Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

किस्सा ए बंगला


वित्त मंत्री ओ पी चौधरी भविष्य में जब कभी भी अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखेंगे, तो यकीनन ये किस्सा उसमें दर्ज होगा. बात 2018 चुनाव के पहले की है, जब ओ पी अचानक ब्यूरोक्रेसी छोड़ नेता बनने के रास्ते चल पड़े थे. रायपुर कलेक्टर रहते उन्होंने अपना इस्तीफा दिया था. इस्तीफे के पहले गोपनीयता बरतनी थी. ओ पी तब के मुख्य सचिव अजय सिंह के बंगले पहुंच गए. बंगले के दफ्तर में ही उन्होंने अपना इस्तीफा टाइप करवाया और मुख्य सचिव को सौंप दिया. इसके बाद की कहानी हर कोई जानता है. ओ पी नेता बन गए. उनका पहला चुनाव सबक सिखाने वाला साबित हुआ. दूसरे चुनाव ने उनका नाम इतिहास के दस्तावेजों में दर्ज कर दिया. बड़ी जीत मिली. सरकार में वित्त मंत्री बन गए. ये इत्तेफाक ही है कि मंत्री बनने के बाद ओ पी आज उसी बंगले में रह रहे हैं, जो उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट बना था. यकीनन बंगले की दहलीज पर कदम रखते ही ओ पी के जेहन में वो तस्वीर दौड़ पड़ी होगी, जब इसके एक कमरे में बैठकर उन्होंने अपने इस्तीफे पर दस्तखत किए थे. गांव की पगडंडियों में कूदते फादते हिन्दी माध्यम के एक स्कूल से पढ़े लिखे एक देहाती लड़के ने अपनी मेहनत से अपने हिस्से का आसमान गढ़ा है. ओ पी चौधरी कहते हैं कि वह कलेक्टर थे, तब भी जमीन पर सोते थे, आज मंत्री बन गए हैं. ऊंचाई बढ़ गई है, मगर सिर को सुकून आज भी जमीन पर ही सोने से मिल रहा है. ये सुकून इसलिए भी अलग है, क्योंकि जिस बंगले की जमीन पर उनका सिर टिकता है, वह बंगला उनके सपनों को पूरा करने का जरिया बना था.

लाॅटरी

आईपीएस अफसरों का तबादला आदेश देख कई लोगों की आंखें चौंधिया गई. मगर क्या करते आदेश देख अपनी नजर तिरछी कर ली. पिछली सरकार में पदस्थ कई कप्तान मैदान में बने हुए हैं. खोट सब में हो, ऐसा नहीं है. ज्यादातर अफसर अपनी काबिलियत के बूते कप्तानी पाने में सफल रहे, मगर कुछ कप्तान ऐसे रहे जिनकी लाॅटरी निकल गई. चर्चा थी कि उन्हें शंट कर दिया जाएगा. मगर हुनरमंद रहे. नई सरकार में भी अपनी जगह बना ली. कोल ट्रांसपोर्ट लेवी तत्कालीन सरकार का बहुचर्चित घोटाला रहा. 25 रुपए प्रति टन की लेवी वसूली ने सरकार पर ऐसी कालिख पोती थी कि आगे चलकर इतिहास काली स्याही में लिख दिया गया. तब सरकार सेंट्रलाइज्ड सिस्टम बनाकर लेवी वसूल रही थी, उधर कप्तान साहब राॅ मटेरियल लेकर फैक्ट्रियों तक जाने वाली प्रति ट्रक के हिसाब से लेवी वसूल रहे थे. वसूली के लिए बाइपास रोड पर एक पोस्ट बनाकर टीआई रैंक के अफसर की ड्यूटी लगा रखी थीं. मामला सुर्खियों में आता देख कप्तान साहब ने नीति बदल दी, नियत वहीं रही. बाइपास रोड से पोस्ट तो हटवा दिया, मगर फैक्ट्री संचालकों से सीधी सांठगांठ कर ली. मुंह बनाकर फैक्ट्री संचालक कप्तान साहब की जेब भरते रहे. तबादला आदेश में एक कप्तान ऐसे भी रहे, जिन्हें कांग्रेस नेताओं के ट्वीट को रिट्वीट करने से कोई गुरेज नहीं था. तीज त्यौहार हो या फिर कोई सरकारी फैसला. बस नेताओं को ट्वीट करने की देरी होती, कप्तान साहब रिट्वीट करने तैयार बैठे रहते. कप्तान साहब एक बड़े कांग्रेसी नेता के करीबी थे. खैर, नई सरकार कानून का राज स्थापित करने की मंशा रख रही है. उम्मीद है, ऐसे कप्तान अपनी पुरानी कारस्तानियों से आगे बढ़कर पुलिसिंग पर ध्यान रखेंगे.

