कलम के सिपाही के रूप में देश में अपनी अलग पहचान बनाने वाले प्रगतिशील कथाकार प्रेमचंद ने समाज में व्याप्त बुराइयों को अपने उपन्यासों और कहानियों में उकेरा. उन्होंने शोषण और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई. प्रेमचंद ऐसे कालजयी लेखक हैं, जिन्होंने पीढ़ियों और समय की सीमाओं को पार कर लिया और आज तक उनकी रचनाएं प्रासंगिक है.
मुंशी प्रेमचंद ने गरीबों, पिछड़ों और दलितों के जीवन को बुलंद आवाज दी. साहित्य में आजादी के लिए आवाज, प्रगतिशीलता, उपनिवेशवाद का विरोध, ब्राह्मणवाद और सामंती समाज का विरोध, जातिवाद और छुआछूत का विरोध करने की परंपरा का आगाज करने वाले प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस के पास के गांव लमही में हुआ था. बचपन में ही उनके सिर से मां का साया उठ गया था. 15 साल की उम्र में ही उनकी शादी हो गई और इसके कुछ ही समय बाद पिता का भी देहांत हो गया. प्रेमचंद के पिता डाकघर में मामूली नौकर का काम करते थे. वे भयंकर गरीबी में पले बढ़े थे. उनका बचपन का नाम धनपत राय था. उन्होंने अपनी कलम प्रेमचंद के नाम से हिंदी और उर्दू भाषा में चलाई. प्रेमचंद प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष भी हुए थे.
कलम के सिपाही ने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान जैसे लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास और कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियां लिखीं. प्रेमचंद की रचनाओं में विभिन्न तरह के संघर्ष हैं. जमींदार के खिलाफ साधारण और गरीब किसानों की लड़ाई, सवर्णों के खिलाफ दबे कुचले लोगों की लड़ाई, गुलामी के विरुद्ध आजादी की लड़ाई, पुरुष के खिलाफ प्रताड़ित स्त्री की लड़ाई. वे बुनियादी परिवर्तन को आधार बनाकर लिखते रहे ताकि समाज में एक आमूलचूल परिवर्तन हो सके.
इसे भी पढ़ें – कलम के सिपाही प्रेमचंद के घर की पानी की टंकी तोड़ी, जमीन पर भी कब्जा, जांच में पहुंची टीम
कथा सम्राट ने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चांद, सुधा आदि में लिखा. उन्होंने साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया. प्रेमचंद को अपनी आर्थिक परेशानियों से निपटने के लिए अपनी कोट और किताबें आदि बेचनी पड़ी थीं. बताते हैं कि एक बार जब वे आर्थिक रूप से परेशान थे, अपनी सारी किताबें लेकर एक किताब की दुकान पर पहुंचे. वहां उनकी मुलाकात एक स्कूल के हेडमास्टर से हुई. उन्होंने प्रेमचंद को स्कूल में अध्यापक नियुक्त करवा दिया. इसके बाद प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे. लेकिन उनको यहां की जिंदगी रास नहीं आई. वे मायानगरी छोड़कर वापस लौट गए. जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे.
इसे भी पढ़ें – जयंती विशेष : …जब मुंशी प्रेमचंद कहानीकार के साथ बन गए थे फिल्मी पर्दे पर कलाकार
मुंशी प्रेमचंद नवाबराय के नाम से भी कहानियां लिखते थे. 1907 में प्रेमचंद की पांच कहानियों का संग्रह सोजे-वतन प्रकाशित हुआ. देशप्रेम और आम जनता के दर्द से सराबोर इन कहानियों को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और उनके लिखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बाद वे नाम बदल कर प्रेमचंद के उपनाम से लिखने लगे. प्रेमचंद का महाजनी सभ्यता अंतिम निबंध, साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, कफन अंतिम कहानी, गोदान आखरी पूर्ण उपन्यास और मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है.
Read more – WHO Urges Action to Suppress COVID-19 Before Deadlier Variants Emerge