कारपेट बाम्बिंग
बीजेपी के भीतर यह सवाल उठता रहा है कि एक मुख्य विपक्षी दल के रूप में पार्टी आखिर खड़ी कहां है? बीते साढ़े चार सालों में राज्य सरकार के खिलाफ किए गए कुल तीन बड़े आंदोलन है, जो बीजेपी के हिस्से है. रायपुर में बेरोजगार रैली और पीएम आवास पर घेराव और दूसरा बिलासपुर में महिला हुंकार रैली. बिरनपुर की घटना में बीजेपी का जमावड़ा जरूर था, लेकिन आंदोलन की अगुवाई विहिप के हाथों थी. वहीं बस्तर में धर्मांतरण मामले पर हुए प्रदर्शन में भी बीजेपी के लोग थे, लेकिन सामने आदिवासी समाज को रखा गया. आरोप लगता रहा है कि राज्य सरकार के खिलाफ बीजेपी का सबसे बड़ा हथियार ईडी है. राजनीतिक बयानों में भी यह बात उठती रही है कि ईडी के बूते सूबे की सत्ता में काबिज होने के सपने बीजेपी देख रही है. बहरहाल राज्य की मौजूदा स्थिति के मद्देनजर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को लगने लगा है कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में अब कारपेट बाम्बिंग की जाए. कहते हैं कि इसकी पूरी रणनीति दिल्ली में तैयार कर ली गई है. इस कारपेट बाम्बिंग के तहत केंद्रीय मंत्रियों के मैराथन दौरे होंगे. सरगुजा से बस्तर तक केंद्रीय मंत्रियों का प्रवास बढ़ेगा. प्रधानमंत्री से लेकर कई मंत्री राज्य के दौरे पर आएंगे. केंद्रीय योजनाओं की समीक्षा होगी और यह संदेश दिया जाएगा कि केंद्र की योजनाओं में छत्तीसगढ़ पिछड़ रहा है. कहा जा रहा है कि 15 मई से 15 जून तक बीजेपी केंद्रीय मंत्रियों की कारपेट बाम्बिंग कर सकती है.
काउंटडाउन शुरू…
रेरा चेयरमेन को लेकर चल रही कश्मकश अब जल्द खत्म हो सकती है. स्क्रूटनी के बाद दो नाम मंत्री तक पहुंच गए हैं. पहला नाम है मौजूदा पीसीसीएफ संजय शुक्ला का और दूसरा नाम पी वी नरसिम्हा राव का. राव हाल ही में रिटायर हुए है. हालांकि यह लगभग तय माना जा रहा है कि इस पद पर संजय शुक्ला की ताजपोशी होगी. अंतिम दो नाम चुने जाने के पहले तक दौड़ में कई चर्चित नाम भी थे. बताते हैं कि वन महकमे से ही पी सी पांडेय, अतुल शुक्ला, अनिल राय ने भी रेरा चेयरमेन के लिए अप्लाई किया था, वहीं एनआरडीए चेयरमेन आर पी मंडल और रिटायर्ड आईएएस के डी राव भी चेयरमेन बनने के इच्छुक थे. संजय शुक्ला के नाम का ऐलान होते ही वह वीआरएस के लिए अप्लाई कर देंगे.
डीजीपी पर संशय क्यों?
पिछले दिनों खबर आई कि डीजीपी अशोक जुनेजा रिटायर हो रहे हैं और सरकार उनकी जगह किसी दूसरे अफसर को डीजीपी बना सकती है. खबर वायरल होते ही पुलिस महकमे में इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई. प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने डीजीपी की पोस्टिंग पर दो साल का टेन्योर फिक्स किया है. सरकार चाहकर भी डीजीपी तब तक नहीं बदल सकती, जब तक की कोई ठोस वजह ना मिल जाए. जुनेजा की नियुक्ति 11 नवंबर 2021 को की गई थी, ऐसे में उन्हें हटाए जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता. अलबत्ता यह चर्चा जरूर सुनी गई है कि सीनियरिटी में जुनेजा के बाद आने वाले रवि सिन्हा की मुलाकात सरकार के प्रमुख लोगों से हुई थी. सिन्हा रा चीफ के दावेदारों में शामिल थे, लेकिन उन्हें जब यह संकेत मिला कि केंद्र सरकार मौजूदा रा चीफ का कार्यकाल बढ़ा रही है, तब सिन्हा ने डीजीपी बनने की इच्छा जताई थी. सुना यह भी गया था कि अशोक जुनेजा बीसीसीआई में सिक्युरिटी चीफ या इस तरह के किसी पद में जाने के इच्छुक है. कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान जुनेजा सिक्युरिटी चीफ थे, इस लिहाज से इस चर्चा को बल भी मिला था.
