नई दिल्ली. मरीजों को भ्रमित करने वाली एक जैसे नाम वाली दवाओं पर लगाम लगेगी. औषधि परीक्षण परामर्श बोर्ड (डीटैब) इससे जुड़े प्रस्ताव पर अगले सप्ताह फैसला ले सकता है. इसके बाद कंपनियों को दवा के ब्रांड का नाम ड्रग कंट्रोलर के पास पंजीकृत कराना होगा और नाम अन्य कंपनी से मिलता जुलता होने पर बदलाव करना अनिवार्य होगा. यह प्रस्ताव एक जैसे नाम वाली अलग-अलग बीमारियों की दवाओं के चलते मरीजों और तीमारदारों में उत्पन्न भ्रम को समाप्त करने को लाया गया है.

मौजूदा समय बाजार में मिलते जुलते या एक जैसे नाम पर वाली कई दवाएं बाजार में हैं. इसकी वजह यह है कि दवाओं के ब्रांड का नाम पंजीकृत कराना अनिवार्य नहीं है. ऐसे में तमाम कंपनियां दवा का शुरुआती नाम किसी चर्चित या जानी-पहचानी दवा के नाम पर रख देती हैं. जैसे एल्फ्लॉक्स एंटीबायोटिक है और एल्फॉक्स मिर्गी की दवा भी है. एल्फ्लॉक्स के साथ नॉरफ्लॉक्सिन जुड़ा है जबकि एल्फॉक्स में ऑक्सकरबाजेपाइन बाद में आता है. इसके अलावा पहला नाम बड़े अक्षरों में होता है जबकि शेष सब कुछ छोटे अक्षरों में लिखा रहता है.

जेनरिक नाम पर होता है दवा का पंजीकरण

डॉ. सुनील दोहरे के मुताबिक कई कंपनियों की दवाओं के नाम मिलते जुलते हैं. ऐसे में मरीज या तीमारदार के भ्रमित होने की स्थितियां पैदा होती हैं, जैसे किसी घर में दो बीमारियों के मरीज हैं और तीमारदार दोनों को भ्रमित होकर दवा बदलकर खिला दे. ऐसे में मरीज को भारी नुकसान की आशंका है. सरकार के एक अधिकारी के मुताबिक, डीटैब 29 नवंबर को इस मुद्दे पर बैठक कर फैसला लेगी. अगर वह प्रस्ताव पर मुहर लगा देती है तो आने वाले दिनों में दवा कंपनियों को ब्रांड का नाम ड्रग कंट्रोलर के पास पंजीकृत कराना होगा. उन्होंने बताया कि ट्रेडमार्क अधिनियम में भी दवाओं का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है.

ऐसे में नई व्यवस्था के तहत भ्रम पैदा करने वाली स्थितियों को समाप्त करने का निर्णय लिया जाएगा. फिलहाल दवा का पंजीकरण उसके जेनेरिक के नाम पर होता है, जबकि आने वाले दिनों में जेनेरिक के साथ ब्रांड का नाम भी कंपनियों को दर्ज कराना होगा और मिलता-जुलता या समान नाम होने पर बदलाव की प्रक्रिया भी होगी.

मिलते-जुलते नामों वाली 10 हजार से ज्यादा कंपनियां

अधिकारी ने बताया कि फिलहाल 10 हजार से भी ज्यादा ऐसी दवाएं बाजार में हैं जिनके नाम मिलते-जुलते हैं. इसकी चपेट में करीब 25 फीसदी दवा बाजार है. याद रहे कि सरकार के सामने कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें एक जैसे नाम की वजह से पनपे भ्रम से मरीज और तीमारदारों को परेशानी झेलनी पड़ी है.  प्रस्ताव पर डीटैब के निर्णय लेने के बाद सरकार एक सरकारी आदेश जारी कर ड्रग कंट्रोलर के समक्ष पंजीकरण कराने की व्यवस्था को लागू कर सकती है. इसके बाद बड़े पैमाने पर बाजार में बिक रही दवाओं के नाम बदल सकते हैं.