हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, बसंत पंचमी के दिन को मां सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है. इस दिन विभिन्न स्थानों पर विद्या की देवी वीणावादिनी मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है.

नई दिल्ली. बसंत पंचमी के त्यौहार के साथ ही ऋतुराज बसंत का आगमन शुरू हो जाएगा. रविवार (10 फरवरी) को इस बार बसंत पंचमी मनाई जाएगी. बसंत पंचमी प्रत्येक वर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन से सर्दी के महीने का अंत हो जाता है. इस दिन विभिन्न स्थानों पर विद्या की देवी वीणावादिनी मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है. विद्यार्थियों के साथ आम लोग भी मां सरस्वती की पूजा करते हैं और विद्या, बुद्धि और ज्ञान अर्जित करने की प्रार्थना करते हैं.

ऋतुराज है बसंत

इस दिन लोग पीले रंग के कपड़े पहनते है. पीले रंग को बसंत की प्रतीक माना जाता है. बसंत पंचमी के दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जिसकी पीली किरणें इस बात का प्रतीक है कि सूर्य की तरह गंभीर और प्रखर बनना चाहिए. बंसत ऋतु को सभी मौसमों में बड़ा माना जाता है, इसलिए इसे ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है.

कुंभ का तीसरा शाही स्नान

हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, बसंत पंचमी के दिन को मां सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है. इस दिन उनकी विशेष पूजा होती है और पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. साल 2019 की बसंत पंचमी और भी खास है, क्योंकि इस दिन प्रयागराज में चल रहे कुंभ में शाही स्नान होगा. बसंत पंचमी के दिन होने वाले इस स्नान में करोड़ों लोग त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने आएंगे.

इसलिए होती है मां सरस्वती की पूजा

हिंदु पौराणिक कथाओं में प्रचलित एक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने संसार की रचना की. उन्होंने पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और मनुष्य बनाए. लेकिन उन्हें लगा कि उनकी रचना में कुछ कमी रह गई. इसीलिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई. उस स्त्री के एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था. ब्रह्मा जी ने इस सुंदर देवी से वीणा बजाने को कहा. जैसे वीणा बजी ब्रह्मा जी की बनाई हर चीज़ में स्वर आ गया. बहते पानी की धारा में आवाज़ आई, हवा सरसराहट करने लगा, जीव-जन्तु में स्वर आने लगा, पक्षी चहचहाने लगे. तभी ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया. वह दिन बसंत पंचमी का था. इसी वजह से हर साल बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाने लगा और उनकी पूजा की जाने लगी.