रायपुर. जंगल सफारी में कंसल्टेंट लर्न नेचर की फाइल दोबारा खुल गई है. सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने कमर्शियल न्यायालय के फैसले के हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद लर्न नेचर को हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर तीन हफ्ते में जवाब मांगा है. इस मामले में अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी.

दरअसल, ये मामला 2013 का है. जब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक कैंपा को वन मंडालधिकारी ने लर्न नेचर केयर को जंगल सफारी परियोजना के डीपीआर और मास्टर प्लान बनाने के लिए सलाहकार नियुक्त करने की अनुमति मांगी. जिसके लिए लर्न नेचर केयर को ढाई करोड़ का भुगतान करने की बात थी. लेकिन फरवरी 2014 में  प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) ने मंडलाधिकारी की इस नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए इसे निरस्त करने की मांग की, लेकिन अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक कैंपा ने बताया कि लर्न नेचर केयर को 60 लाख का अग्रिम भुगतान किया जा चुका है. जिसे करार रद्द करने की सूरत में वसूला नहीं जा सकेगा. अगर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) को इस पर आपत्ति उठानी थी तो अग्रिम भुगतान से पहले उठानी थी, लेकिन इसके बाद 2015 में करार निरस्त कर दिया गया. जिसके बाद बकाया राशि के भुगतान के लिए लर्न नेचर केयर हाईकोर्ट चली गई. कोर्ट में फर्म ने करीब 1 करोड़ 81 लाख भुगतान का दावा ठोंक दिया.

हाईकोर्ट ने विवाद के निपटारे के लिए आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की. आर्बिट्रेटर ने फैसला लर्न केयर के हक में सुनाया. जिसके खिलाफ सरकार कमर्शियल कोर्ट गई लेकिन वहां भी फैसला लर्न नेचर केयर के हक में गया. और राज्य सरकार को बकाया की राशि भुगतान ब्याज़ समेत 3 करोड़ भुगतान करने के आदेश दिए. इस मामले की जांच के लिए गठित हाईपावर कमेटी ने मंडलाधिकारी बडगैया को कसूरवार ठहराया, लेकिन इस बीच राज्य में सरकार बदल गई. नई सरकार के सामने बकाया भुगतान का मामला सामने आया तो सरकार ने इस मामले में तथ्यों की पड़ताल की तो उसने पाया कि न सिर्फ लर्न नेचय केयर की नियुक्ति ही अवैध तरीके से हुई है. बल्कि उसने कोई काम भी नहीं किया है. लिहाज़ा राज्य सरकार ने कमर्शियल कोर्ट के फैसले के खिलाफ  9 अप्रैल को हाईकोर्ट में याचिका लगाई. जिस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए लर्न नेचर केयर को नोटिस जारी किया है.