बाबा की शरण

बाबा बागेश्वर इन दिनों खूब छाये हुए हैं. बाबा जब रायपुर आते हैं, तो उनकी कथा सुनने लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है. क्या नेता, क्या अफसर और क्या कारोबारी. हर कोई सोचता है कि बस एक बार बाबा के चरणों से अपना माथा लगा लें, जीवन तर जाएगा. खुशियां बांहे फैलाए मिलेगी. तरक्की दौड़े चली आएगी. दुनिया ही बदल जाएगी. सूबे में नई सरकार आने के बाद एक अफसर की दुनिया रातों रात बदल गई. मन मानने को तैयार नहीं था, लेकिन सब कुछ बदल चुका था. नई सरकार में पुराने आका नहीं थे. ‘शक्तिपुंज’ पहले से ही सिंखचों के भीतर थी. कलरफुल दुनिया अचानक ब्लैक एंड व्हाइट हो गई. अफसर जब ओहदे पर थे, तब शायद यह भूल गए थे कि ‘वक्त बदलता है. ठहरता नहीं’. पाॅवर-पोजिशन बस एक वक्त की बात है. आज है, कल नहीं होगा. अफसर का वक्त बदल गया. अफसर की पूजा पाठ में गहरी आस्था रही है. बेहतरी की उम्मीद लिए बाबा बागेश्वर की शरण ले ली. अफसर जानते हैं कि सरकार के प्रति अपनी आस्था का सर्टिफिकेट टांगकर घूमने पर भी जो लाभ नहीं मिलेगा, वह फायदा बाबा की शरण में जाने से मिल सकता है. बहरहाल अपनी ही सुपरमेसी में रच बस जाना भविष्य में बड़ी चोट देकर जाता है. ज्यादातर मामलों में ‘ओहदा’ अहंकार लेकर आता है, जो इससे बच गया, भविष्य उसका. एक बात और, अफसर को लगता है कि असल ताकत सरकार के बाहर होती है. हकीकत ये है कि सरकार ही ताकत है. सरकार ही है, जो धर्म-कर्म की एक व्यवस्था खड़ी करती है. अब अफसर जाने उनका भरोसा कहां जाकर टिकता है.

निशाने पर ‘कलेक्टर’

