रायपुर. फाल्गुन मास के गुरूवार को भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष विधान है. इस माह में शीतल जल से स्नान करना लाभदायक होता है. इस माह में अनाज का प्रयोग कम करना चाहिए और अधिक से अधिक फलों का सेवन करना चाहिए. तामसिक भोजन से भी परहेज करना चाहिए. इस माह में अधिक से अधिक रंगीन और सुंदर कपड़े धारण करना चाहिए.

फाल्गुन मास अध्यात्म के साथ ही उत्सव और त्यौहारों का भी है. फाल्गुन मास में भगवान कृष्ण के तीन रूपों की पूजा करना चाहिए. ये तीन रूप हैं बालकृष्ण, राधा-कृष्ण और गुरु कृष्ण. पुराणों में उल्लेख है कि संतान की इच्छा रखने वालों को बाल कृष्ण की आराधना करनी चाहिए.

वहीं सुख-समृद्धि चाहने वालों को राधा-कृष्ण और ज्ञान की इच्छा रखने वालों को योगोश्वर जगदगुरु कृष्ण की उपासना करनी चाहिए. फाल्गुन मास हिंदू पंचाग का आखिरी महीना है इसके पश्चात हिंदू नववर्ष का आरंभ हो जाता है. इस मास में प्रकृति में हर ओर उत्साह का संचार होता है और इस माह में कई महत्वपूर्ण त्योहार आते हैं.

इसके अलावा शुक्ल पक्ष के सभी गुरूवार को भगवान कृष्ण की पूजा करने और गुरू की शांति के संपूर्ण उपाय करने से जीवन में गुरू ग्रह से संबंधित समस्त दोषों की निवृत्ति होती है, जिससे गुरू-चांडाल दोष शांति होती है साथ ही विवाह, संतान, शिक्षा से संबंधित समस्त कष्टों के दूर करने के लिए भी यह माह बहुत उत्तम माना गया है.

गुरू से संबंधित दोषों की निवृत्ति के लिए फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष को पड़ने वाले गुरूवार को व्रत का पालन कर किसी गुरू तुल्य व्यक्ति या ब्राम्हण अथवा पिता तुल्य व्यक्ति को आहार करायें, जिसमें विशेषकर पीले खाद्य पदार्थ जैसे बेसन, फल इत्यादि जरूर हों, इसके अलावा गुरू मंत्र का जाप करना, पीले पुष्प कृष्ण भगवान को अपिर्त करना एवं गुरू मंत्र का जाप करना चाहिए. इससे गुरू ग्रह से संबंधित समस्त कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती हैं.

आयुर्वेद और अध्यात्म में इस महीने में ठंडे जल से स्नान करना चाहिए. गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए. क्योंकि, मौसम में परिवर्तन के कारण शरीर में गर्म पानी से नहाने के कारण कुछ कमजोरी या संक्रमण की आशंका होती है.

नियमित रुप से भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए और उन्हें सुगंधित फूल चढ़ाने चाहिए.

हल्के कपड़े पहनने चाहिए.

सोते समय ज्यादा गरम कंबल आदि नहीं ओढ़ने चाहिए.

नहाने के जल में चंदन और हल्दी डालकर नहाना चाहिए.

पीपल या बरगद के वृक्ष में हल्दी की गांठ अर्पित करें.

पीले- रसीले फलों का दान करें.