ओडिशा के ढेंकानाल की एक महिला शिक्षिका इन दिनों सोशल मीडिया पर खुबवायरल हो रही है जिसे लोग अब शिक्षा की देवी कहने लगे हैं.

भुवनेश्वर. सरकारी विद्यालयों में शिक्षादान में लापरवाही बरतने जैसे आरोप की खबर शिक्षकों पर देश में मानों आम बात सी बन गई है, मगर इन्हीं शिक्षकों में कुछ ऐसे भी शिक्षक हैं जो शिक्षादान के प्रति अपने समर्पण मनोभाव से पूरे शिक्षक समाज को गौरवान्वित करने का काम करते हैं. ऐसे ही ओडिशा जिले के ढेंकानाल जिले के महिला शिक्षिका की तस्वीर इन दिनों यहां सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, जिसे लोग अब शिक्षा की देवी कहने लगे हैं.

हम बात कर रहे हैं ओडिशा के ढेंकानाल जिले के एक किसान परिवार की बेटी विनोदिनी सामल की. वह ढेंकानाल ओड़पड़ा ब्लाक अन्तर्गत रथियापाल प्राथमिक स्कूल में जन शिक्षिका हैं. राज्य में पिछले कुछ दिनों से हो रही भारी बारिश व हीराकुद जलभंडार से पानी छोड़े जाने की वजह से कई नदियों में पानी आ जाने के साथ कई कैनाल के जलस्तर उफान पर है. उसी तरह का एक कैनाल है ढेंकानाल जिले में सापुआ कैनाल. इसमें पानी भर गया है.

केनाल को पार करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. लेकिन स्कूल खोलना है, बच्चों को मध्याह्न भोजन देना है. ऐसे में विनोदिनी सामल गले तक पानी में घुसकर हाथ में बैग (जिसमें और एक वस्त्र होता है)  पकड़कर स्कूल जाती हैं मगर स्कूल बंद नहीं करती हैं. यह चित्र सोशल मीडिया में वाइरल होने के बाद विनोदिनी के लिए हजारों लोगों से उनके इस कर्तव्य निष्ठ कार्य के लिए शुभकामना मिल रही है.

विनोदिनी पिछले 10 साल से समान परिस्थिति का सामना कर स्कूल जाती हैं. यह वीडियो वाइरल होने के बाद खुद केन्द्र पेट्रोलियम व इस्पात मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने ट्वीट करके विनोदिनी को अपनी शुभकामना देते हुए लिखा है कि यही कर्तव्यपरायणता है. वहीं राज्य शिक्षा मंत्री समीर रंजन दास ने भी विनोदिनी को अपनी शुभकामना दी है.

विनोदिनी 2008 से ढेंकानाल जिले के ओड़पड़ा ब्लाक में मौजूद रथियापाल सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती हैं. उनकी उम्र 50 साल को पार कर गई है. घर से तीन किमी. दूर उनका स्कूल है, मगर उनके गांव और स्कूल के बीच से प्रवाहित होती है सापुआ नदी. बारिश के दिनों में पहले इस विद्यालय में शिक्षादान प्रक्रिया एक प्रकार से ठप हो जाती थी, मगर विनोदिनी के आने के बाद उनके शिक्षादान करने की जिद के सामने नदी का तीव्र बहाव भी मानो हार मान जाता है. बारिश दिनों के लिए वह स्कूल में कुछ पोषाक रख देती हैं. नदी में गीले हो चुके कपड़े को वहां पर बदलने के बाद वह बच्चों की पढ़ाई में लग जाती हैं. लौटते वक्त पुन: उसी नदी के रास्ते तैर कर अपने घर जाती हैं.

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