रायपुर। नवरात्रि पर हर साल बमलेश्वरी मैय्या पर श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है. न केवल छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से बल्कि महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश सहित अन्य प्रदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं, और श्रद्धा के फूल अर्पित करते हैं. लेकिन इस बार की नवरात्रि खास है, क्योंकि माता को चढ़ाए जाने वाले फूल बाहरी प्रदेशों से नहीं बल्कि स्थानीय गौठानों से लाए जा रहे हैं.

राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ विकासखंड के ग्राम पटपर स्थित सामुदायिक गौठान में मां लक्ष्मी स्व-सहायता समूह गेंदा फूल का व्यावसायिक उत्पादन कर रहे हैं. केवल पटपर ही नहीं बल्कि जिले के अन्य सामुदायिक गौठानों में गेंदा फूल की व्यावसायिक तौर पर खेती की जा रही है. इससे भी बड़ी बात यह है कि गेंदा फूल का व्यावसायिक उत्पादन करने वाले स्व-सहायता समूहों को बाजार के लिए भटकना नहीं पड़ रहा है.

डोंगरगढ़ में नवरात्रि के अलावा अन्य दिनों में भी श्रद्धालुओं की कतार लगी रहती है, जिनकी वजह से फूल की मांग 12 महीने बनी रहती है. डोंगरगढ़ में दुकान लगाने वाले करीबन हजार किलोमीटर दूर कोलकाता से फूल मंगाया करते हैं. लेकिन अब स्थानीय गौठानों में फूलों का व्यावसायिक उत्पादन होने से कोलकाता पर दुकानदारों की निर्भरता कम हो गई है.

स्थानीय प्रशासन ने केवल स्थानीय स्तर पर फूलों की खेती को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि उसके साथ जुड़े उत्पादकों के भी स्थानीयकरण पर जोर दे रहा है. इसका एक पहलू यह भी है कि डोंगरगढ़ में प्लास्टिक को बैन करने के बाद स्थानीय बंसोड समुदाय के लोगों को बांस दिलवाकर उनसे बांस की टोकरी बनवाई जा रही है. श्रद्धालु बांस की टोकरी में स्थानीय फूल माता रानी को चढ़ा रहे हैं.

राजनांदगांव प्रशासन के इस प्रयास से स्व-सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की आर्थिक खुशहाली का रास्ता खुल गया है. महिलाओं का कहना है कि फूलों की खेती से न केवल उन्हें पैसे मिल रहे हैं, बल्कि उन्हें इस बात का भी संतोष है कि उनके द्वारा उगाए गए फूल माता राशि को चढ़ाए जा रहे हैं. यह पैसों से तो मोल मिल जा रहा है, लेकिन उसके पीछे श्रद्धा जुड़ी है, वह अनमोल है.