‘ईमानदारी’ दो परसेंट की….
हरियाली बिखेरने वाले इस महकमे के अफसर भी खूब हरे-भरे हैं. इनके बीच यदि कोई उदार अफसर आ जाए, तो किस्से बन जाते हैं. नाम इतिहास में दर्ज हो जाता है कि फलाने साहब बड़े ईमानदार थे. उन्होंने अपने कमीशन का दो परसेंट छोड़ दिया था. पहले वाले साहब लेबर को होने वाले भुगतान पर 22 परसेंट लेते थे. नए साहब संवेदनशील थे. लेबर भुगतान में ज्यादा कमीशन उनकी ज़मीर को गंवारा नहीं था, सो उन्होंने 22 की जगह अपना हिस्सा 20 परसेंट पर ला दिया. कमीशन का दो परसेंट छोड़ दिया. मगर साहब के ठीक नीचे वाले साहब ने उन तक उनका हिस्सा पहुंचाने की जिम्मेदारी ले ली. आता 22 परसेंट ही था, लेकिन पहुंचता 20 था. जिस जमीर ने दो परसेंट छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वह दो परसेंट नीचे वाले गर्व से गटकने लगे. सोशल मीडिया पर वायरल होते एक दिलचस्प संवाद में यह किस्सा फूट पड़ा है. इस किस्से में यह भी सुनाई पड़ा कि डिवीजन का चार्ज जब एक तीन वेद का ज्ञान रखने वाले साहब के पास था, तब लेबर भुगतान के लिए दो करोड़ रुपए का वाउचर काटा गया था. वाउचर तो कटा, लेकिन भुगतान की रकम हवा में उड़ गई. कहां गायब हुआ, ये आज तक किसी को मालूम नहीं. बीच-बीच में चर्चा जरूर होती है, लेकिन पूछे कौन? इधर, जब ऊपर के अफसरों के कमीशन का ग्राफ बढ़ता जा रहा है, तो मातहत मायूस हैं. कह रहे हैं कि यहां अब चोर नहीं, डकैत बैठे हैं. हमे तो अब सिर्फ तनख्वाह का ही आसरा रह गया है. वैसे एक सवाल है कि ये त्रिपाठी-पटेल-मिश्रा हैं कौन?
इसे भी पढ़ें : पाॅवर सेंटर : ’23’ का सारथी…”ट्रेनिंग” के लिए 17 करोड़… ईडी वर्सेस ईओडब्ल्यू…’दरार’ भरने दौरा…
‘संवाद’ टू ‘सीएम हाउस’
सीएम के ओएसडी का पूरा भौकाल बना होता है. बड़े-बड़े ब्यूरोक्रेट्स के आगे ओएसडी की अपनी तूती बोलती है. सीएम से मिलने-जुलने के लिए ओएसडी ही एक केंद्र बिंदु होता है. ओएसडी के एक फोन से बड़े-बड़े काम हो जाते हैं. यानी ‘ओएसडी’ माने आधा सीएम. राज्य में इस वक्त एक ट्रेंड दिखाई पड़ रहा है. सीएम के तीन ओएसडी ऐसे हैं, जो छत्तीसगढ़ संवाद के रास्ते सीएम हाउस पहुंचे हैं. सूरज कश्यप, उमेश पटेल और विशाल महाराणा. इनमें से विशाल महाराणा की हालिया पोस्टिंग हुई है. चेतन बोरघरिया भी एक ओएसडी थे, विशाल महाराणा के साथ उनकी अदला बदली हो गई. चेतन संवाद पहुंच गए और विशाल सीएम हाउस. अब जनसंपर्क और छत्तीसगढ़ संवाद में यह कहा जाने लगा है कि सीएम का ओएसडी बनने की अनिवार्य शर्त संवाद में ट्रेनिंग लेना हो गया है.
इसे भी पढ़ें : पाॅवर सेंटर: मंत्री-कलेक्टर में रार !…अमरूद की सुरक्षा में बंदूकधारी…एक चीज की दो कीमत…- आशीष तिवारी
ईडी : एक शिकायत और…
कोयला, ट्रांसपोर्ट, जमीन के बाद एक ताज़ातरीन शिकायत ईडी को भेजी गई है. खबर है कि बीजेपी नेता नरेश गुप्ता ने ईडी को दस्तावेज मुहैया कराते हुए राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत नेट हाउस योजना में करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. मनी लांड्रिंग और जीएसटी चोरी का एंगल भी जोड़ा गया है. ईडी को भेजी चिट्ठी में लिखा गया है कि राज्यभर में अमानक और घटिया क्वालिटी का नेट हाउस लगाया गया हैं. नेट हाउस लगाने के लिए किसानों से कुछ अंश लिए जाने का नियम है, लेकिन राज्य के कई हिस्सों में बगैर कृषक अंश लिए नेट हाउस लगा दिए गए. 14 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से करीब 50 करोड़ रुपए कृषक अंश के रूप में दिखाया गया है, लेकिन बैंक में इसका कोई हिसाब किताब नहीं है. इस राशि को नगद के रूप में दर्शाया गया है. इस पर ही बीजेपी नेता ने मनी लांड्रिंग की आशंका जताते हुए जांच की गुजारिश की है. किसानों को दिए जाने वाले पावर वीडर पर भी सवाल उठाते हुए चिट्ठी में लिखा है कि सरकारी नर्सरियों से किसानों को 21 हजार रुपए की लागत का पावर वीडर एक लाख 25 हजार रुपए में प्रदाय किया जा रहा है. बीजेपी नेता ने ईडी को भेजी चिट्ठी में इस बात का जिक्र किया है कि पावर वीडर का काम लेने वाली फर्म ने 2018-19 में मध्यप्रदेश में करीब सौ करोड़ रुपए का घोटाला किया था. इस मामले में वहां एफआईआर भी दर्ज है. यही फर्म छत्तीसगढ़ में करोड़ों के ठेके उठा रही है. चुनाव करीब है. बीजेपी नेता खोद-खोद कर मुद्दे तलाश रहे हैं. चिट्ठी लिखी जा रही है. इन सबसे यह सवाल भी उठता दिखता है कि ईडी-आईटी ना होती, तो बीजेपी का राज्य में क्या होता?
