मुंबई. आमतौर पर सेलेब्रिटीज की लैविश लाइफ स्टाइल देखकर हम यही सोचते हैं कि, वाह क्या लाइफ है. पर क्या हम कभी यह गौर करते हैं कि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने कितना संघर्ष किया होगा. हम आपको बॉलीवुड की एक ऐसी युवा एक्ट्रेस के संघर्ष के दिनों से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जिसने आम मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर सिनेमा की चमकीली दुनिया में अपने लिए जगह बनाई. पढ़िए ‘दंगल’ में गीता फोगाट का किरदार निभा चुकीं एक्ट्रेस फातिमा सना शेख के संघर्ष के दिनों की वो तीन कहानियां जो अभी तक किसी ने कभी सुनी नहीं होंगी. ये इंटरव्यू उन्होंने दैनिक भास्कर को दिया है…

  • हर शो मिलते थे 80 से 100 रुपए, कदमों से ही नाप लिया शहर

जब मेरे पास काम नहीं था, तब पैसे बचाने के लिए मैंने एक तरीका अपनाया. घर से कहीं भी जाना होता तो हमेशा पैदल ही जाती थी. उस समय मैं थिएटर करती थी. मुझे हर शो के 80 से 100 रुपए तक मिल जाते थे. यह रकम मेरे लिए बहुत कीमती होती थी. मुझे मॉर्निंग का शो करना होता था. समय पर थिएटर पहुंचने के लिए मैं अलसुबह ही घर से निकल जाती. घर से थिएटर के बीच की 10 किमी की दूरी में रोज पैदल ही नापती. एक घंटे चलकर मैं थिएटर पहुंचती और अपना शो निपटाती. उसके बाद मुझे जो 80 रुपए मिलते, वे मेरे लिए लाखों से बढ़कर होते थे.

  • कतारों में घंटों धक्के खाए

शुरू में मेरी ख्वाहिश इतनी बड़ी नहीं थी. एक अदद रोल पाकर पहली सीढ़ी चढ़ना ही मेरा लक्ष्य था. जगह-जगह होने वाले एक्टिंग ऑडिशंस के लिए मैं दौड़ती-भागती थी. जगह-जगह से आए लोगों के साथ लंबी-लंबी लाइनों में खड़े रहकर धक्के खाती. अपनी बारी आने का घंटों इंतजार करती थी. इन लाइनों में खड़ी पसीने से लथपथ हूं या फिर सर्द हवाएं झेल रही हूं, आंखों में बस एक ही सपना था कि एक दिन रुपहले परदे पर दिखना है. ऐसे मैंने कई ऑडिशंस की खाक छानी है. बहुत दौड़ाया है सक्सेस ने, यह ऐसे ही नहीं मिली है पर अभी तो बहुत आगे जाना है.

  • दिल में एक्टिंग, हाथ में कैमरा

एक्टिंग तो मेरा पैशन था, पर पैशन फॉलो करने के लिए जेब में पैसे भी तो चाहिए होते हैं. अर्निंग के लिए मैंने फोटोग्राफी शुरू की. जब मेरे पास थिएटर या एक्टिंग का काम नहीं होता था तो लोगों की शादियों में जाकर उनके फोटो खींचती थी. थोड़ी बहुत कमाई इसी से हो जाती. बाकी के समय मैं अपने पहले प्यार एक्टिंग पर ही पूरा फोकस करती थी. वह वक्त मुझे आज भी याद है. दिल में अभिनय की लौ जली होती थी और काम क्या… हाथ में कैमरा थामकर लोगों की शादियों में फोटोग्राफी करना. सच है जिंदगी भी आपको क्या-क्या रंग दिखाती है.