नई दिल्ली। भारतीय सेना के एक अधिकारी द्वारा जम्मू कश्मीर में एक पत्थरबाज को सेना की जीप के आगे बांधने वाले अधिकारी लीतुल गोगोई को पुरस्कृत किया गया. लेकिन इसे लेकर मचे विवाद के बीच भारतीय थलसेना के मेजर लीतुल गोगोई अब मीडिया के सामने आए हैं. उन्होंने उस दिन की घटना का ब्यौरा सभी के सामने रखा. उन्होंने  कहा कि पिछले महीने पत्थरबाजी से बचने के लिए एक शख्स को जीप में बांधकर मानव कवच के तौर पर इस्तेमाल करने के उनके कदम से कई लोगों की जान बच पाई.

अपनी कार्रवाई पर कई लोगों के उठते सवालों का जवाब देने के लिए मेजर गोगोई को सेना ने उन्हें उठते सवालों का जवाब देने की इजाज़त दी.

उन्होंने बताया कि अगर उन्हें करीब 1200 पत्थरबाजों ने घेर लिया था. अगर वे जीप के सामने उस शख्स को न बांधते तो वहां कम से कम 12 लोगों की जानें चली जातीं.

गोगोई के मीडिया से बातचीत का ये है हिंदी अनुवाद-

घटना 9 अप्रैल को हुई थी. 9 अप्रैल को बड़गाम के लिए एक उपचुनाव होना था. मुझे स्टेट पुलिस और सुरक्षा बलों के साथ समन्वय करके इन उपचुनावों को आराम से संपन्न करवाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी.

सुबह सवा नौ बजे उतलीगाम और गुंदीपुरा के पोलिंग स्टेशन से मुझे फ़ोन आया. फ़ोन पर आईटीबीपी का वहां वहां का आधिकारी था. उसने मुझे बताया कि गुंदीपुरा में मौजूद 400 से 500 लोग पोलिंग स्टाफ़ पर पत्थर फेंक रहे थे और साथ ही उन सभी पर पत्थर फेंक रहे थे जो वहां मौजूद थे. बिना समय नष्ट किये मैं अपनी क्विक-रीऐक्शन टीम के साथ निकल पड़ा. गुंदीपुरा की तरफ जाते हुए हमने कई रोडब्लॉक्स झेले जिसे हमने क्लियर किया और आगे बढ़े. 30 मिनट के अन्दर हम गुंदीपुरा पहुंचे. वहां हमने सिचुएशन कंट्रोल की. लोगों को वहां से भगाया 

इसी के तुरंत बाद फिर से उन्हीं आईटीबीपी ऑफिसर का काल आया . उन्होंने मुझे बताया कि लगभग 1200 लोग उन्हें घेर कर खड़े थे और वो उतलीगाम पोलिंग स्टेशन को जला देना चाहते थे. वो पेट्रोल बम फेंक रहे थे. मैंने जैसे ही ये सुना, मैं तुरंत उधर के लिए निकल पड़ा. वो पोलिंग स्टेशन वहां से डेढ़ किलोमीटर दूर था. मुझे उस रास्ते में भी कई रोडब्लॉक्स मिले. हमने उन्हें भी क्लियर किया और हम उस जगह पर पहुंचे. जब हम वहां पहुंचे, वहां पर खड़े लोग हम पर पत्थर फेंकने लगे. इस भीड़ में बच्चे भी थे और महिलाएं भी. हम अपनी गाड़ी से भी नहीं निकल पा रहे थे. यहां तक कि वो लोग अपनी छत से पत्थर फेंक रहे थे. मैं इस वक़्त अपने मेगाफ़ोन से लगातार ये अनाउंस कर रहा था कि हमें आगे जाने दिया जाए, हम सिर्फ यहां पोलिंग स्टाफ़ और आईटीबीपी के ऑफिसर्स को बचाने आये हैं. मगर किसी ने भी हमारी बात नहीं मानी.

इसी दौरान मैंने एक छोटे आदमी को देखा जो मेरी गाड़ी से 30 मीटर दूरी पर खड़ा था. मैंने तुरंत अपनी क्विक रिस्पांस टीम को कहा कि वो उसे पकड़ें. हम अपनी गाड़ी से तुरंत निकले और उसकी तरफ दौड़ पड़े. वो ही सभी पत्थर फेंकने वालों को बरगला रहा था और बाद में हमें मालूम चला कि वो ही उन सभी का मुखिया भी हो सकता है. हमें अपनी ओर आता देख वो भीड़ की तरफ़ भाग पड़ा. उसने एक बाइक पकड़ी और फ़रार होने की कोशिश करने लगा. लेकिन किसी तरह भारी पत्थरबाजी के बीच हमने उसे पकड़ लिया. उसका नाम था फारुख अहमद दार.

उसे पकड़ने के बाद हमने पोलिंग बूथ की ओर चलना शुरू किया. पोलिंग बूथ पहुंचने से पहले वहां एक आईटीबीपी का एक माइन प्रोटेक्टेड वेहिकल मौजूद था. हमने उसी की मदद लेते हुए पोलिंग स्टेशन की ओर आगे बढ़ना शुरू किया. एक बार जब हम पोलिंग स्टेशन पहुंच गए, मैंने 4 सिविल पोलिंग स्टाफ़, 7 आईटीबीपी के सैनिक और 1 जम्मू कश्मीर पुलिस कांस्टेबल को वहां से बचाया. वहां से हम रोड की ओर चलने लगे.

इसी बीच मेरी गाड़ी एक कीचड़ भरे इलाके में अटक गई. इसे देखकर मेरी गाड़ी पर फिर से पत्थरबाजी होने लगी. इसी बीच पास की एक मस्जिद से अनाउंसमेंट हुआ जिससे लोग इकट्ठे होने लगे. इस बार लोग और भी ज़्यादा उग्र थे. इस बार हम पर पेट्रोल बम फेंका गया. बम फटा नहीं. इसे देखकर मैंने अपने साथियों से कहा कि किसी भी तरह जल्दी से जल्दी गाड़ी को इलाके से बाहर निकाला जाए. उन्होंने ऐसा करने को कोशिश भी की. हम गाड़ी को बचाने की कोशिश कर रहे थे. इसी बीच मैंने भी मेगाफ़ोन पर अनाउंस किया कि हमें जाने का रास्ता दिया जाए जिससे हम लोगों को बचाकर ले जा सकें. लेकिन भीड़ सुन ही नहीं रही थी.

इसी वक़्त पर मेरे दिमाग में उस आदमी को गाड़ी के सामने बांधने का आइडिया आया. और जैसे ही मैंने अपने लड़कों को उसे गाड़ी के सामने बांधने का ऑर्डर दिया, ये देखकर पत्थर फेंकना कुछ देर के लिए बंद हो गया. ये थोड़ा सा वक़्त था जिसमें मुझे मौका मिला कि उस जगह से हम सेफ़ली निकल सकें. मैंने तुरंत ही अपने लड़कों को गाड़ी के अन्दर आने को कहा और हम उस एरिया से बाहर निकल आये.

ये चीज़ें मैंने लोकल लोगों को बचाने के लिए ही की थीं. अगर मैंने गोलियां चलाई होती तो वहां 12 से ज़्यादा मौतें होतीं जो मैंने नहीं किया. लेकिन इस आईडिया के साथ मैंने बहुत से लोगों की जानें बचाईं. वहां पर 1200 लोग थे और साथ में वो लोग थे जिन्हें हम बचाने के लिए पहुंचे थे.

मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा. थैंक यू वेरी मच.

जय हिन्द.