रायपुर. छत्तीसगढ़ में आलू उत्पादन की व्यापक संभावनाएं हैं.राज्य में 45 हजार हेक्टेयर में आलू का उत्पादन किया जा रहा है जिसकी उत्पादकता 15 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक है. छत्तीसगढ़ के नदियों एवं तालाबों के आस-पास की कछारी मिट्टी तथा मटासी मिट्टी आलू उत्पादन के लिए उपयुक्त है. इसी प्रकार सरगुजा संभाग की अधिकतर मिट्टीयों में आलू का उत्पादन सफलतापूर्वक किया जा सकता है. बस्तर संभाग में भी हल्की जमीन में इसके उत्पादन की काफी संभावनाएं है. सरगुजा के पाट क्षेत्रों – मैनपाट, सन्नापाट आदि में खरीफ मौसम में आलू की फसल ली जाती है.

देश में कुछ ही क्षेत्र ऐसे हैं जहां खरीफ में आलू की फसल ली जाती है. छत्तीसगढ़ में आलू के क्षेत्र में विस्तार की व्यापक संभावनाएं हैं इसके साथ ही इसकी उत्पादकता 25 टन प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त किये जाने की भी संभावनाएं हैं. छत्तीसगढ़ में आलू एवं शकरकंद के अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र, लीमा, पेरू द्वारा भी सहयोग किया जाएगा. छत्तीसगढ़ शासन के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे से कल राष्ट्रीय किसान मेले में अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र के ग्लोबल लीडर डॉ. सायमन हेक एवं दक्षिण एशिया क्षेत्रीय समन्वयक डॉ. उमाशंकर सिंह ने मुलाकात कर छत्तीसगढ़ में इस दिशा में कार्य करने में रूचि जाहिर की. कृषि मंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र के प्रतिनिधि मंडल को एक माह के भीतर कार्ययोजना प्रस्तुत करने को कहा. उन्होंने कहा कि इसके लिए राज्य शासन द्वारा आवश्यक राशि उपलब्ध कराई जाएगी. इस अवसर पर कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. मनिन्दर कौर द्विवेदी एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटील भी मौजूद थे.

कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे से अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र के प्रतिनिधि मंडल से हुई चर्चा के दौरान राज्य में आलू एवं शकरकंद अनुसंधान, प्रसंस्करण एवं विस्तार योजना के अनेक बिन्दुओं पर सहमति व्यक्त की गई. छत्तीसगढ़ शासन, अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र तथा इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा संयुक्त रूप से आलू एवं शकरकंद के अनुसंधान, प्रसंस्करण एवं विस्तार के लिए कार्य करने पर सहमति व्यक्त की गई है. छत्तीसगढ़ में आलू उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए इनकी नवीन किस्में, उत्पादन एवं प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र द्वारा उपलब्ध कराई जाएंगी जिनका परीक्षण कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किया जाएगा एवं किसानों तक पहुंचाया जाएगा. आलू के गुणवत्तायुक्त बीजों की कमी को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र द्वारा आलू के उच्च गुणवत्ता बीज उत्पादन के लिए टिश्यु कल्चर एवं एरोपोनिक्स विधि द्वारा मातृ बीज एवं प्रमाणित बीज उत्पादन हेतु कृषकों के प्रक्षेत्रों पर अल्प लागत नेट हाउस तकनीक उपलब्ध कराने पर सहमति व्यक्त की गई. उन्होंने आलू की 60 दिन में पकने वाली नवीन किस्में उपलब्ध कराने का भी आश्वासन दिया.

कृषि मंत्री से चर्चा के दौरान डॉ. सायमन हेक द्वारा पोषण सुरक्षा के लिए अफ्रीका में संस्था द्वारा किये गए प्रयासों की जानकारी दी गई. उन्होंने उनके द्वारा विकसित शकरकंद की उच्च आयरन एवं विटामिन ए युक्त नवीन किस्में छत्तीसगढ़ में उपलब्ध कराने सहमति दी. मुलाकात के दौरान आलू केन्द्र के प्रतिनिधि द्वारा पशुओं में पोषण सुरक्षा हेतु गौठानों में लगाने के लिए अधिक मात्रा में चारा प्रदान करने वाली शकरकंद की किस्में प्रदान करने एवं इसके चारे से साइलेज तैयार करने की तकनीक उपलब्ध कराने के संबंध में भी सहमति व्यक्त की गई.

इसी प्रकार शकरकंद का प्रसंस्करण कर इसका अवलेह बनाने एवं इसके माध्यम से कुपोषण दूर करने की तकनीक उपलब्ध कराने का भी भरोसा दिया गया. उल्लेखनीय है शकरकंद के चिप्स अथवा पावडर बनाकर संरक्षित करने पर इसकी पोषण क्षमता समाप्त हो जाती है इसका अवलेह बनाकर पोषकता संरक्षित की जा सकती है. च्यवनप्राश के रूप में इस अवलेह का एक चम्मच खिलाने से बच्चों की विटामिन ए एवं आयरन की दैनिक आवश्यकता पूरी की जा सकती है.

अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र के प्रतिनिधि मंडल ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का भ्रमण कर वहां संचालित आलू अनुसंधान परियोजना के तहत किये जा रहे कार्यों का अवलोकन किया. परियोजना के वैज्ञानिकों द्वारा उन्हें बताया गया कि परियोजना के तहत रायपुर एवं मैनपाट में अनुसंधान कार्य संचालित है जिसके अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा शकरकंद की छत्तीसगढ़ शकरकंद प्रिया, छत्तीसगढ़ शकरकंद नारंगी, इंदिरा नंदिनी, इंदिरा मधुर एवं इंदिरा नवीन किस्में विकसित की गई है जिनमें पोषक तत्व उच्च मात्रा में मौजूद हैं. अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र के वैज्ञानिकों ने विश्वविद्यालय की अधोसंरचनाओं एवं अनुसंधान क्षमताओं का जायजा भी लिया. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उन्हें विश्वविद्यालय में संचालित विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं की जानकारी दी गई.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के किसान लंबे समय से शकरकंद की खेती भी कर रहे हैं. किसानों द्वारा प्रायः बाड़ियों में थोड़ी-बहुत मात्रा में शकरकंद की फसल ली जाती है. राज्य में लगभग चार हजार हेक्टेयर क्षेत्र में शकरकंद का उत्पादन किया जा रहा है जिसकी उत्पादकता 10 टन प्रति हेक्टेयर है जिसे आसानी से 15 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है.