बर्लिन। यूरोपीय संघ में इस बात पर सहमति बन गई है कि 2035 तक पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारों की बिक्री बंद कर दी जाएगी. यह फैसला यूरोपीय संघ के उस जलवायु परिवर्तन पैकेज का हिस्सा है, जिसे ‘फिट फॉर 55′ के नाम से जाना जाता है. इस पैकेज का मकसद 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल कर लेना है. इसे भी पढ़ें : Baaz इलेक्ट्रिक स्कूटर लॉन्च, मात्र 90 सेकेंड में बदल सकेंगे इसकी बैटरी, जानिए क्या है कीमत…

यूरोपीय संघ के मौजूदा अध्यक्ष चेक गणराज्य ने बताया है कि सदस्य देशों, यूरोपीय संसद और यूरोपीय आयोग के वार्ताकार 2035 तक कार निर्माता कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन में सौ फीसदी कटौती का लक्ष्य हासिल करने के समझौते पर पहुंच गए हैं. दरअसल, 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल करने के लिए यूरोपीय देश 2030 तक 1990 के कार्बन उत्सर्जन के स्तर में 55 प्रतिशत तक की कमी का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं.

फ्रांस से यूरोपीय संसद के सदस्य और पर्यावरण आयोग के अध्यक्ष पास्कल कानफिन ने एक ट्वीट कर कहा कि हमने अभी-अभी कारों के कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के स्तर को लेकर बातचीत पूरी कर ली है. यह जलवायु के लिए यूरोपीय संघ का ऐतिहासिक फैसला है, जो पक्के तौर पर सुनिश्चित करता है कि 2035 तक वाहनों से जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य है.

बता दें कि यूरोपीय संघ के देशों में होने वाले कुल कार्बन उत्सर्जन का 12 प्रतिशत कारों से होता है. यातायात के सारे साधन मिलकर कुल उत्सर्जन के एक चौथाई के लिए जिम्मेदार हैं. यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को अब अपने-अपने यहां ऐसे कानून बनाने होंगे, जो 2035 के बाद से पेट्रोल और डीजल की कारों की ब्रिकी पर रोक लगा देंगे.

कार निर्माताओं ने की आलोचना

यूरोप में कार निर्माता कंपनियों के संगठनों ने संघ के इस फैसले की आलोचना की है. जर्मनी की एसोसिएशन ऑफ द ऑटोमोटिव इंडस्ट्री (वीडीए) ने कहा बिना मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान में रखे यह फैसला लिया गया है. वीडीए ने कहा कि फिलहाल हो रहे विकास कार्यों के हिसाब से बदलाव किए बिना 2030 के बाद के लक्ष्य तय करना लापरवाही है.

छोटे कार निर्माताओं को दी गई सुविधा

बता दें कि यह रोक सिर्फ कारों और वैन के लिए लागू की गई है. पेट्रोल और डीजल से चलने वाले अन्य वाहनों को लेकर फिलहाल कोई फैसला नहीं किया गया है. वहीं यूरोपीय संघ के समझौते में छोटे कार निर्माताओं को कुछ सुविधाएं दी गई हैं. सालाना दस हजार वाहनों से कम बनाने वाली कंपनियां अपने जीरो उत्सर्जन के लक्ष्यों पर मोलभाव कर सकती हैं. उन्हें 2036 तक जीरो उत्सर्जन पर पहुंचने की सुविधा होगी.

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