धमतरी। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में गंगरेल की खूबसूरत वादियों के बीच माता अंगारमोती विराजमान है. मां अंगारमोती 52 गांवों की अधिष्ठात्री देवी कहलाती है. मां अंगारमोती की ख्याति धमतरी जिले के अलावा छत्तीसगढ़ के साथ ही अन्य राज्यों तक फैली हुई है. कहा जाता है कि इस सिद्धपीठ से कोई श्रद्धालु निराश होकर नहीं लौटता. यही वजह है कि हर नवरात्र में आस्था की ज्योत जलाने दूरदराज के लोग यहां पहुंचते हैं. वहीं मां अंगारमोती के दर्शन करने दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं.
अंगारा ऋषि की पुत्री है मां अंगारमोती
मां अंगारमोती का दरबार बीते 600 साल के इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए हैं. 1972 में जब गंगरेल बांध का निर्माण हो रहा था, उस समय 52 गांव डूब गए. इसके बाद भक्तों ने नदी के किनारे माता का दरबार बना दिया. मान्यता के अनुसार माता अंगारमोती ऋषि अंगारा की पुत्री है, इस वजह से इनका नाम अंगारमोती पड़ा. पुजारी की मानें तो सभी वनदेवियों की बहन मानी जाने वाली इस मां को शुरू से ही खुली वादियां ही पसंद है. ऐसी मान्यता है कि इनके चमत्कार से कई नि:संतान महिलाओं की गोद भरी है.


मछुआरों के जाल में फंसकर निकली थी अंगारमोती
माता अंगारमोती का जिले में दो स्थानों पर प्रतिमा स्थापित है. गंगरेल में माता का पैर स्थापित है, वहीं रुद्रीरोड सीताकुंड में माता का धड़ विराजमान है. यह धड़ पास के तालाब में मछुआरों के जाल में फंसा मिला, मछुआरों ने इसे मामूली पत्थर समझकर वापस तालाब में ही डाल दिया. फिर गांव के ही एक व्यक्ति को माता का स्वप्न आया कि उसे तालाब से निकालकर पास के ही झाड़ के नीचे स्थापित किया जाए. इसके बाद गांव वालों के सहयोग से फिर यहीं माता की स्थापना की गई.
महिलाएं बिना पल्लू लिए करती हैं पूजा
आपने हर मंदिरों में महिलाओं को सिर में पल्लू रखे देखा होगा, लेकिन इस मंदिर में महिलाएं बिना पल्लू लिए शीश नवाकर मां अंगारमोती से प्रार्थना करती हैं. लोगों का कहना है कि उन्होंने इस दरबार में माता की शक्ति को कई बार महसूस किया है. भक्तों का कहना है कि मां अंगारमोती अपने दरबार में आए भक्तों को खाली हाथ नहीं भेजती है.
हर साल दिवाली के पहले शुक्रवार को लगता है मेला
कहा जाता है कि चवरगांव के बीहड़ में मां अंगारमोती स्वंय प्रकट हुई और अपने प्रभाव से पूरे इलाके को आलौकित कर दिया. जब 1972 में गंगरेल बांध बनने से पूरा गांव डूब गया तो भक्तों ने नदी के किनारे माता का दरबार बना दिया. तब से इस दरबार में आस्था की ज्योत जलने का सिलसिला शुरू हुआ, जो आज तक जारी है. वहीं हर साल दीपावली के बाद पहले शुक्रवार को गंगरेल में मां अंगारमोती के प्रांगण में मड़ई का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों भक्त पहुंचते हैं. मंदिर में निःसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति की मन्नत लेकर पहुंचती हैं.

निसंतान महिलाओं को मिलता है संतान सुख
मान्यता के अनुसार, जिन भी महिलाओं की संतान नहीं होती है वह मां अंगारमोती मड़ई में पहुंचकर अंगारमोती मंदिर के प्रांगण से परिसर तक पेट के बल लेटकर, बालों को खोलकर, हाथों में नारियल, अगरबत्ती, नींबू और फूल लेकर संतान सुख की प्राप्ति के लिए मन्नत भी मांगती है. मड़ई के दौरान देवी देवता और डांग मंदिर से होकर आगे बढ़ते हैं और इसके बाद ढेर सारे बैगा महिलाओं के ऊपर से गुजरते हैं. ऐसी मान्यता है कि जिस भी महिला के ऊपर बैगा का पैर पड़ता है उसकी गोद जरूर भर जाती है.
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