इसे भी पढ़ें : पाॅवर सेंटर : भ्रष्ट विधायक….एक अधिकारी, कई जिम्मेदारी….सरकारी खर्च में सब काम….आईजी नपेंगे !….मायूस ओएसडी…..- आशीष तिवारी
कांग्रेस में बदलाव
चुनाव के पहले प्रदेश कांग्रेस कमेटी में एक अहम बदलाव तय है. संकेत है कि पीसीसी चीफ मोहन मरकाम की विदाई होगी और उनकी जगह दूसरा चेहरा काबिज होगा. वैसे उनका कार्यकाल डेढ़ साल पहले खत्म हो गया था, फिलहाल एक्सटेंशन पर चल रहे हैं. सत्ता-संगठन के बीच टकराव की यदाकदा खबरें आती रही है. चुनाव में यदि हालात ऐसे बने रहे, तो पार्टी नुकसान में रहेगी. दिल्ली में मल्लिकार्जुन खरगे की नई टीम बनते ही, पीसीसी स्तर पर बदलाव किए जाएंगे. खरगे से मिलकर लौटे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी बड़े बदलाव के संकेत दे दिए हैं. कांग्रेस में भूपेश कितने मजबूत हैं, यह जगजाहिर है. अधिवेशन की सफलता ने उनकी मजबूती अंगद के पांव की तरह कर दी है. दिल्ली भी अब अनसुना करने की स्थिति में नहीं. यानी तय है जो अध्यक्ष होगा, वह भूपेश बघेल की अनुशंसा पर ही बनेगा. चर्चा में पहला नाम अमरजीत भगत का सामने आया है. सब कुछ ठीक ठाक रहा, तो अमरजीत से मंत्री पद लेकर उन्हें अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है. एक तीर से दो निशाना. प्रदेशभर में संगठन की मजबूती के साथ-साथ सरगुजा के ढहते किले को फतह करने की बड़ी जिम्मेदारी कंधों पर आ सकती है. मरकाम को संतुष्ट करने मंत्रीमंडल में लाया जा सकता है.
इसे भी पढ़ें : पॉवर सेंटर : सोनाखान… एक करोड़ रुपया कितने किलो का?…ईडी छापा…- आशीष तिवारी
‘शाह’ का दौरा
सीआरपीएफ के कार्यक्रम में शरीक होने के बहाने एक दफे फिर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 25 मार्च को छत्तीसगढ़ दौरे पर पहुंच रहे हैं. चर्चा है कि अमित शाह सीआरपीएफ के कार्यक्रम के बाद बीजेपी के आला नेताओं के साथ एक बैठक करेंगे. गैर बीजेपी शासित राज्यों में अमित शाह का दौरा वैसे भी कयासों से भर जाता है और जब दो महीनों के भीतर दौरा दूसरी दफे हो, तब बात कयासों के आगे चली जाती है. वैसे शाह के दौरे से बीजेपी नेताओं का सीना चौड़ा हो जाता है. नेता उम्मीद से भर जाते हैं. वैसे भी राज्य के बीजेपी संगठन के पास मुद्दों की लड़ाई से ज्यादा शाह का भरोसा है. शाह के दौरे के अपने मायने होते हैं. कभी राजनीतिक, तो कभी कुछ और…. पिछले दौरे में जब अमित शाह कोरबा आए थे, तब उनके दौरे के पीछे की पांच बड़ी वजह चर्चा में रही. कोल प्रोडक्शन बढ़ाना, गेवरा रोड से पेंड्रा तक की रेल लाइन के रुके प्रोजेक्ट को गति देना, भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत बनने वाला कॉरिडोर के काम में तेजी लाना और वन धन केंद्र खोला जाना. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपना आंकलन कर ये निष्कर्ष निकाला था कि लेमरु प्रोजेक्ट हो या हसदेव का मुद्दा. शाह के कोरबा आने की वजह कहीं ना कहीं इसके इर्द-गिर्द सिमटी होगी. अब शाह बस्तर पहुंच रहे हैं. उस बस्तर में जहां नगरनार प्लांट बनकर तैयार है और जिसकी चर्चा निजीकरण किए जाने को लेकर है. हर दौरा सिर्फ सरकारी नहीं होता. हर दौरा सिर्फ सियासी भी नहीं होता…