सिर्फ खानापूर्ति रही. अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब बड़े-बड़े जंगल ठूठ में तब्दील हो जाएंगे.
पेड़ कटाई के नुकसान
पहाड़ी ढलानों पर जंगलों को काटना मैदानों की ओर नदियों के प्रवाह को रोकता है, जिसका पानी की दक्षता पर असर पड़ता है. पानी तेजी से नीचे की ओर नहीं आ पाता. वनों की कटाई की वजह से भूमि का क्षरण होता है, क्योंकि वृक्ष पहाड़ियों की सतह को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
तेजी से बढ़ती बारिश के पानी में प्राकृतिक बाधाएं पैदा करते हैं. नतीजतन नदियों का जल स्तर अचानक बढ़ जाता है, जिससे बाढ़ आती है. वनों की कटाई के साथ जमीन के ऊपर उपजाऊ मिट्टी बारिश के पानी से उन जगहों पर बह जाती है जहां इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
वायु प्रदूषण: वनों की कटाई के परिणाम बहुत गंभीर हैं. इसका सबसे बड़ा नुकसान वायु प्रदूषण के रूप में देखने को मिलता है. जहां पेड़ों की कमी होती है. वहां हवा प्रदूषित हो जाती है. शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या सबसे ज्यादा है. शहरों में लोग कई बीमारियों से पीड़ित हैं विशेष रूप से अस्थमा जैसी सांस लेने की समस्याओं से.
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