रायपुर. इस पुरे साल कुल 4 ग्रहण पड़ रहे हैं. जिसमें से 2 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण शामिल हैं. साल 2021 का दूसरा चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को पड़ रहा है. कार्तिक मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि गुरूवार को चन्द्र ग्रहण लग रहा है, जो कि शुक्रवार सुबह 11.34 मिनट पर शुरू होगा और 5.37 मिनट तक रहेगा. इस चंद्र ग्रहण की अवधि 5 घंटे 59 मिनट तक रहेगा. यह भारत में अति अल्प दृश्य होगा और भारत के अरूणांचल प्रदेश के सुदूर पूर्वोत्तर भाग में इस ग्रहण का स्पर्श, समिम्लन, उन्नमिलन, मध्य तो दृश्य नहीं होगा किंतु मोक्ष अल्प दृश्य होंगे. ये चंद्र ग्रहण दोपहर 12 बजकर 48 बजे से शुरू होकर शाम 4 बजकर 16 मिनट बजे समाप्त होगा.”इस आंशिक चंद्र ग्रहण की अवधि 3 घंटे 28 मिनट और 24 सेकेंड होगी.”
यह चंद्र ग्रहण केवल अरूणांचल प्रदेश के सुदूर पूर्वोत्तर भाग और असम के कुछ हिस्सों में ही मोक्ष में नजर आएगा. जिस कारण इसके सूतक का विचार भी संपूर्ण देश में नहीं होगा. जिन स्थानों पर ग्रहण दिखेगा, वहीं पर सूतक का विचार रहेगा. सायंकाल चंद्रोदय 5.22 बजे के बाद ही होगा. शास्त्रों के अनुसार चंद्र ग्रहण का सूतक ग्रहण आरंभ समय से 9 घंटे पहले से ही आरंभ हो जाता है. अतः इसका सूतक ग्रसित क्षेत्रों में ही मान्य होगा अन्यत्र कहीं विचार नहीं किया जाएगा.
बता दें कि इससे पहले इतना लंबा चंद्रग्रहण 18 फरवरी 1440 को पड़ा था और अगला मौका 8 फरवरी, 2669 में आएगा. भारत में उपछाया चंद्र ग्रहण लग रहा है. इस ग्रहण को नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता. इसे देखने के लिए विशेष उपकरणों की ज़रूरत पड़ती है. ज्योतिष में भी उपछाया को ग्रहण का दर्जा नहीं दिया गया है. इस लिहाज़ से उपछाया ग्रहण को वास्तविक चंद्र ग्रहण नहीं माना जाता है.
ग्रहण एक खगोलीय अवस्था है, जिसमें कोई खगोलिय पिंड जैसे ग्रह या उपग्रह किसी प्रकाश के स्रोत जैसे सूर्य और दूसरे खगोलिय पिंड जैसे पृथ्वी के बीच आ जाता है. जिससे प्रकाश का कुछ समय के लिए अवरोध हो जाता है. चंद्रग्रहण में चाँद या चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है. ऐसी स्थिती में चाँद पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है, ऐसा सिर्फ पूर्णिमा के दिन संभव होता है. आध्यात्मिक स्तर पर ग्रहण एक विशेष घटना है. उस समय वातावरण में रज-तम बढ़ जाता है. जिसका मानव पर हानिकारक प्रभाव होता है. बढ़े हुए रज-तम का लाभ उठाकर अनिष्ट शक्तियां अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करती हैं, जिनका वैश्व्कि स्तर पर नकारात्मक परिणाम होता है.
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माना जाता है कि चंद्रमा मन को प्रभावित करता है. पूर्णिमा की रात को इसका प्रभाव और भी अधिक होता है. यह प्रभाव चंद्रग्रहण के काल में और बढ जाता है. इस प्रकार पूर्णिमा और चंद्रग्रहण एक साथ होने से यह अत्यधिक होता है. परंतु यह अमूर्त सूक्ष्म स्तर पर होता है अथार्त लोगों को कष्ट अनिष्ट शक्तियों के कारण होता है. ऐसे समय लोगों की निर्णय क्षमता न्यून हो जाती है फलस्वरूप त्रुटिपूर्ण निर्णय लेने की आशंका बढ जाती हैय क्योंकि उनकी बुद्धि भी प्रभावित होती है. इस कारण लोग शारीरिक स्तर पर आलस्य, थकान, अस्वस्थता आदि का अनुभव कर सकते हैं.
