अनिल सक्सेना, रायसेन। देश में एक ऐसा स्थान है जहां जाति-पांति सम्प्रदाय का कोई बंधन नहीं है। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में ‘बाडी की मां हिंगलाज’ की। जो हिन्दू-मुस्लिम की सद्भावना की मिसाल है। जो पाकिस्तान के ब्लूस्तान में नानी की दरगाह के नाम से जाना-जाता है, वहीं दूसरा मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के बाड़ी में है। जहां मां के भक्त मां को ज्योति स्वरुप में लाए थे जो हिंगलाज के नाम से जानी जाती हैं। जिसने सम्प्रदायीक सोहाद्र की मिशाल कायम की हैं।

इतना ही नहीं बाड़ी के हिंगलाज मंदिर को तत्कालीन मुस्लिम शासक की बेगम ने 70 एकड जमीन दान में देकर सांम्प्रदायिक सदभाव की मिसाल दी थी। आज के समय में जब देश में अयोध्या के राम मंदिर के विवाद की बात सामने आती है तो यह स्थान ऐसे मामलों में राजनीति करने वालों के सामने एक साम्प्रदायिक सद्भाव की अब तक की सबसे बड़ी मिसाल के रूप में सामने आता है।

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रायसेन जिले के बाड़ी में 16वीं शताब्दी में लगभग 500 वर्ष पूर्व महात्मा भगवानदास को मां हिंगलाज में स्वप्न दिया था कि वह उसे भारत ले जाए. तब महात्मा भगवानदास ने प्रण किया और पाकिस्तान के बलूचिस्तान से मां को ज्योति के रूप में बाड़ी ले आए। तब यह स्थान जंगली और दुर्गम था, जो राम जानकी अखाड़े के नाम से जाना जाता था। वहां पर सिर्फ तपस्वी साधु संत ही पहुंच सकते थे। यहीं पर ज्योति स्वरूप मां की मूर्ति के सामने स्थापित किया। जहां पर ज्योति मूर्ति में समाहित हो गई और आज वह स्थान हिंगलाज शक्ति पीठ कहलाने लगा।

आचार्य देवनारायण त्रिपाठी बताते हैं कि, हिंगलाज का अर्थ है सबको तत्काल फल देने बाली मां और हिंग का अर्थ है रौद्र रूप वहीं लाज का अर्थ लज्जा है। कथा के मुताबिक गुस्से में शिव के सीने पर पैर रखने के बाद मां शक्ति लज्जित हुई थीं। इस लिए रौद्र और लज्जा को मिलाकर मां का नाम हिंगलाज हुआ।

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यह स्थान विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी में बसा है। मां को एक बार बाड़ी के नवाब की बेगम ने प्रसादी स्वरुप मांस भेजा जो मिठाई में बदल गई। जिसके बाद बेगम ने 70 एकड़ जमीन मंदिर को दान कर दी। यह वह मां हैं जो भारत वर्ष में दो धर्मो की परंपरा को जोड़े हुए हैं। आज भी यहां अमर ज्योति जल रहीं है। यहां पर सभी भक्त आतें हैं। वहीं मंदिर पीरबाबा की समाधी एकसाथ बनी हुई है, जो हिन्दू और मुस्लिम एकता की मिशाल है। यहां पर संस्कृत पाठशाला और यज्ञ शाला भी बनाई गई है। इस मंदिर में मध्य प्रदेश, देश के साथ विश्व भर से भक्त दर्शन करने आते है। यहां पर पुत्र, धन, सुख शांति और गौरव प्राप्त होता है। जहां भक्त नारियल, फल-फूल बेलपत्र से अर्पण करते है। हर भक्त की मुराद पूरी होती है। प्राचीन मंदिर में चारों धाम की छटा देखने को मिलती है।

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यहां पर भक्ति की शक्ति से तुरंत फल मिलता है। हिंगलाज मंदिर के पीछे राम जानकी मंदिर जिसका इतिहास भी एक हजार वर्ष पुराना है।खाकी अखाड़ा के महामंडलेश्वर भगवान दास जी के साथ 2 और संतो की जीवित समाधि बानी हुई है। इस तरह खाकी अखाड़ा और हिंगलाज मंदिर का इतिहास वर्षो पुराना बताया जाता है। जिनकी लिपि आज भी संरक्षित रखी हुई है। बाड़ी के हिंगलाज मंदिर को मुस्लिम शासक की बेगम ने 70 एकड दान में देकर सांम्प्रदायिक सदभाव की मिसाल दी थी। आज के समय में जब देश में अयोध्या के राम मंदिर के विवाद की बात सामने आती है तो यह स्थान याद आता है जहां जाति तो दूर धर्म भी एक बताता है।

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