राजधानी में 400 साल पुराना ऐतिहासिक पीपल का पेड़ काट दिया गया. निगम, शासन- प्रशासन, पुलिस, ट्रैफिक पुलिस, बाहर से आकर वृक्ष के पास पान-परचून लगाकर जीवनयापन करने वाले ऐसे ही मुट्ठीभर कुछ लोगों का कहना है कि वृक्ष का कटना जरूरी था. इसके कटने से ट्रैफिक स्मूथ होगा. निगम का कहना कि उसका सरदर्द कम होगा. वैसे भी इस वृक्ष की 6 महीने पहले ही आयु समाप्त हो चुकी है. आपको बता दूँ कि महापौर प्रमोद दुबे जी के पास इस पेड़ की आयु के सर्टिफिकेट मौजूद है. उन्होंने शायद यह सर्टिफिकेट किसी बड़े विदेशी वृक्ष विज्ञानी से वृक्ष के आयु का आकलन कर बनवाया है.
सुनने में तो यह भी आ रहा है कि होने वाले आगामी कचरा महोत्सव में इस पेड़ को काटने वाले को नगद पुरस्कारों और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जायेगा. कुलमिलाकर कहूँ तो कुछ लोगों का कहना है कि इस वृक्ष की बलि से कोई घाटा नहीं हुआ है. अगर घाटा हुआ है भी तो गिने-चुने 10 घाटे हुए होंगे. देश में इस समय पकौड़े का मौसम चल रहा है. जिसके चलते मुझे पकौड़ा तलने के ज्यादा ही सपने आने लगे हैं. आज जब पकौड़े खाने का ख्याल आया तो मैं पकौड़े खाने पीपल पेड़ के पास चाय-पकौड़े बेचने वाला आदमी के पास नाश्ता करने पहुंचा.
पीपल कटने की बात पर वह कह रहा था कि अच्छा हुआ जो यह बुजुर्ग पेड़ कट गया. कमबख्त उसके बिजनेस में काफी खलल डाल रहा था. कई बार पेड़ से उसके चना-चटपटी में कीड़े गिर जाया करते थे. जिसे मजबूरन लोगों को वैसे ही परोसना पड़ता था. पकौड़े वाले ने इस पेड़ के सैकड़ों फायदे गिना दिए. और भी कई पकौड़े वालों ने मुझे ही गरिया दिया. बोले बड़ा आया पीपल पर ज्ञान बघारने. वहीं पर एक बुद्धिजीवी ने मिर्ची पकौड़ा चबाते हुए मुझे कहा कि भाई साहब ! बुद्ध को पीपल वृक्ष के पास ही आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई थी. जिसके चलते उसे बोधि वृक्ष कहा गया. अब रायपुर में कौन से बुद्ध आकर यहाँ बैठते भला. कट गया सो कट गया.
आसपास के कई गुणीजन तो यह भी कह रहे थे कि बला टली भैया, यह पेड़ कभी भी गिर सकता था. वैसे भी अब यह पेड़ ऑक्सीजन कम और पत्तों और पक्षियों के बीट ज्यादा दे रहा था. शहर के कई सभ्य लोग वृक्ष को गाली दे रहे थे. उनकी दलीलें थी कि साला कभी भी इस पेड़ के सामने छाया के लिए सुस्ताओ तो उसके सिर पर चिड़िया बीट कर दिया करती थी. पीपल पेड़ के नीचे ताशपत्ती खेलने वालों को थोड़ा सा गम जरुर हुआ मगर वे अब नए ठिकाना ढूंढ लेंगे. कुछ ऐसे लोगों को भी जरा सा मलाल रहा कि वे अब छाया के नीचे अपनी गाड़ी खड़ी नहीं कर पाएंगे. कुछ महिलाएं कह रही थीं कि अब पीपल पर धागा बांधने उन्हें नया पीपल का पेड़ ढूंढ़ना पड़ेगा.
वहीं, इस पेड़ के कटने से कई लोग दर्द से कराह उठे हैं. सीधे घर के एसी से निकलकर मीडिया के सामने दर्द बयाँ कर रहे हैं. वृक्ष के कटने से ऐतिहासिक धरोहर अब धुमिल हो जायेगा. जो वृक्ष कभी स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी था. कभी यहाँ आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इनकी प्राणवायु के बीच देश के लिए अपनी प्राण फूंकने की प्रण लिया करते थे. विज्ञानियों का मानना है कि बड़े-बड़े पेड़ कटने से ही गिद्दों की संख्या कम होती जा रही है. यह सिलसिला जारी रहा तो ये गिद्ध पक्षी संकटापन्न प्रजाति बन जाएंगे. क्योंकि गिद्ध पक्षी बड़े और पुराने पेड़ों पर ही अपना घोंसला बनाते हैं.
इस वृक्ष की बलि को कुछ लोग बलिदान बताने लगे हैं. वृक्ष ने शहादत दी है लोगों को आने-जाने में सहूलियतों के लिए. कुछ लोग इस वृक्ष बलि के सैकड़ों फायदा भी गिनाने लगे हैं. राजनीति सरगर्मी बढ़ती जा रही है. गर्मी के मौसम ने भी दस्तक दे दिया है. पेड़, छांव, पानी, तालाब कीचड़ इत्यादि पर बात करना भी अब जरूरी सा हो गया है. राजधानी में ढेरों पेड़ कट रहे हैं. शहर को कांक्रीट का जंगल बनाने जोर-शोर से तैयारी चल रही है. वैसे बता दूँ कि राजधानी में हर सप्ताह दो दिन शनिवार और रविवार हैरिटेज वॉक भी निकाली जा रही है. पेड़ काटने वाले और कटवाने वाले भी इस हैरिटेज वॉक पर बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. इस शहर की तासीर यही है कि हर जगह हम ही हम हैं. हम ही कभी पेड़ काटने पहुँच जाते हैं. हम ही कभी पेड़ लगाने पहुँच जाते हैं.
– कंचन ज्वाला कुंदन
(यह लेखक के निजी विचार हैं )