रायपुर. वृंदावन को श्री कृष्ण की नगरी कहा जाता है. यहां स्थित बांके बिहारी मंदिर विश्व प्रसिद्ध है. इस मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है. मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं. इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है.
प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में बांके बिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है. वैशाख माह की तृतीया तिथि पर जिसे अक्षय तृतीया कहा जाता है उस दिन पूरे एक साल में सिर्फ इसी दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. इस दिन भगवान के चरणों के दर्शन बहुत शुभ फलदायी होता है.
ये है यहां बांके बिहारी की प्रकट होने की कथा
भगवान श्रीकृष्ण के भक्त स्वामी हरिदास जी वृंदावन में स्थित श्री कृष्ण की रासस्थली निधिवन में बैठकर भगवान को अपने संगीत से रिझाया करते थे. इनकी भक्ति और गायन से रिझकर भगवान श्री कृष्ण इनके सामने आ जाते. एक दिन इनके एक शिष्य ने कहा कि आप हमें भी भगवान कृष्ण के दर्शन करवाएं. इसके बाद हरिदास जी श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे और राधा कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई.
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श्री कृष्ण और राधा ने हरिदास के पास रहने की इच्छा प्रकट की लेकिन हरिदास जी ने कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं तो संत हूं. आपको लंगोट पहना दूंगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहां से लाकर दूंगा.
भक्त की बात सुनकर राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई. हरिदास जी ने इस विग्रह को बांके बिहारी नाम दिया.
ऐसी मान्यता है जो भक्त बांके बिहारी के दर्शन करता है वह उन्हीं का हो जाता है. भगवान के दर्शन और पूजा करने से व्यक्ति के सभी संकट मिट जाते हैं . बांके बिहारी की पूजा में उनका श्रृंगार विधिवत किया जाता है. उन्हें भोग में माखन, मिश्री,केसर, चंदन और गुलाब जल चढ़ाया जाता है.