क्या होता है ग्रहण?
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और दानवों के बीच अमृत के लिए घमासान चल रहा था. इस मंथन में अमृत देवताओं को मिला लेकिन असुरों ने उसे छीन लिया. अमृत को वापस लाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी नाम की सुंदर कन्या का रूप धारण किया और असुरों से अमृत ले लिया. जब वह उस अमृत को लेकर देवताओं के पास पहुंचे और उन्हें पिलाने लगे तो राहु नामक असुर भी देवताओं के बीच जाकर अमृत पीने के लिए बैठ गया. जैसे ही वो अमृत पीकर हटा, भगवान सूर्य और चंद्रमा को भनक हो गई कि वह असुर है. तुरंत उससे अमृत छिना गया और विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी.
क्योंकि वो अमृत पी चुका था इसीलिए वह मरा नहीं. उसका सिर और धड़ राहु और केतु नाम के ग्रह पर गिरकर स्थापित हो गए.
ऐसी मान्यता है कि इसी घटना के कारण सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगता है, इसी वजह से उनकी चमक कुछ देर के लिए चली जाती है. वहीं, इसके साथ यह भी माना जाता है कि जिन लोगों की राशि में सूर्य और चंद्रमा मौजूद होते हैं उनके लिए यह ग्रहण बुरा प्रभाव डालता है. ज्योतिषों और पंडितों के अनुसार यह माना जाता है कि इस कुछ काम नहीं करने चाहिए. आज यहां आपको पूरी लिस्ट दी जा रही है. इस दिन क्या करें और क्या नहीं. लेकिन उससे पहले यहां समझे कि ग्रहण क्या होता है खासकर चंद्र ग्रहण और कैसे हुई इसकी शुरूआत.
चंद्र ग्रहण में रखें इन बातों का ध्यान चंद्र ग्रहण के दौरान कई चीजों का ख्याल रखना भी जरुरी होता है. इस दौरान खाना नहीं खाया जाता है और सोया भी नहीं जाता है. हालांकि, बुजुर्ग, रोगी और बच्चों को इसके लिए छूट होती है. ग्रहणकाल के दौरान सूतक के नाम पर अक्सर मन्दिरों के पट बंद कर दिए जाते हैं. बाहर निकलना और भोजन करना भी शास्त्रों में निषेध माना गया है. ग्रहण समाप्त होने पर अर्थात् मोक्ष होने पर स्नान करने का विधान है. इसमें मूल बात के पीछे तो वैज्ञानिक कारण है शेष उस कारण से होने वाले दुष्प्रभावों को रोकने के उद्देश्य से बनाए गए देश-काल-परिस्थिति अनुसार नियम.
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वैज्ञानिक कारण तो स्थिर होते हैं, लेकिन देश-काल-परिस्थिति अनुसार बनाए गए नियम होता है तभी वे अधिकांश जनसामान्य द्वारा मान्य होते हैं. ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुन्तुद नरक में वास करता है. सूर्यग्रहण में ग्रहण चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर (9) घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए. बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं. ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियां डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते. पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए.
ग्रहण वेध के प्रारंभ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए. ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचौल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए. स्त्रियां सिर धोए बिना भी स्नान कर सकती हैं. ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए. ग्रहणकाल में स्पर्श किए हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए और स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए. ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए. ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है.
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए. बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए. ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन ये सब कार्य वर्जित हैं. ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए. ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है. गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए. तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किन्तु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए.
भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है. यदि गंगाजल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है. ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है. वृषभ राशि और कृतिका नक्षत्र में लगेगा. इससे वृषभ राशि सबसे अधिक प्रभावित होगी.
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