जगदलपुर। फूलों को साज सज्जा के साथ सजाकर महिलाओं द्वारा बतकम्मा गौरी का रूप बनाकर 9 दिनों तक विधिविधान से पूजा अर्चना किया गया. यह पर्व नवरात्रि के प्रारम्भ से शुरू किया जाता है और दशहरा के एक दिन पूर्व बतकम्मा को अंतिम माना जाता है और नदियों में बतकम्मा को विसर्जन किया गया.
यह पर्व दक्षिण भारतीय लोग भव्य रुप से मनाते आ रहे हैं. यह माना जाता है कि तेलंगाना का राजा नि:संतान था और संतान होते ही उसकी मौत हो जाती थी. जिसके चलते रानी ने पुष्पों का हार बना कर मां दुर्गा का स्वरूप बतकम्मा (गौरी) मानते हुए गौरी पूजा शुरू की. जिससे उनको संतान की प्राप्ति हुई. उस कन्या का नाम बतकम्मा रखा गया था.
जगदलपुर वैश्य समाज के पल्लवी जैन ने बताया कि बतकम्मा का अर्थ बतकुलू इच्छे अम्मा हिंदी में जीवन देने वाली मां कहां जाता है. उस जमाने से इस पर्व को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में मनाया जाता है. उसी तर्ज पर सीमावर्ती से लगे छत्तीसगढ के जगदलपुर, भोपालपट्टनम, बीजापुर मद्देड़, आवापल्ली समेत कई ग्रामीण इलाकों में मनाया जाता हैं.