पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। जनजातियों के समुचित उत्थान के लिए प्रशासन योजनाओं के सफल क्रियान्वयन का भले लाख दावा करे पर जनजाति बहुल पंचायत आमामोरा और ओड़ के आश्रित ग्राम हथौड़ाडीह, नगरारा और कुकरार निवासी 50 से भी ज्यादा कमार परिवार के घरों में लटक रहे ताले प्रशासन के दावों की सचाई बयां कर रहे हैं. उल्लेखित गांव में ज्यादातर घरों में ताला लटके है, कुछ घरों में बच्चे और वृद्ध भर नजर आए. पलायन करने वाले ज्यादातर जोड़ो में पलायन कर गए हैं. हथौड़ा डीह के ग्रामीण रूपसिंह कमार ने बताया कि मनरेगा में यहा काम की कमी है.हालात ऐसे बन जाते हैं कि घर में सब्जी-भाजी जुटाना मुश्किल हो जाता है. बांस बर्तन बना कर किसी तरह पहले गुजारा हो जाता था, लेकिन अब कच्चा माल नहीं मिल पाता. आंध्र के लोग दलालों के माध्यम से संपर्क करते हैं, एक एक परिवार को 25-25 हजार का एडवांस पैसे दे जाते हैं.

सुस्त है सिस्टम, मटेरियल काम के लिए कमीशन देना पड़ता है – सरपंच

ओड़ पंचायत के सरपंच राम सिंह सोरी विशेष जनजाति के हैं. सोरी ने कहा की वे सरपंच बन कर जनजाती के लिए भरपूर काम कराएंगे, बांस बर्तन बनाने के परंपरागत काम को भी आगे बढ़ाएंगे. सोरी ने कहा ऐसा वो नहीं कर सके, 3 साल से ज्यादा हो गए उनकी खुद को दशा नहीं सुधार पाए. मनरेगा में मजदूरी मूलक काम है, मटेरियल काम के तहत भवन निर्माण और रपटा का काम भी गांव पहुंचे कलेक्टर ने दिया है. लेकिन काम करने वाले कोई नहीं है. उनकी समस्या प्रशासन तक ले जाने वाले कोई नहीं है. समस्या जा कर भी बताए तो सुनने वाले भी नहीं. मजदूर के लिए काम है पर मजदूर नहीं हैं. मटेरियल काम इसलिए नहीं मिलता क्योंकि जिले में मांगे जाने वाले 5 प्रतिशत कमीशन हम देने में सक्षम नहीं है. सरपंच ने हथौड़ा डीह और नागरार से हुए पलायन की बात स्वीकार करते हैं. बताया कि 300 मजदूर में से 80 का खाता बैंक से लिंक नहीं है.कई के जॉब कार्ड भी नहीं बने हैं. विधान सभा चुनाव के बाद ज्यादातर मजदूर पलायन कर गए हैं. राशन कार्ड छोड़ के गए हैं इसलिए अपडेट हो गया, लेकिन आवास आबंटन की प्रक्रिया अधूरी है. ये लोग लोकसभा चुनाव तक नहीं आयेंगे, जुलाई में ही आना होता है.

15 से ज्यादा छात्र भी पलायन सूची में शामिल, 2 को ला पाए मास्टर

दोनों पंचायत में मौजूद आश्रम में 15 से भी ज्यादा स्कूली छात्र भी पालकों के साथ पलायन कर गए हैं. इनमें से 10 ओड आश्रम के हैं. आश्रम अधीक्षक संतु राम ध्रुव ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि तेलंगाना में जाने की सूचना पर डेढ़ माह पहले हम लोग बच्चों को लाने गए थे, वापस लाना रिस्की भी था. भारी मशक्कत के बाद केवल दो बच्चों को ही वापस ला पाए. हमारे 8 बच्चे आज भी पलायन कर गए पालकों के साथ हैं.

पलायन के वजह जानिए जो ग्रामीणों से चर्चा के बाद समझ में आया

भुगतान में देरी, खाता भी लिंक नहीं – दोनो पंचायत मिला कर लगभग 700 मजदूर इन पंचायत में है, डेढ़ सौ मजदूरों का खाता से आधार लिंक नही है. ऐसे में मस्टरोल क्रिएट तो होता है कर मजदूरी का भुगतान खाता में नही जा पाता.लंबे समय भुगतान में लगने के कारण भी कई लोगो का काम से मोह भंग हो गया.

दूरी पर बसा, प्रशासन के साथ समन्वय नहीं – आमा मोरा और ओड़ पंचायत का अपना पंचायत सचिव नहीं है,धवलपुर के पंचायत सचिव गीता मरकाम को दोनो पंचायत का अतरिक्त प्रभार दिया गया है.धवलपुर से इन पंचायतों की दूरी 30 किमी है. हाल ही में रास्ता बनना शुरू हुआ है, पहले यहां जाने के लिए दिन भर लग जाते है. ग्रामीणों ने कहा की सचिव सप्ताह भर में एक पंचायत के दो दिन ही समय दे पाते हैं. ऐसे में इनकी समस्या का उचित समाधान नहीं हो पाता.

परम्परागत काम ठप हुआ – कमार जन जाति के पलायन करने के पीछे उनके परम्परागत काम का ठप्प होना भी है. ग्रामीणों ने बताया की बांस बर्तन बनाने कर पर्याप्त कमाई हो जाती थी. लेकिन उन्हें अब कच्चा सामग्री उपलब्ध नहीं होता. इनके उत्थान के लिए सालो साल कई काम हुए पर वास्तविक मदद पथरीली और पहुंच विहीन रास्तों होने के कारण फाइलों में अटक गई. काम कागजी दिखाया गया पर जांच और निरक्षण के अभाव में हक से वंचित हो गए कमार.

मनरेगा में कार्य आबंटन की समीक्षा की जरूरत

कांग्रेस सरकार के समय पंचायत से संचालित होने वाली निर्माण कार्य की कई योजनाएं बंद हो गई थी. रोजगार गारंटी के कार्य ही एक मात्र विकल्प था, लिहाजा इस काम की मांग बढ़ गई. काम के दो कैटेगरी थे. मजदूर मूलक के बजाए सामग्री पर व्यय होने वाले काम को पाने कमीशन का रिवाज शुरू हो गया. कांग्रेस कार्यकाल में इस काम के लिए 10 प्रतिशत तक कमीशन दे जाते थे,जो से पाने में सक्षम थे उनके पंचायतों में जिला पंचायत काफी मेहरबान था. लेकिन जो टास्क पुरा नहीं कर पाते थे उन्हें मजदूरी मूलक काम थमा दिया जाता था. इस काम को कराने में भी पंचायत ज्यादा रुचि नहीं ले पाते थे. सरकार बदलने के बाद कई सिस्टम बदले गए लेकिन मनरेगा में कमीशन का खेल 10 से घट कर 5 प्रतिशत हुआ. लेने की पुष्टि या शिकायत अब तक नहीं हुई है,लेकिन कार्य आबंटन की समीक्षा करेंगे तो पता चलेगा कि कई पंचायत ऐसे हैं जो अनुपात से ज्यादा मटेरियल फायदेमंद काम पा गए. वहीं कई पंचायत आज भी ऐसे काम के लिए तरसते दिखेंगे.