एक जिले के कलेक्टर मंत्री की आंख की चुभन बन बैठे हैं. चर्चा है कि कलेक्टर को बदलने के लिए मंत्री ने अपनी ताकत झोंक दी है. चुनाव के पहले से छिड़ी रार इसकी वजह है. बताते हैं कि चुनाव के दौरान बीजेपी जब महतारी वंदन योजना का फार्म भरवा रही थी, तब कलेक्टर ने कार्रवाई की थी. बीजेपी कार्यकर्ताओं पर एफआईआर दर्ज करवाया गया था. चुनाव जितने के बाद मंत्री ने कहा था कि कार्यकर्ताओं पर जुल्म ढाया गया है, ऐसे अफसर को छोड़ा नहीं जाएगा. मगर जब तबादला आदेश आया, तब कलेक्टर का बाल भी बांका नहीं हुआ. तब से ही मंत्री ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ रखा है. पिछली सरकार में विधायकों की शिकायत पर कलेक्टरों को हटा दिया जाता था. एक जिले में नई नई कलेक्टरी करने गए एक ईमानदार और नियम कायदों पर चलने वाले एक कलेक्टर को सरकार ने सिर्फ इसलिए हटा दिया था कि उन्होंने कांग्रेसी विधायक से जुड़े एक ठेकेदार को ठेका देने से मना कर दिया. मगर यहां मंत्री के मामले में बात ठेके की नहीं, सम्मान की है. खबर है कि जल्द ही आईएएस अफसरों की एक छोटी सूची जारी होगी. संकेत है कि कलेक्टर तबादले की जद में आ सकते हैं.

नियुक्ति पर नाराज

इधर मंत्री कलेक्टर को हटाने अमादा हैं, तो उधर जनसंपर्क में एक अफसर की नियुक्ति पर नाराजगी पसर गई है. जनसंपर्क संचालक के पद पर अजय कुमार अग्रवाल की नियुक्ति की गई. अजय 2008 बैच के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं. जनसंपर्क अधिकारी संघ उनकी नियुक्ति का विरोध कर रहा है. पूर्ववर्ती सरकार में जब सौमिल रंजन चौबे की इस पद पर नियुक्ति की गई थी, तब भी नाराजगी पसरी थी. अधिकारियों के संगठन ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि कनिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति से विभागीय कामकाज प्रभावित होगा. राज्यभर में जनसंपर्क के अफसरों में निराशा है. सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार करने वाले अफसर हतोत्साहित हैं. संगठन ने यह भी कहा था कि विभागीय संवर्ग के 20 अफसर ऐसे हैं, जो मध्यप्रदेश के जमाने से विभाग में काम कर रहे हैं. ऐसे में कनिष्ठ अफसर की नियुक्ति उनकी योग्यता पर सवाल उठाएगी. ये बात और है कि तब जनसंपर्क अफसरों के विरोध को सरकार ने नजरअंदाज कर दिया था. एक बार फिर जब कनिष्ठ अफसर की नियुक्ति हुई है, तो विभाग में हलचल तेज हो गई है. चर्चा है कि जनसंपर्क अधिकारी संघ इस फैसले पर विरोध दर्ज करने की तैयारी कर रहा है.

ढाबा में बवाल

पिछले दिनों एक जन्मदिन की पार्टी में जमकर लात घुसे चले. आठ दस लड़कों ने मिलकर दो लड़कों की धुनाई कर दी. मारपीट क्यों और कैसे हुई ये मालूम नहीं. मगर जिन दो लड़कों की धुनाई हुई, उनमें से एक लड़का एक महिला आईपीएस का बेटा निकला. महिला आईपीएस का बेटा अपने दोस्त के साथ ढाबा में जन्मदिन की पार्टी करने गया था. मामला आईपीएस के बेटे की पिटाई से जुड़ा था, सो पुलिस अब पिटाई करने वाले लड़कों की खोजबीन कर रही है. फिलहाल कोई मिला नहीं. राज्य में जब सरकार बदली थी. तब सरकार बदलने के साथ-साथ कई चीजें अपने आप बदल गई थी. नाइट कल्चर पर पुलिस की सख्ती उनमें से एक थी. देर रात तक सजने वाले रेस्टोरेंट, ढाबों पर पुलिस कहर बनकर टूटी थी. पुलिस स्पांटेनियस रियेक्शन के फार्मूले पर काम करती है या काम करते दिखना चाहती है. तब सरकार नई थी, सो अफसर प्रो एक्टिव थे. अब जैसे-जैसे सरकार पुरानी होती जा रही है, अफसर भी अपने ढर्रे पर आ रहे हैं.