आज शनिवार है. आज शनिदेव को प्रसन्न करने उनकी विधि विधान से पूजा की जाती है. जिन पर शनि की महादशा है वह भी उनकी विशेष पूजा करते है.

लेकिन आज हम आपको ऐसी एक कथा बता रहे है, जिसमें एक ऋषि पुत्र ने शनिदेव को ब्रम्हा जी से वरदान मिलने के बाद भष्म करने अपनी नेत्र दिखाई थी. ये कथा बहुत कम लोग जानते है. लल्लूराम डॉट कॉम का ये वीडियो उन लोगों को जरूर देखने चाहिए जिन पर शनिदेव की महादशा चल रही है. क्योंकि इससे बचने के लिए ब्रम्हा जी से उक्त ऋषि पुत्र ने ही वरदान मांगा था.

ये है पूरी कथा

बहुत समय पहले एक ऋषि थे, उनका नाम था कौशिक और उनके पुत्र थे पिप्पलाद. एक बार पिप्लाद की क्रोध भरी मारक दृष्टि के प्रकोप से शनिदेव सीधे नीचे जमीन पर आ गिरे और उनका एक पैर टूट गया और तब से शनिदेव दिव्यांग यानी उनका पैर नहीं रहा.

पुराणों में वर्णित है कि यह घटना त्रेतायुग की है. हुआ यूं था कि धरती पर एक बार भयानक अकाल पड़ा. इस अकाल में ऋषि कौशिक और उनके पुत्र को भी हानि उठनी पड़ी. ऋषि को अपनी भूख मिटाने के लिए सूखे पत्ते भी खाने पड़े.

उनका पूरा परिवार अकाल में मारा गया. एक दिन आकाश में भ्रमण कर रहे देवर्षि नारद ने ऋषि कौशिक को देखा. उनकी दशा दीन-हीन थी. तब वह उनसे मिले और उन्हें श्रीहरि की पूजा करने का आग्रह किया. इस तरह ऋषि कौशिक की पूजा से श्रीहरि प्रसन्न हुए और उन्हें स्वास्थ्य, ज्ञान और संतान का वर दिया.

ऋषि ने अपना घर बसाया और प्रभु की भक्ति में लीन हो गए. समय बीतता गया और उनके घर में पिप्लाद जन्में. जो आगे चलकर ऋषि पिप्लाद के नाम से प्रसिद्ध हुए. लेकिन पिप्लाद का जीवन कष्टों से भरा हुआ था. तब एक दिन पिप्लाद को पता चला कि उनकी परेशानियों का कारण शनिदेव है. तब उनको काफी गुस्सा आया. और उन्होंने आसमान में भ्रमण कर रहे शनिदेव को क्रोध भरी नजरों से देखा.

तब शनिदेव सीधे धरती पर गिर गए और उनका एक पैर टूट गया. पिप्लाद शनिदेव को शाप देने ही वाले थे कि वहां ब्रह्माजी प्रकट हुए और उन्होंने पिप्लाद को बताया. इस पूरे घटनाक्रम में शनिदेव की कोई गलती नहीं है. बल्कि यह विधि का विधान है.

तब ब्रह्माजी ने पिप्लाद से कहा जो भी शनिभक्त पिप्लाद का मन में ध्यान रखते हुए शनिदेव की पूजा-अर्चना और आराधना करेगा।.वह उसे शनिदेव की कृपा जल्द प्राप्त होगी.