इमरान खान, खंडवा। मध्य प्रदेश के खंडवा में भूतों का एक मेला लगता है। यह आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि बाबा के सामने भूत-प्रेत कांपते हैं, उनकी जाली पकड़ते ही भूत अपना जुर्म कबूल करते हैं। यह आने वाले लोगों का कहना है कि बाबा भूतों को सजा भी देते। इस दरगाह पर भूत, प्रेत और बाहरी बाधाओं से पीड़ित लोग मुक्ति के लिए आते है। इसमें अधिकांश लोग वह होते है जो अस्पताल और डॉक्टरों के इलाज से थक हार कर हताश हो जाते है।

यह दरगाह साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी है। यहां हिन्दू कैलेंडर की तिथि के अनुसार होली से रंग पंचमी तक मेला लगता है। लोगों का ऐसा मानना है कि इन पांच दिनों में बाबा को विशेष चादर पेश की जाती है। जिन लोगों को यहां से फायदा होता है वह भी हर साल हाजिरी लगाने आते है।

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भूतों की होती है पेशी!

हम किसी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे रहे, लेकिन बताना भी जरूरी है कि हमारा समाज आज भी रूढ़िवादी जकड़न से बाहर नहीं निकल पा रहा है। इस 21वीं सदी में भी हमारे देश में तंत्र-मंत्र और भूत-प्रेतों की एक अलग हीं दुनिया है। जहां लोग बखूबी आज भी आस्था और श्रद्धा से सिर झुकाते हैं। खंडवा से 26 किलोमीटर दूर जावर गांव के पास सैलानी बाबा की दरगाह है जहां होली से लेकर रंगपंचमी तक भूतों की अदालत लगती है। यहां बाबा की दरगाह पर भूतों की पेशी होती है।

दरगाह के परिसर में आते ही पीड़ितों की अजीब हरकत और आवाजों से अलग ही मंजर दिखाई देता है। बाहरी बाधा से परेशान लोग दूर दूर से यहां आते है। बाबा की इस अदालत में बाहरी बाधाओं और भूत प्रेत से पीड़ित लोगों की हाजिरी लगती है। जहां बुरी आत्माओं को सैलानी बाबा स्वयं सजा देकर शरीर से बाहर निकालते हैं। जिन्हें फायदा होता है वे लोग भी यहां हाजिरी लगाने आते है।

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100 साल पुरानी दरगाह

सैलानी बाबा की यह दरगाह करीब सौ साल पुरानी है। जो बुलढाना के फकीर मकदूम शाह सैलानी की है। कहा जाता है कि जिन शरीरों पर बुरी आत्माओं ने अपना कब्जा जमा लिया हो, जिनके आगे हर तंत्र-मंत्र फेल हो गया हो। ऐसे ही बुरी नजर और बाहरी आत्माओं से पीड़ित लोगों की पेशी होती है। यहां आने के बाद बड़े से बड़ा शैतान भी बाबा के सामने सरेंडर हो जाता है। बाबा इन आत्माओं को शरीर से अलग कर लोगों को मुक्ति दिलाते है। कई लोग ऐसे भी है जिन्होंने डॉक्टरी इलाज में भी कोई कसर नहीं छोड़ी, आखिकार फायदा बाबा के यह से ही मिला।

होली से रंगपंचमी तक लगती है अदालत

1939 में स्थापित बाबा की इस दरगाह में होली से लेकर रंगपंचमी तक देश भर से हजारों लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो जाता है। देशभर से आए लोग यहां तम्बू बनाकर कई दिनों तक रहते हैं। मान्यता है कि पांच गुरुवार नियमित यहां आने से पीड़ितों को फायदा होता है। कुछ लोग अपने अच्छा होने की मन्नत लेकर भी आती है और बली के रूप में मुर्गे और बकरे को भी साथ लाते है और बाबा के नाम पर यही छोड़ जाते है।

विज्ञान के इस युग में एक ओर हम चांद पर पहुंच गए हैं तो वहीं दूसरी तरफ आज भी लोग भूत प्रेत बाधा जैसी चीजों पर विश्वास करते है। भूत-प्रेत और चुड़ैल जैसी चीजों को विज्ञान नहीं मानता है। अब इसे आस्था कहे या अंधविश्वास लेकिन लोगों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं, जिन्हें लोग सदियों से निभाते चले आ रहे हैं।

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