रायपुर. मंगलवार को संसद के शीतकालीन सत्र के बीच सदन में ‘छत्तीसगढ़ सबले बढ़िया’ गूंजा. दरअसल, आज लोकसभा में 12 जनजातियों को आदिवासियों की सूची में शामिल किए जाने वाले विधेयक पर चर्चा चल रही थी. इसे लेकर सभी सदस्य इसके समर्थन में बोल रहे थे. विपक्ष ने भी इस विधेयक का समर्थन किया. इस बीच जब प्रतिपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी की बोलने की बारी आई, तब उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत ‘सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया’ से की.

अधीर रंजन ने कहा कि इस बिल को लेकर 2005 में यूपीए की सरकार ने छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार को सलाह दी थी, लेकिन उस समय ये नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि 32% रिजर्वेशन की जो बात हो रही है, ये आज का नहीं है. वहां की जनता लंबे समय से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं. रंजन ने छत्तीसगढ़ के आरक्षण मुद्दे पर आगे कहा कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सितंबर में 50 फीसदी से ज्यादा होने के कारण आरक्षण को अमान्य घोषित कर दिया था. जिसके बाद छत्तीसगढ़ की सरकार ने दिसंबर में बिल पास करके गवर्नर के पास भेज दिया है. लेकिन गवर्नर इसे नहीं मान रहे हैं. उन्होंने केंद्र पर गवर्नर के ऊपर दबाव डालने का आरोप लगाया.

रंजन ने छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम का क्रियान्वयन हो रहा है. यहां राज्य के वन क्षेत्र में कबिज भूमि का आदिवासिओं और परंपरागत निवासियों को अधिकार देने के मामले में छत्तीसगढ़ देश में अग्रणी है. निरस्त दावों की पुन: समीक्षा करके वन अधिकार मान्यता पत्र वितरण किया जा रहा है. राज्य में 4,54,415 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र के अंतर्गत पात्र हितग्राहकों को 3,70,275 हेक्टेयर भूमि दी गई है. वहीं सामुदायिक वन अधिकार मान्यता के अंतर्गत 45,847 पत्र वितरित किया गया है. जिसके तहत 19 लाख 83 हजार 308 हेक्टेयर भूमि प्रदान की गई है. अधिकृत भूमि का वापसी की गई है. सरकार की नीति से वनांचल क्षेत्र के लोगों के जीवन में बदलाव आने लगा है. निजी कंपनी द्वारा अधिग्रहित भूमि आदिवासियों को वापस की गई है.