रायपुर- अंबेडकर अस्पताल में कथित आॅक्सीजन सप्लाई से बच्चों की मौत के मामले में सरकार ने अपनी जांच में ये बात साफ की हो कि बच्चों की मौत आॅक्सीजन सप्लाई से नहीं हुई, लेकिन इस मामले में जिस तरह से मीडिया रिपोर्टस तैयार की गई, उसे लेकर सरकार की नाराजगी मीडिया पर फूटी है. मेडिकल काॅलेज के सभागार में मुख्यमंत्री बाल मधुमेह सुरक्षा योजना के शुभारंभ के मौके पर स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्रकार ने मीडिया का नाम लिए बगैर जमकर भड़ास निकाली. उन्होंने मीडिया का नाम लिये बगैर कहा कि- जो विशेषज्ञ नहीं हैं, वह भी विशेषज्ञ बन रहे हैं. माॅकड्रिल कराकर ऐसे विशेषज्ञों को मैं आॅक्सीजन सप्लाई कैसी होती हैं, इसकी जानकारी दे सकता हूं.  स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर ने अपने भाषण के दौरान ज्यादातर वक्त मीडिया को कोसने में लगाया. उन्होंने कहा कि-

मैं आज अपने बारे में बात कहूंगा, मैं एक संसदीय कार्यमंत्री हूं. मुख्यमंत्री हर बार मुझे ये जिम्मेदारी दे देते हैं. संसदीय कार्यमंत्री का मतलब ये है कि लोकतंत्र में जब हम हाउस चलाते हैं, तो हमारा असहमत होने का अधिकार है, असहमत होने का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है. मेरा विषय हिन्दी साहित्य रहा है. अभी कुछ दिन पहले इस अस्पताल में हुई एक घटना बहुत ही अतिरंजित रही. व्यवस्था के आलोचकों का हम सम्मान करते हैं, क्योंकि इससे आम जनता और मरीजों को लाभ होता है. लेकिन उस व्यवस्था पर, उस सिस्टम के जो विशेषज्ञ नहीं हैं, वह भी विशेषज्ञ बन रहे हैं. जब छत्तीसगढ़ बना तो अंबेडकर अस्पताल में 98 विशेषज्ञ डाॅक्टर थे. तब से लेकर अब तक इस अस्पताल में कई विभाग खुल गए. मध्य भारत का सबसे बड़ा कैंसर यूनिट खुल गया. इतना ही नहीं प्रदेश के सभी 27 जिलों में अस्पताल खुल गया. रमन सरकार सामाजिक क्षेत्र में सबसे ज्यादा बजट खर्च कर रही है. मुख्यमंत्री बाल हृदय सुरक्षा योजना, मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना,  मुख्यमंत्री बाल मुधमेह सुरक्षा योजना जैसी योजनाएं बनाई, जो देश में नजीर है. इस तरह की योजना को कोई दूसरा आदमी नहीं बना सकता, सिवाय छत्तीसगढ़ को जानने वाला, लेकिन मेरे आलोचकों और समीक्षकों ने इस दिशा में कभी ध्यान नहीं दिलाया कि ऐसी योजनाएं बनाई जा सकती है. मुझे ये बताये कि इन योजनाओं को लेकर कभी पेपर के किसी काॅलम में लिखा गया. यदि कोई खामी लिखी जाएगी, तो सरकार उसे जरूर सुधारेगी. क्या नई योजना छत्तीसगढ़ में शुरू की जा सकती है, इसे लेकर कभी कोई लेख पढ़ने को नहीं मिला. संस्थागत प्रसव छत्तीसगढ़ में 67 फीसदी पर आ गया है, लेकिन इसे लेकर कभी कोई आलेख नहीं पढा.  टीकाकरण का प्रतिशत प्रदेश में कितना हो गया, हमारे जागरूक लोगों ने इस विषय पर क्यों नहीं लिखा ?  मुख्यमंत्री शहरी स्वास्थ्य योजना के तहत निकाय क्षेत्रों में महिला आरोग्य समिति बनाई गई. ये सब मुमकिन हो पाया है मुख्यमंत्री जैसे एक संवेदनशील आदमी की वजह से. हम कभी किसी के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते. मैं कई बार भाषणों में बोलता हूं कि ऐसा कोई राज्य बताए जिसने एक दशक में 5 मेडिकल काॅलेज सुदूर इलाकों में खोला हो. छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व में स्वास्थ्य सेवाएं सभी सूचकांकों में देश के दूसरे राज्यों की तुलना में आगे रहा है. ये गरीबों का अस्पताल है. पैसे वालों का नहीं है. छोटी चीजों की वजह से इसका भरोसा खंडित ना करे. फैक्लटी के हिसाब से, डाॅक्टरों के हिसाब से, सुविधाओं के हिसाब से सबसे बेहतर कोई अस्पताल है, तो वह रायपुर का अंबेडकर अस्पताल हैं.

मैं यह व्यथीत भाव श्याम सुंदर की पक्ति पढ़ रहा हूं-  एक अच्छे आलोचक में इन गुणों का होना आवश्यक है. निष्पक्षता, साहस, सहानुभूति, दृष्टिकोण, इतिहास का ज्ञान, देसी विदेशी साहित्य का ज्ञान, इन गुणों के अभाव में कोई आलोचक किसी रचना के गुण दोष को रेखांकित कर सकता है, लेकिन उसके अंदर तक पैठ पाने की क्षमता उसके पास नहीं होगी. ऐसी पल्लवरहित आलोचनाएं ना तो पाठकों को दिशा दे पाती है और ना ही न्याय कर पाती है. श्याम सुंदर जी की पंक्ति है, इसे मैं कुछ लोगों को बिना नाम लिए समर्पित करता हूँ.

 

स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्रकार के भाषण का अधिकांश हिस्सा कथित आॅक्सीजन सप्लाई बाधित होने से बच्चों की मौत होने के मामले में मीडिया रिपोर्ट्स को लेकर रही. इधर मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह ने मेडिकल काॅलेज हाॅस्पीटल प्रबंधन, डाॅक्टरों, नर्सेंज को लेकर कहा कि –

थोड़ी बहुत आचोलना नहीं होगी, तो हम सतर्क नहीं होंगे. लेकिन इसकी चिंता नहीं करनी है. जिस पेड़ में फल होते हैं, उसी पेड़ में पत्थर मारते हैं. हर रोज मेरा कम से कम एक पुतला जलता है, पिछले 14 सालों से जल रहा है. इससे मेरी ही उम्र बढ़ रही है. यहां डाॅक्टर्स और नर्स अच्छा काम कर रहे हैं. थोड़ा बहुत पेपर में कुछ छपता है, तो इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं टेलीविजन देखता रहता हूं, जिस चैनल में मेरी सबसे ज्यादा बुराईय़ां होती है, मैं उसे ही ज्यादा देखता हूं. मेरी धर्मपत्नि कहती हैं कुछ और देख लिया करो, लेकिन मैं कहता हूं कि ये सब देखकर ये समझ लूं कि मुझे ठीक क्या करना है.