मुंबई। केंद्र सरकर एक तरफ तो कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने में जुटी हुई है. वहीं दूसरी तरफ बैंकों को इससे 3800 करोड़ रुपए का हर साल नुकसान हो रहा है. ये खुलासा हुआ है स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट से.

कैशलेस लेनदेन से बैंकों को भारी नुकसान

कैशलेस लेनदेन के लिए बैंक प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) टर्मिनल और मशीनों की संख्या बढ़ा रहे हैं. नोटबंदी के बाद इसमें काफी तेजी आई है. जुलाई 2017 तक 28.4 लाख पीओएस टर्मिनल्स लग चुके हैं. बैंक हर दिन करीब 5 हजार पीओएस टर्मिनल्स लगा रहे हैं.

इससे डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिला है. एसबीआई रिपोर्ट के मुताबिक, डेबिट और क्रेडिट कार्ड के ट्रांजैक्शन में बढ़ोतरी हुई है. अक्टूबर, 2016 में 51 हजार 900 करोड़ रुपए के ट्रांजैक्शन हुए. वहीं जुलाई 2017 तक ये बढ़कर 68 हजार 500 करोड़ के स्तर पर पहुंच गया.

सबसे ज्यादा कैशलेस ट्रांजैक्शन दिसंबर 2016 में हुआ. 8 नवंबर 2016 में नोटबंदी हुआ था और इसके बाद दिसंबर 2016 में सबसे ज्यादा 89 हजार 200 करोड़ रुपए के कैशलेस ट्रांजैक्शन हुए.

बैंकों को भारी घाटा

एसबीआई के मुताबिक, इंटर बैंक ट्रांजैक्शन से पीओएस टर्मिनल्स पर 4 हजार 700 करोड़ रु का घाटा हुआ था. इसमें से अगर एक ही बैंक में किए गए पीओएस ट्रांजैक्शन को घटा दें, तो कुल घाटा 3 हजार 800 करोड़ रु हुआ.

एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, पेमेंट कार्ड इंडस्ट्री 4 पार्टी माॅडल पर काम करती है. इसमें एक जारी करने वाला बैंक, पाने वाला बैंक, कारोबारी और ग्राहक शामिल होता है.

पीओएस टर्मिनल्स लगाने के लिए बैंकों को इंफ्रास्ट्रक्चर पर लगने वाला खर्च उठाना पड़ता है. इसमें पीओएस टर्मिनल लगाना, क्लियरिंग, सेटलमेंट, कारोबारियों को प्रशिक्षण देना, टर्मिनल प्रबंधन करना और इनकी आपूर्ति करने समेत दूसरी चीजों में खर्च करना पड़ता है. बैंकों को मर्चेंट डिस्कांउट रेट और महीने के किराए से आय होती है, जो काफी कम रहता है.

एसबीआई रिपोर्ट ने सरकार को टेलीकाॅम स्ट्रक्चर बेहतर करने का सुझाव दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार अगर अपने डिजिटल पेमेंट्स के एजेंडे को सही दिशा में बढ़ाना चाहती है, तो उसे वित्तीय लेनदेन के लिए बेहतर स्पेक्ट्रम तैयार करना चाहिए.