भारत एक ऐसा देश है, जहां कई अनसुलझे रहस्यों और घटनाओं के बारे में सुनने को मिलेगा. ये रहस्य ऐसे हैं, जिनका तोड़ विज्ञान के पास भी नहीं है. कर्नाटक के हम्पी (Hampi) में भी आपको कुछ ऐसे अनसुलझे रहस्य देखने को मिल जाएंगे. यहां का विट्ठल मंदिर शानदार कला का नमूना पेश करता है. जिसे देखने पर्यटकों की भीड़ यहां हमेशा ही रहती है. लेकिन जब वो यहां के पिलर्स को छूते हैं, तो वो हैरान हो जाते हैं. दरअसल, ये म्यूजिकल पिलर्स के नाम से जाने हैं. यही इस मंदिर की खासियत है, की पिलर्स से संगीत कैसे निकलता है, इसके बारे में रहस्य आज भी बना हुआ है. आइए जानते हैं और क्या खास है इस मंदिर में.

Hampi के पर्यटक आकर्षण के केंद्र के तौर पर लोगों में पॉपुलर विट्ठल मंदिर की भव्यता देखने लायक है. मंदिर के अंदर जाते हैं, इसकी सुंदरता के आप दीवाने हो जाएंगे. एक विशाल परिसर और सुंदर मंडपों से लेकर लंबे हॉल और छोटे-छोटे मंदिरों तक, यहां आपको शानदार नजारे देखने को मिलेंगे.

खंभों से निकलता है संगीत

मंदिर में 56 संगीतमय खंभे हैं, जो सारेगामा पिलर्स के तौर पर भी प्रसिद्ध हैं और इन खंभों में से संगीतमय निकलता है जब कोई इन खंभों को छूता है, पिलर्स से निकलने वाले संगीत स्पष्ट रूप से सुना जा सकता है. ये खंभे छत को सहारा देता है और मंदिर के मुख्य खंभों को म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स के आकार में स्टाइल किया गया है. साथ ही, मुख्य स्तंभ सात छोटे स्तंभों से घिरा हुआ है और इन स्तंभों से आने वाले स्वरों की आवाज अलग होती है. चंदन की लकड़ी से खंभे पर मारने पर यहां से आपको संगीत सुनाई देगा.

15वीं सदी में बना मंदिर

विट्ठल मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी के दौरान किया गया था. भगवान विट्ठल को समर्पित इस मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के देवराय द्वितीय ने करवाया था. यही कारण है कि मंदिर को विजय विट्ठल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. भगवान विष्णु को ही विट्ठल के नाम से जाना जाता है.

मंदिर में हैं 2 गर्भ गृह

मूर्तियों को भीतर के गर्भगृह में रखा गया है और यहां केवल मुख्य पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं. छोटा गर्भगृह आम जनता के लिए खुला है जबकि स्मारकीय सजावट बड़े गृह में देखी जा सकती है.

रथ के आकार का मंदिर

इस मंदिर के परिवेश में मौजूद एक पत्थर का रथ इस मंदिर का एक अन्य प्रमुख आकर्षण है. इसे गरुड़ मंडप कहते हैं. यह भारत में तीन प्रसिद्ध पत्थर रथों में से है,अन्य दो कोणार्क (ओड़िशा) और महाबलीपुरम (तमिलनाडु) में हैं. द्रविड़ शैली में निर्मित, रथ पर नक्काशी की गई है जिसमें पौराणिक युद्ध के दृश्य दिखाए गए हैं. दो विशालकाय पहियों पर खड़े होकर दो हाथी रथ को खींचते हुए दिखाई देते हैं. यह पत्थर का रथ इकट्ठे किए गए कई छोटे पत्थरों से बना हुआ है. विजयनगर साम्राज्य के अंत में सेना के आक्रमण से पत्थर का रथ आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया था.