नई दिल्ली। पिछले साल गणतंत्र दिवस और यमुनापार में 2020 के दंगों के मामलों में दिल्ली पुलिस की ओर से अपनी पंसद के वकीलों को चुनने और इस मामले में उपराज्यपाल अनिल बैजल की मंजूरी दिए जाने को दिल्ली सरकार की चुनौती का कड़ा विरोध करते हुए बैजल की तरफ से कहा गया है कि ऐसा मामले की निष्पक्ष, त्वरित और जल्द सुनवाई के लिए किया गया था.

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दिल्ली उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई के दौरान विशेष सरकारी अभियोजक (special public prosecutor) की नियुक्ति का बचाव करते हुए उपराज्यपाल अनिल बैजल की ओर से एक हलफनामे में कहा गया कि वे सिफारिशें उन मामलों के कुशल, त्वरित और न्यायपूर्ण अभियोजन के लिए थीं, जो अत्यधिक संवेदनशील हैं. इसका अभियोजकों की क्षमता या स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं है, क्योंकि एक अधिवक्ता अदालत का अधिकारी है और अदालत की कुशलतापूर्वक सहायता करने के कर्तव्यों को पूरा करता है.

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दिल्ली सरकार की याचिका के अनुसार, एसपीपी को दिल्ली पुलिस द्वारा चुना गया है और इससे हितों का गंभीर टकराव होता है. सरकार ने अदालत से कहा है कि वह इस मामले में निर्देश दे, ताकि इस मामले में जांच नियमित लोक अभियोजकों की ओर से जारी रखी जा सके और निष्पक्ष सुनवाई प्रभावित नहीं हो. याचिका के अनुसार, न तो दिल्ली पुलिस और न ही उपराज्यपाल अनिल बैजल को किसानों के आंदोलन और उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों में लोक अभियोजकों के काम के खिलाफ शिकायत है. लोक अभियोजकों की कम संख्या के कारण मामलों में देरी होने की भी कोई शिकायत नहीं है. इस तरह से दिल्ली पुलिस के पास एसपीपी या अनिल बैजल को उन नियुक्तियों को मंजूरी देने का कोई कारण नहीं था.