पिछले दिनों सूबे के मुखिया डॉक्टर रमन सिंह दादा बने। रमन सिंह के दादा बनते ही यह राजकीय खुशी पूरे राज्य भर में आग की तरह फैल गई। समाचार ऐसे फैली कि किसी को एक बार भी एहसास नहीं हुआ कि अभिषेक सिंह बाप बना है और ऐश्वर्या सिंह मां बनी हो। हर तरफ इसी बात की चर्चा रही कि रमन सिंह दादा बन गए… रमन सिंह दादा बन गए… सत्ता के शह में पल रहे कई वेब पोर्टल और टीवी चैनलों ने तो रमन सिंह के दादा बनने की खुशियों भरी खबर पहले ही से लिखवा रखा था। नन्ही परी के पैदा होते ही पुरे सोशल मीडिया, वेब पोर्टल और न्यूज़ चैनल हर जगह रमन सिंह के दादा बनने की खबर फैल गई।
किसी-किसी मीडिया हाउस में मिठाई भी जरूर बंटी होगी। कहा नहीं जा सकता। जश्न के माहौल में सब जायज है। दूसरी तरफ कई वेब पोर्टल चुनावी मौसम को भांपकर मशरूम की तरह रातों रात उग गए हैं। जिन्हें अभी सरकारी विज्ञापन मिलना शुरू नहीं हुआ है। ऐसे पोर्टलों को नन्ही परी के आने की जरा भी खुशी नहीं हुई। कई पोर्टल ने खबर छापी कि मुख्यमंत्री रमन सिंह की बहू को सरकारी अस्पताल में डिलीवरी कराना महज दिखावा है। छलावा है। इस अनुकरणीय और सराहनीय कदम को केवल वोट बैंक का प्रपंचमात्र साबित किया।
अब मैं तीसरी बात करना चाहता हूं। हजार दो हजार सर्कुलेशन वाले अखबार के एक छोटा सा पत्रकार के रिश्तेदार भी जब अंबेडकर अस्पताल चले जाते हैं तब इलाज VIP तरीके से कराते हैं। पत्रकार होने की धौंस जताते हैं। और ऐसे ही कई पत्रकार मुख्यमंत्री से अपेक्षा रखते हैं कि वे अपनी बहू को जनरल वार्ड में सामान्य मरीजों की तरह ट्रीटमेंट करवाएं। ऐसे सभी पत्रकारों को प्रणाम करता हूं। ठीक है भाइयों कलम आपके हाथ में है तो घसीटते रहो। मगर हे कलमघसिटुओं! कभी-कभी सरोकार की खबरें भी लिखा करो या अंतिम सांस तक अपने मालिकों के हिसाब से लिखते रहोगे।
वैसे आधुनिक समय मीडिया के मालिकों के लिए स्वर्णिम युग है। पत्रकारिता के पेशे और पैसे को प्रणाम करता हूं। पैसों की खूब पेराई हो रही है पुराने तेल की घानी की तरह… शहर भर में दौड़ भाग रहे हैं कोल्हू के बैल…बैल के नजर में हरा चारा तो है मगर सच्चाई नहीं है कुछ भी हाथ में…आज बस इतना ही…और हां! अब चलते- चलते अंत में इतना ही कहना चाहता हूं। सभी कोल्हू के बैलों को आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं… अलविदा… फिर मिलेंगे…
-कंचन ज्वाला कुंदन
(ये लेखक की सोच पर आधारित उनका व्यंगात्मक लेख है )