रायपुर. महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस अपने गृह राज्य पहुंचे हुए हैं. बैस को लेकर छत्तीसगढ़ में चर्चाओं का बाजार गर्म है. चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि क्या छत्तीसगढ़ कि सियासत में बैस की वापसी होगी? क्या बैस राज्यपाल का पद छोड़कर छत्तीसगढ़ में लौट आएंगे? क्या बैस को पार्टी की तरफ से बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी? इन तमाम सावलों का जवाब बैस ने खुद दिया.
शनिवार को चंदखुरी स्थित भगवान राम के मंदिर में रमेश बैस पत्रकारों से रुबरु हुए. उन्होंने अपनी सक्रिय राजनिति पर कहा कि कोई भी ऊपर जाने के बाद नीचे नहीं उतारना चाहता. मेरे लिए हाईकमान जो भी निर्णय लेगा वो उचित होगा. पार्टी ने हमेशा मुझे सहयोग किया, सम्मान दिया. एक गांव का लड़का आज महाराष्ट्र में राज्यपाल के पद पर आसीन है. मेरी अपेक्षाओं से ज्यादा पार्टी ने मुझे दिया. बिना इच्छा पाले पार्टी नेताओं पर छोड़ देना चाहिए. बैस के जवाब से वैसे तो इसके कई अर्थ निकाले जा सकते हैं, बैस को पार्टी हाइकमान का निर्णय मंजूर है. बैस को लेकर पार्टी हाइकमान क्या निर्णय लेगा ये तो समय पर निर्भर करता है. लेकिन छत्तीसगढ़ की मौजूदा राजनिति में भाजपा की क्या स्थिति है उसमें बैस समर्थक बैस की सक्रिय मौजूदगी चाहते हैं और शायद इसे बैस भी बखूबी समझते है.
ये तो बात हुई बैस के सक्रिय राजनीति को लेकर, लेकिन राज्यपाल के अधिकारों को लेकर उनका जो जबाव सामने आया है वो भी महत्वपुर्ण है. दरअसल बीते कुछ घटनाक्रमों में राज्य से लेकर केंद्र तक यह सवाल उठते रहे हैं कि क्या राज्यपाल के अधिकारों की समीक्षा होनी चाहिए ? इस पर रमेश बैस ने कहा कि पहले हर राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होती थी. जिसके कारण विवाद की स्थिति नहीं होती थी. अब अनेक राज्यों में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हैं. सरकार की अपेक्षाएं दूसरी होती हैं. राज्यपाल संविधान से बंधा है. जो संविधान कहेगा उसके अनुसार राज्यपाल को चलना होता है. ऐसे में राज्यपालों पर राजनितिक दबाव बनाना अनुचित है.
आरक्षण बिल के सवाल पर बैस ने कहा कि अगर राज्यपाल के पास कोई बिल भेजा जाए तो समय निर्धारित के लिए प्रावधान नहीं है. कई राज्यों में राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव हो रहा है. टकराव के कारण देरी हो रही है. जब राज्यपाल संविधान से बंधा है तो संवैधानिक स्थिति को देखते हुए निर्णय लेंगे. आज मैं जहां हूं वहां भी संविधान की रक्षा करने के लिए कार्य करता रहूंगा.
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