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लेखक -वैभव बेमेतरिहा

रायपुर। क्यों लिख रहा हूँ मैं ऐसा ? क्यों कह रहा हूँ मैं ऐसा ? पीड़ा है ना….। आपको ना सही मुझे हो रही है। मेरे मन में, मेरे तन में,मेरे जहन में, मेरे रग-रग में, मेरे कण-कण में पीड़ा हो रही है। आपको भी होनी चाहिए। क्योंकि आप तो मन की बात करते हैं। फिर क्या आपने अपने अन्न दाताओं की मन की बात कभी नहीं सुनी ? आप अच्छे दिन की वादे के साथ सत्ता में आए थे। आपका अच्छा दिन क्या यही है ? जहां किसानों की मांग पूरी करना तो दूर आप किसानों पर गोलियां बरसा रहे हैं, अपना अधिकार मांगने वाले किसानों को आप सीधे मरवा रहे हैं।

गजब कर रहे हैं 56 इंच वाले साहब जी। चाय बेचकर पीएम की कुर्सी तक पहुँचे, लेकिन आज किसानों से जुदा उद्योगपतियों से जा घिरे हैं। पीएम बनने के बाद किसानों के बीच कितनी बार पहुँचे मुझे याद नहीं, लेकिन विदेश दौरा खूब कर रहे हैं। करिए इसमें कोई बुराई नहीं है। बुराई तो ये है जनाब जो आपको दिख नहीं रही। देश के हर हिस्से में किसान परेशान है। लेकिन आप बीएसएनल की डैड लाइन पर कहते हैं कि जियो…खूब जियो। क्या खाक जियो। अब तो ये लगता कि जी ही लो..! बीते 3 साल में आप मेक इन इंडिया ही कहते रह गए, डिजिटल भारत में ओडीएफ की नींव ही रखते रह गए। और किसान मरते थे, मरते रहे और मरते गए। किसान आपके दिल्ली दरवाजे तक भी पहुँचे, आप के सामने कपड़े उतार कर भीख भी मांगे। फिर भी तमिल पर आपको जरा सा फिल नहीं हुआ।

क्यों नहीं हुआ ?  क्या आप इतना बेरहम है ?  क्या आपको सिर्फ विदेशी निवेश चाहिए ?  क्या आप अमेरिका, रुस, चीन, जापान ही घूमते रहेंगे ? या कभी जाएंगे विदर्भ, मंदसौर भी, कभी जाएंगे तमिल, छत्तीसगढ़ भी, कभी जाएंगे आंध्र, तेलंगाना, बंगाल भी, या कभी जाएंगे यूपी, राजस्थान भी ? तय कर लीजिए मन की बात वाले मोदी जी पहले आप कहां जाएंगे। क्योंकि जहां जाएंगे वहां के किसान आपकी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। जरा अब जाकर उनके बीच देख ही लीजिए कि किसान किस तरह से मर रहे हैं। निवेशकों और पूंजीपतियों से समय मिले तो निकाल लीजिएगा। कुछ समय किसान भी मांग रहे हैं आप से।

मामा जी आपने सुनी क्या मंदसौर की चीख-पुकार। सुनिए…सुनिए भांजा पूछ रहा है आप से पापा को किसने मार दिया ?मामा जी आपकी भांजी का रो-रोकर हाल बेहाल है, आपकी 5 बहने विधवा हो गई है। आप आए क्यों नहीं अंतिम संस्कार में ?आप रोए क्यों नहीं इस चीख-पुकार में ? आप सुन तो रहे हैं मामा जी,  कुछ कहते क्यों नहीं ? इन हत्याओं का जिम्मेदार कौन है ? कौन है जिन्होंने आपके भांजे-भांजियों से उनसे उनका बापू छिन लिया ?  कौन है जिन्होंने आपके बहनों का सुहाग छिन लिया ?  मामा आप तो शिव है…शिव के राज में ये क्या हो रहा है ? आप नर्मदा को बचाने चले थे अच्छा था, अब हमें बचा लीजिए बड़ी उम्मीदें हैं आप से।

देखिएं ना मध्य का भू-भाग किस तरह भ-भू कर जल रहा है, देखिए ना किसानों का गुस्सा किस तरह निकल रहा है। देखिए ही नहीं बल्कि कुछ करिए भी। किसानों के दुःख को हरिए भी। नही तो जोश और आक्रोश में होश खोते किसान और भी बेकाबू हो जाएंगे, अपने हाथ अपने ही घर जल जाएंगे। मन आपका व्यथित, विचलित हो तो अब देर ना करिए। पूंजीपतियों की चिंता छोड़ किसानों से नाता जोड़िए। क्योंकि अन्नदाता अगर इसी तरह रुठ टूटते जाएंगे, तो यकीन मानिए गुस्सा फूटा है, फूट रहा और फूटते जाएंगे। फिर हालात शायद संभालने ना संभले। जो मौका मिला है आज किसानों की पीड़ा हर पुण्य कमाने का वो शायद ना मिले। नर्मदा में डूबकी लगाकर हर-हर नर्मदे तो कह लेंगे, लेकिन किसानों के लिए कुछ नहीं कर पाए तो भविष्य में खुद को खूब कोसेंगे।
अंत में इस अनंत पीड़ा पर चंद छंद से करूण व्यथा का अंत कर रहा हूँ-

हाय-हाय ये मजबूरी
किसानों से कैसी ये दूरी
यहां पल-पल किसान मरते जाए
और सरकार कुछ ना कर पाए
हाय-हाय ये मजबूरी…..।।।
जोश है आक्रोश है
किसान ये सरफरोश
सड़क पर ये ….भड़क रहें
मिट रहें, मर रहें…तड़प रहें
जान की परवाह नहीं
जां अब जां नहीं
धूं…धूं कर मध्य जल रहा है ।
कैसे कहूँ मेरा देश बदल रहा है ?