जयपुर. उत्तर भारत के राज्यों में सुबह का सबसे पसंदीदा नाश्ता समोसा-कचौड़ी और पोहा ही है. राजस्थान की कचौड़ी का कोई तोड़ नहीं. आज देश-विदेश में फेमस यह डीश अलग-अलग तरीके से परोसी जाती है. समय के साथ इन कचौड़ियों में फ्लेवर का तड़का भी लग चुका है, लेकिन क्या आपने ये सोचा है कि फेमस कचौड़ी इजाद कहां हुई? आइए आज हम आपको इसके इतिहास से रू-ब-रू कराते हैं.

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प्याज कचौड़ी ने बनाई पूरे भारत में अपनी जगह
मारवाड़ी भारत में जहां-जहां पहुंचे अपने साथ कचौड़ी का स्वाद ले जाना नहीं भूले इसलिए आज भारत के छोटे-बड़े शहरों में राजस्थान की स्पेशन प्याज कचौड़ी का स्वाद मिल जाएगा. बात करें सबसे पहले कचौड़ी कहां बनी होगी? कचौड़ी को लेकर ऐसा कोई खास दावा नहीं मिलता है. हालांकि बताया जाता है कि कचौड़ी का जन्म भारत में हुआ और इसकी रचयिता मारवाड़ी समाज बना. राजस्थान में व्यापारियों के मार्गों पर इसकी बिक्री शुरू हुई और धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गया.

ठंडे मसाले की देन हैं गरम-गरम कचौड़ी
प्राचानी समय में राजस्थान के मारवाड़ से व्यापारिक रास्ता गुजरा करता था. यहां गर्मी की वजह से ठंडे मसाले का चलन था, जिसमें धनिया, सौंफ और हल्दी का इस्तेमाल किया जाता था. इन्हीं के इस्तेमाल से कचौड़ी की भी शुरुआत हुई. अगर आप देखें तो मारवाड़ी राजस्थान से निकलकर पूरे देश में फैल गए. राजस्थान में मूंगदाल, हिंग और प्याज की कचौड़ी का चलन है.

मध्य एशिया से भारत आया समोसा
ऐसा कहा जाता है कि जब आर्य भारत आए तो उनके साथ समोसा आया. समोसा शब्द फारसी के सम्मोकस शब्द से बना हुआ है. दरअसल, समोसा मीलों दूर ईरान के प्राचीन सम्राज्य से आया है. आलू और कई तरह के मसालों से समोसा सबसे पहले ईरान में प्रचलित हुआ. मध्य पूर्व की 10वीं सदी की आहारों में समोसे का जिक्र मिलता था. खास तौर पर पर्शियाई इतिहास में ‘संबोसागÓ का नाम आता है, जो समोसे का ही शुरुआत रूप है. इतिहासकारों ने समोसे के इतिहास के बारे में अपना जो ब्यौरा दिया है, उसके अनुसार समोसा मध्य एशिया से उत्तर अफ्रीका, पूर्व एशिया और फिर दक्षिण एशिया आया था. आज भारत में सुबह के नाश्ते का अर्थ ही समोसा-कचौड़ी है.

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