रायपुर। आज जब आप गूगल खोज में जाते हैं, तो आपको डूडल के रूप में लैबोरेट्री में काम करते हुए एक शख्स दिखाई देते हैं, साथ ही दाहिनी ओर उनकी एक तस्वीर भी दिखाई देती है. आप सोच रहे होंगे कि आखिर आज गूगल ने डूडल बनाकर किसे याद किया है, ये डूडल किसे समर्पित है, तो हम आपको बता देंगे कि ये महान शख्सियत हैं डॉ हरगोविंद खुराना, जो एक महान वैज्ञानिक थे. इन्होंने नोबल प्राइज भी जीता था और देश-दुनिया को कई महान अविष्कार दिए.

डॉ हरगोविंद खुराना के बारे में खास बातें

भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ हरगोविंद खुराना का आज 96वां जन्मदिन है. इनका जन्म 9 जनवरी 1922 को अविभाजित भारत के रायपुर, जो पंजाब के मुल्तान जिले में आता था, वहां हुआ था. पटवारी पिता के 4 बेटों में ये सबसे छोटे थे. पढ़ाई-लिखाई में बचपन से ही हरगोविंद बहुत होशियार थे. स्थानीय स्कूल के बाद उन्होंने मुल्तान के डीएवी हाई स्कूल में पढ़ाई की. वे बचपन से ही एक होशियार और समझदार छात्रों में गिने जाते थे.

12 साल की उम्र में पिता का निधन हो जाने के बाद बड़े भाई ने उन्हें पढ़ाया-लिखाया. उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से साल 1943 में बीएससी (ऑनर्स) और साल 1945 में एमएससी (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की. वे भारत सरकार से छात्रवृत्ति पाकर इंग्लैंड गए. यहां लिवरपूल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ए रॉबर्टसन के अंडर इन्होंने रिसर्च किया और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.

इन्हें फिर से भारत सरकार से शोधवृत्ति मिली और ये ज्यूरिख के फेडरल इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर वी प्रेलॉग के साथ शोध करने लगे. ये भारत वापस लौटे. लेकिन जब इन्हें यहां मनमुताबिक काम नहीं मिला, तो ये फिर से इंग्लैंड चले गए. यहां कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में सदस्यता और लॉर्ड टाड के साथ काम किया. 1952 में हरगोविंद खुराना कनाडा की ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद् के जैव रसायन विभाग के अध्यक्ष बने.

स्वर्ण पदक और ‘Merck Award’ से हुए सम्मानित

साल 1960 में डॉ हरगोविंद खुराना ‘Professor Institute of Public Service’ स्वर्ण पदक से सम्मानित हुए. साथ ही उन्हें कनाडा की केमिकल इंस्टीट्यूट से ‘Merck Award’ भी मिला. साल 1960 में डॉ खुराना अमेरिका के University of Wisconsin के Institute of Science Research में प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए. इसके बाद वे इसी संस्था के निदेशक भी बने.

साल 1960 में ही डॉ खुराना ने नीरबर्ग की इस खोज की पुष्टि की. इस खोज के मुताबिक, डीएनए अणु के घुमावदार ‘सोपान’पर चार अलग-अलग तरह के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है.

इस सफलता से ऐमिनो अम्लों की संरचना और आनुवांशकीय गुणों का संबंध समझना संभव हो गया और वैज्ञानिक अब कई अनुवांशिक रोगों के कारण को समझने और उनके इलाज में सफल हो रहे हैं.

जब डॉ हरगोविंद खुराना को मिला नोबल प्राइज

डॉ हरगोविंद खुराना ने जीन इंजीनियरिंग की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जेनेटिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका प्रतिपादित करने के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

डॉ हरगोविंद खुराना को साल 1968 में प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन करने के लिए चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था. उन्हें ये पुरस्कार साझा तौर पर दो और अमेरिकी वैज्ञानिकों के साथ दिया गया था. चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले वे भारतीय मूल के पहले वैज्ञानिक थे.

साल 1966 में उन्होंने अमेरिका की नागरिकता ग्रहण कर ली थी.  9 नवंबर 2011 में उनका देहांत हो गया और एक महान वैज्ञानिक हमारे बीच से चला गया. लेकिन आनुवांशिकी विज्ञान में उनकी खोजों ने चिकित्सा विज्ञान में एक क्रांति ला दी और कई बीमारियों का इलाज संभव हुआ. उनके योगदान को दुनिया हमेशा याद रखेगी.