इमरान खान,खंडवा। मध्यप्रदेश में निकाय चुनाव का भुगुल बज चुका है. दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं. हर कोई अपनी जीत के दावे भी कर रहा है, लेकिन इन दावों की हकीकत क्या है ? Lalluram.com के खास कार्यक्रम “public metre ” में आपको बताएंगे. खंडवा नगर निगम में पिछले 20 सालों से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा है. आखरी चुनाव में भाजपा के सुभाष कोठारी ने कांग्रेस के अजय ओझा को बेहद कम अंतर से शिकस्त दी थी. वही प्रत्यक्ष प्रणाली से अब तक हुए 4 चुनावों में बीजेपी के महापौर उम्मीदवार ही जीत हासिल करते आए हैं.लेकिन इस बार यहां का राजनीतिक गणित कुछ बदले से नजर आ रहे है. नगर सरकार का दारोमदार इस बार महिलाओं के कांधे पर रहेगा. खंडवा नगर निगम महापौर सीट ओबीसी वर्ग की महिला के लिए आरक्षित हुई है.

वही नगर के 50 वार्डों में से 25 वार्डों का आरक्षण अलग–अलग वर्ग की महिला उम्मीदवारों के लिए हुआ है. यानी इस बार शहर विकास का पूरा जिम्मा महिलाओं पर रहेगा. हालांकि इसके पहले कांग्रेस की अणिमा उबेजा और बीजेपी की भावना शाह महापौर रही हैं. लेकिन इस बार शहर के 50 फीसदी वार्डो का आरक्षण महिलाओं के लिए होने से यह कहा जा सकता है कि अब नगर सरकार की चाबी महिलाओं के हाथ में होगी. खंडवा नगर निगम क्षेत्र में मतदाताओं के गणित पर नजर डालें तो खंडवा नगर निगम के 50 वार्डो में कुल 195 मतदान केंद्रों है. 1,75,644 मतदाता वोट डालेंगे. इसमें 87,574 पुरुष, 88,039 महिला और 31 अन्य मतदाता शामिल है.

अब हम बात करते हैं खंडवा के विकास और विस्तार को लेकर किए गए अब तक के प्रयासों की और जमीनी हकीकत की. जब भी विकास की बात होती है, तो सबसे पहले पेयजल की ही बात आती है. खंडवा शहर में पेयजल आपूर्ति के लिए नगर निगम अब तक डेढ़ सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की धनराशि खर्च कर चुकी है. बावजूद इसके गर्मी का मौसम शुरू होने के पहले ही पानी की किल्लत शुरू हो जाती है. लोग टैंकरों से पानी लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं. कई दिनों के अंतराल से नलों में पानी आता है.

इसका मुख्य कारण नर्मदा जल की बार-बार फूटती पाइप लाइन, जिसका अब तक कोई स्थाई निदान नहीं हुआ है. पाइप लाइन फूटने से शहर में जल संकट और अधिक गहरा जाता है. फ्लैट रेट पर ₹200 प्रतिमाह की दर से जलकर का भुगतान करने पर भी लोगों को अपनी जरूरत का पानी नहीं मिल पाता है. जलसंकट खंडवा नगर की सबसे बड़ी समस्या है. शहर की सड़कों की हालत भी कुछ खास नहीं है. शहर की अधिकांश सड़कें गड्ढों में तब्दील हो गई हैं और कहीं पैच वर्क करके काम चलाया जा रहा है. सड़कों के निर्माण में गुणवत्ता की कमी भी यहां पर एक बड़ा मुद्दा रहा है. इसके साथ ही शहर के मुख्य बाजारों में पसरे पक्के अतिक्रमण यातायात में बाधक बनते हैं, जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.

आलम यह है कि शहर की तंग गलियों में आगजनी जैसी घटनाएं होने पर फायर ब्रिगेड तक अंदर नहीं जा पाती है. शहर के लोग पार्किंग के लिए लंबे अरसे से तरस रहे हैं. शहर के मुख्य बाजारों में पार्किंग ना होने के चलते लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. शहर के कई वार्ड ऐसे हैं, जहां पर ना सड़क है, ना पानी है, ना बिजली के खंभे पर जलती हुई ट्यूबलाइट है. लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरसते हुए दिखाई पड़ते हैं. नगर के सिविल लाइन क्षेत्र में बरसों से बन रहा स्विमिंग पूल अब तक अधूरा है.

शहर के व्यापारियों ने मिलकर जनभागीदारी से रुपए जोड़कर इसका निर्माण कार्य को शुरू करवाया था. इसके बाद में इसकी जिम्मेदारी नगर निगम को दे दी गई और फिर से नया टेंडर होने के बावजूद यह स्विमिंग पूल अब तक अधूरा पड़ा है. शहर में व्यापार–व्यवसाय को बढ़ाने के उद्देश्य से कई साल पहले ग्रोथ सेंटर और ट्रांसपोर्ट नगर बनाने की कवायद भी हुई. ग्रोथ सेंटर तो बना, लेकिन एक दो  के अलावा कोई औद्योगिक संस्थान आए और ना ही रोजगार पैदा हुए. वही ट्रांसपोर्ट नगर अब तक अधूरा पड़ा हुआ है. अब बात करें दावेदारों की तो कांग्रेस ने यह से आशा मिश्रा को अपना प्रत्याशी घोषित किया. वही भाजपा से अमृता यादव को टिकट मिला है.

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