राकेश चतुर्वेदी, भोपाल। मध्यप्रदेश में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2018 से 2023 के इस कार्यकाल का साढ़े चार साल बीत चुका है। साल खत्म होते-होते जनता फिर अपनी सरकार चुनेगी। यानी एक बार फिर जनप्रतिनिधियों की आवाम की उम्मीदों पर खरा उतरने की बारी है। एमपी की 230 विधानसभा सीटों में मौजूदा हालात क्या हैं, क्षेत्र की क्या स्थिति है, कौन सा विधायक कितने पानी में है ? इन सभी का जवाब अब विधायक जी का रिपोर्ट कार्ड (vidhayak ji ka Report Card) देगा. लल्लूराम डॉट कॉम आपको सूबे के सभी विधायकों की परफॉमेंस और उनके क्षेत्रों की जमीनी हकीकतों के बारे में बताने जा रहा है। विधायक जी का Report Card में आज बात अशोकनगर जिले की मुंगावली विधानसभा सीट की।

मध्यप्रदेश में एक ऐसी अनूठी विधानसभा है, जहां एक बार चुनाव और दो बार उपचुनाव हो चुके हैं। तीन में से दो बार कांग्रेस ने तो एक बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है। सबसे अहम बात ये है कि तीनों चुनाव जीतने वाला चेहरा एक ही है। ये चेहरा चौथी बार भी प्रत्याशी बनने की दौड़ में शामिल है।

हम बात कर रहे हैं अशोकनगर जिले की मुंगावली विधानसभा सीट की। मुंगावली सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के वर्चस्व वाला इलाका और लंबे समय से यहां कांग्रेस काबिज है। कांग्रेस की गढ़ कही जाने वाली इस सीट को हथियाने के लिए बीजेपी ने कई जतन किए, लेकिन बीजेपी तब कामयाब हो पाई जब यहां के विधायक सिंधिया के साथ कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए। इस सीट पर चुनावी मुददों में जातिगत समीकरण हार-जीत का फैसला करते आए हैं।

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जातिगत समीकरणों के अलावा अन्य मुददों की बात करें तो बेरोजगारी का मुद्दा भी चुनावी मौसम में जमकर गूंज रहा है। मुंगावली में उद्योग लगाने की मांग सालों पुरानी है। पलायन रोकने के लिए यहां उद्योग लगाने हर बार चुनाव में वादा किया जाता है, लेकिन इस बार भी उद्योग लाना वादों तक ही सीमित है। किसानों के लिए जरूर क्षेत्र में कई सिंचाई परियोजनाएं लाई गई हैं तो नल-जल योजना का काम भी यहां तेजी से चल रहा है। चुनाव में बीजेपी इसे ही असल मुद्दा बनाए हुए है। इधर, कांग्रेस विधायक के दलबदल को चुनावी मौसम में भुनाने के प्रयास में जुटी है। कांग्रेस अवैध उत्खनन का मुद्दा भी लोगों के बीच उठाने के प्रयास में जुटी है।

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सिंधिया समर्थक प्रत्याशी की जीत का ट्रेंड

यह विधानसभा सीट कांग्रेस के कब्जे वाली है। 2013 में कांग्रेस के महेंद्र सिंह कालूखेड़ा विधायक चुने गए थे। 2018 में कालूखेड़ा का निधन होने के बाद हुए उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक बृजेन्द्र सिंह यादव जीते। उपचुनाव में बृजेंद्र सिंह ने बीजेपी की बाई साहब यादव को हराया था। 2018 में बृजेंद्र सिंह यादव फिर जीते और बीजेपी के कृष्ण पाल सिंह यादव को 2136 वोटों से हराया था। सिंधिया के साथ बीजेपी में आकर बृजेन्द्र यादव ने फिर चुनाव जीता। कांग्रेस प्रत्याशी कन्हैयाराम लोधी को 21 हजार वोटों से हराया था। मतलब यहां सिंधिया समर्थक का जीतना तय माना जाता है।

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ये हैं चुनावी मुद्दे

इस विधानसभा में सबसे बड़ा चुनावी मुददा जातिगत समीकरण हैं। बेरोजगारी का मुददा भी इसबार चुनाव में गूंजेगा। यहां उद्योग लगाने की मांग सालों से उठ रही है और पलायन सबसे बड़ी समस्या है। किसानों के लिए सिंचाई परियोजनाएं लाई गई हैं। बीजेपी विकास को मुददा बनाए हुए है, वहीं कांग्रेस दलबदल पर जोर दे रही है। अवैध उत्खनन का मुददा अभी से गूंज रहा है।

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विधानसभा का जातिगत समीकरण

यह विधानसभा यादव जाति बाहुल्य क्षेत्र है। यहां अनुसूचित जाति व जनजाति के 47 हजार मतदाता तो 40 हजार यादव समाज के वोट है। इसी तरह लोधी समाज के वोट 19 हजार तो दांगी मतदाता 15 हजार के करीब है। अन्य जातियों में कुशवाह- 9 हजार, गुर्जर- 6 हजार, मुस्लिम- 7 हजार और ब्राह्मण- 5 हजार हैं।

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बीजेपी और कांग्रेस के संभावित दावेदार

इस विधानसभा क्षेत्र में दावेदारों की बात करें तो बीजेपी से वर्तमान विधायक बृजेंद्र सिंह यादव सबसे प्रबल दावेदार हैं। परांपरागत रूप से उनका दावा भी बनता है। उनके अलावा राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त अजय प्रताप यादव भी दावेदारी जता रहे हैं।कांग्रेस की ओर से जिला पंचायत सदस्य यादवेंद्र सिंह यादव टिकट की दौड़ में आगे बताए जा रहे हैं। गुना-अशोकनगर लोकसभा से बीजेपी सांसद केपी यादव के छोटे भाई अजय पाल सिंह यादव और 2018 में चुनाव लड़ चुके कन्हैयाराम लोधी भी दावेदारों में शामिल बताए जाते हैं।

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