लक्ष्मीकांत बंसोड,डौंडी। आज मातृ दिवस पर हम ममता की एक ऐसी अनोखी कहानी बता रहे हैं, जो आज के दौर में असलियत में भी बहुत कम देखने को मिलती है. कहानी है डौंडी ब्लॉक के किल्लेकोड़ा गांव के कोसमा दंपती की. जिन्होंने एक बेटी को गोद लिया था. यह वह बेटी है जिसे किसी ने पैदा होते ही झाड़ियों में कचरे के ढेर में फेंक दिया था. जिसे सूरज व उनकी पत्नी समुंद ने गोद लेकर नई जिंदगी दे दी. आज यह बेटी अपने पैरों में खड़ी हो गई है और हैदराबाद की एक कंपनी में जॉब भी करती है.

जिस समय सूरज व उनकी पत्नी समुंद बाई ने कृतिका को गोद लिया वे निसंतान थे. शादी को 10 साल हो चुके थे लेकिन उनका कोई बच्चा नहीं था. इस वजह से भी तत्कालीन प्रशासन के अफसरों ने भी इस बच्ची को उन्हीं को सौंप दिया. बच्ची को गोद लेने के 5 साल बाद समुंद की गोद भी भर गई और उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया. आज भी कृतिका और उनकी बहन शुभम में सगी बहनों वाला प्यार है.

मेरे लिए तो धरती के भगवान हैं दोनों

बेटी कृतिका कहती है मैं खुशनसीब हूं, जिसे इस दुनिया में ऐसे मां-बाप मिले. मेरी असली मां कौन रही होगी उससे मुझे कोई मतलब नहीं है. मेरे लिए तो जिन्होंने मुझे गोद लिया वे इस धरती पर भगवान के रूप में हैं. शादी के 15 साल बाद खुद की बेटी होने के बाद भी सूरज व समुंद ने कभी कृतिका को पराई होने का एहसास नहीं होने दिया ना हीं कृतिका को कभी इसका दुख होता है कि उसे किसी ने कचरे में फेंक दिया था.

झाड़ी में पड़ी थी बच्ची, कुत्तें नोंचने को थे तैयार

सूरज कोसमा ने बताया कि वह पहले आदिवासी विकास विभाग के छात्रावास मंगचुआ में चपरासी था. अभी लूरकाझर में पदस्थ है. 10 नवंबर 1998 का दिन था. उस समय उनकी चुनाव ड्यूटी लगी थी. नाहंदा जा रहा था कि रास्ते में उसे झाड़ियों के बीच यह बच्ची नजर आई. आसपास कुछ कुत्ते भी उसकी ओर दौड़ रहे थे. मुझे समझने में ज्यादा देर नहीं लगी. तुरंत झाड़ी के पास पहुंचा कुत्तों को भगाया और इस बच्ची को उठाया. बच्ची की सांसे चल रही थी बचने की आस में मैं उसे डौंडीलोहारा अस्पताल ले आया. जहां लगभग 1 महीने तक बच्ची डॉक्टरों की निगरानी में रही. उस वक्त मैं निसंतान था. पर इस बच्ची के मिलने से मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं भी एक पिता बन गया हूं.

शासन के नियमों के मुताबिक हमने अस्पताल से छुट्टी होने के बाद बच्ची को संबंधित विभाग को सौंपा. लेकिन तत्कालीन कलेक्टर ने आदेश जारी करके बच्ची को देखरेख के लिए हमें सौंप दिया और तब से बच्ची हमारी हो गई. इसका पालन पोषण कर रहे हैं. आज बेटी को इस मुकाम पर देख खुशी होती है.