झारखंड के धनबाद जिले में स्थित पंचेत डैम का उद्घाटन होना था. लिहाजा तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए स्वागत के लिए एक युवक और युवती की तलाश की गई. जो कि बुधनी और रावन मांझी के मिलने के बाद पूरी हुई. फिर पंडित नेहरू ने युवती से डैम का उद्घाटन कराया. अगले ही दिन समाज ने उसका बहिष्कार कर दिया. करीब 65 साल तक ये दंश झेलने के बाद 17 नवंबर 2023 को ‘पंडित नेहरू की पत्नी’ का निधन हो गया.

दरअसल, पंडित नेहरू 6 दिसंबर 1959 को झारखंड के धनबाद जिले में स्थित पंचेत डैम का उद्घाटन करने आने वाले थे. उनके स्वागत के लिए एक युवक और युवती की तलाश थी, जिसे नेहरू के आयोजन स्थल आने पर माला पहना स्वागत करना था. इस बीच 15 साल की रही बुधनी मंझियाइन को प्रधानमंत्री के स्वागत का प्रस्ताव मिला. साथ ही एक संथाली युवक रावन मांझी को भी स्वागत के लिए रखा गया था.

पंडित नेहरू के स्वागत के लिए बुधनी अपनी संस्कृति के अनुरूप आदिवासी परिधान में पूरी तरह सज-धज कर आई थी. कार्यक्रम में उसने जवाहरलाल को माला पहनाया और उनके माथे पर तिलक भी लगाया. इसके बाद प्रधानमंत्री के कहने पर वह उद्घाटन स्थल पर उनके साथ गई जहां उन्होंने बुधनी के हाथों डैम के दरवाजों का बटन चालू करवाकर उसका उद्घाटन कराया.

बुधनी नेहरू की पत्नी हो गई !

अगले ही दिन गांव में पंचायत बैठी जिसमें ये फैसला सुना दिया गया कि बुधनी नेहरू की पत्नी हो गई है, अब उससे कोई संथाल युवक शादी नहीं करेगा. यानी समाज बुधनी को नेहरू की पत्नी मानने लगा था. चूंकि नेहरू संथाल नहीं थे, इसलिए बुधनी को अन्य समुदाय के व्यक्ति से शादी करने का अपराधी भी घोषित कर दिया गया. बुधनी के परिवार वालों ने भी उसका साथ नहीं दिया. उसने समाज से बहिष्कृत होने की बजाय बेटी को ही त्याग दिया. बुधनी मूल रूप से तत्कालीन मानभूम जिला के करबोना की रहने वाली थी.

राजीव गांधी वापस दिलाई नौकरी

समाज से बहिष्कृत होने के बाद बुधनी दरवाजे-दरवाजे भटकती रही पर उसे किसी ने पानी तक नहीं पूछा. फिर पंचेत के रहने वाले सुधीर दत्ता उसे अपने घर ले गए, जहां दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे. दोनों की एक बेटी भी हुई, जिसे भी संथालों ने अपने समुदाय में जगह नहीं दी. ना ही किसी संथाल युवक की उससे शादी होने दी गई. बुधनी की पीड़ा यहीं खत्म नहीं हुई. 1962 में डीवीसी ने बुधनी को बिना वजह बताए नौकरी से निकाल दिया गया. 1985 में बुधनी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से दिल्ली जाकर मुलाकात की. गांधी ने उसे दोबारा डीवीसी में काम दिला दिया, जहां वह रिटायरमेंट तक काम करती रही.