नियुक्तियों के मायने
केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के तीन आकांक्षी जिलों के लिए तीन आईएएस अफसरों की नियुक्ति की है. राजनांदगांव के लिए मनिंदर कौर द्विवेदी, बस्तर के लिए मुकेश बंसल और कोरबा के लिए रजत कुमार. सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े जिलों का समग्र विकास करने केंद्र सरकार ने यह प्रोजेक्ट शुरू किया था. तीनों अफसर मूलतः छत्तीसगढ़ कैडर के है. मुकेश बंसल और रजत कुमार सूबे में भूपेश सरकार के काबिज होने के कुछ वक्त बाद ही प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे. मनिंदर कौर द्विवेदी प्रतिनियुक्ति से लौटकर आई थी, लेकिन बाद में उन्होंने भी दिल्ली का रुख कर लिया. अब जब आकांक्षी जिलों के विकास से जुड़ी यह अहम नियुक्ति हुई है, ऐसे में एक वर्ग में इस नियुक्ति के मायने ढूंढे जा रहे हैं. कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो यह कैल्कुलेशन कर रहे हैं कि चुनाव के ठीक पहले इस तरह की नियुक्ति के मायने क्या हैं? ये बात और है कि ऐसी नियुक्ति सिर्फ छत्तीसगढ़ में नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में की गई है.
चर्चा कलेक्टर ट्रांसफर की…
एसपी तबादले की चर्चा के बीच ही अब कुछेक जिलों के कलेक्टरों को बदले जाने की आहट सुनाई पड़ी है. ये बात और है कि फरवरी से निकलने वाली एसपी की लिस्ट कहीं जाकर अटक गई है. खैर, कलेक्टरों के तबादले की इस खबर के बीच यह मालूम चला है कि एक वीआईपी जिले के कलेक्टर को सीएम सेक्रेटिएट लाया जा सकता है. इसे लेकर ब्यूरोक्रेसी में खूब चर्चा छिड़ी है. सीएम सेक्रेटिएट में पोस्टिंग का अपना रुतबा होता है. बावजूद इसके फील्ड की तैनाती का अपना मजा है. वैसे यह तय है कि इस दफे जो भी पोस्टिंग होगी, वह चुनाव बाद तक कायम रह सकती है.
मंत्री की गाड़ी
करीब दो महीने पहले सूबे के एक मंत्री की चलती गाड़ी का टायर फट गया. मंत्री बाल-बाल बच गए. मालूम चला कि इसके बाद मंत्री बंगले ने गाड़ी बदलने की फाइल चलाई. फाइल टेबल दर टेबल गुजरते मंत्रालय पहुंची. दलील दी गई थी कि गाड़ी डेढ़ लाख किलोमीटर चल चुकी है, लिहाजा सुरक्षा मापदंडों के मुताबिक नियमानुसार बदल दिया जाए. मगर गाड़ी की मरम्मत कराकर लौटा दी गई. एक दूसरे मंत्री ने इस पर चुटकी लेते कहा कि, इसमें दो बातें हैं, पहला यह कि मंत्री के पास और भी विभाग हैं, विभाग से गाड़ी बुलाई जा सकती है, दूसरी बात यह कि गाड़ी की मरम्मत कराकर लौटा दी गई. गाड़ी की कंडीशन अच्छी रही होगी. खैर, गाड़ी का प्रबंधन देखने वाले विभाग के अफसर कहते हैं कि तीन नई गाड़ियां आई थीं, लेकिन उन गाड़ियों को किसी और को दे दिया गया.