शब्बीर अहमद, भोपाल। छतरपुर के बक्सवाहा में जंगल को काटने से बचाने के लिए लगाई गई याचिका में एनजीटी ने अपना फैसला सुना दिया है. एनजीटी ने कहा है कि बगैर वन विभाग और पर्यावरण विभाग के इजाजत के कटाई नहीं होनी चाहिए. मामले में दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने आदेश जारी कर दिया है. साथ ही सरकार से 4 हफ्ते में जवाब मांगा है. अगली सुनवाई 27 अगस्त को होगी.

एनजीटी ने फैसला सुनाते हुए सरकार को वन संरक्षण कानून के तहत एक्सपर्ट की कमेटी गठित करने के निर्देश भी दिए हैं. साथ ही हीरा खनन कंपनी एक्सेल इंडस्ट्रीज को शपथ पत्र के साथ जवाब प्रस्तुत करने का भी आदेश दिए हैं.

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दरअसल कल यानी बुधवार को बक्सवाहा में जंगल को काटने से बचाने के लिए लगाई गई याचिका में एनजीटी में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई हुई. एक घंटे तक चली सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जंगलों में चट्टानों पर चित्र मिले हैं जो 25 से 30 हजार साल पुराने हैं. वहीं मामले में दूसरे याचिकाकर्ता के वकील ने अपनी दलील में कहा कि जंगल काटने से वहां रह रहे वन्य जीवों को दिक्कतें आएगी. कंपनी के वकील ने न्यायालय को बताया कि बक्सवाहा के जंगल में कंपनी ने काम शुरु नहीं किया है. जिस पर एनजीटी ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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आपको बता दें कि छतरपुर जिले में बकस्वाहा जंगल को हीरा खनन के लिए बिड़ला ग्रुप की एक्सल माइनिंग इंड्रस्ट्रीज कंपनी को 50 साल के पट्टे पर एमपी सरकार ने दे दिया है. इसका रकबा लगभग 382.13 हेक्टेयर है. जंगल के लगभग 2.15 लाख हरे-भरे पेड़-पौधे काटे जाएंगे. इतनी बड़ी हरियाली पर मंडराते खतरे से पर्यावरण प्रेमी और उनके संगठनों ने आंदोलन छेड़ दिया है और विरोध प्रदर्शन जारी है.

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करीब दो साल पहले दिसंबर 2019 में मध्य प्रदेश सरकार ने इस जंगल की नीलामी की. जिसमें बिड़ला ग्रुप की एक्सल माइनिंग एंड इंड्रस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाई. इसके बाद सरकार ने कंपनी को ये जंगल 50 साल के पट्टे पर दे दिया. हालांकि कंपनी को आने वाले पांच सालों में केंद्र सरकार के पर्यावरण और वन विभाग से जरूरी मंजूरी लेनी होगी. इस मंजूरी को लेकर ही मामला फंसा हुआ है, क्योंकि यहां के स्थानीय लोग जंगल काटने का विरोध कर रहे हैं.

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