‘स्पा सेंटर’ में सुकून ढूंढते नेता जी

आम आदमी का साथ जुटाने की जद्दोजहद में जुटे एक पार्टी के नेता इन दिनों खूब मेहनत कर रहे हैं. पार्टी ने उन्हें राज्य का प्रभार दे रखा है. शायद ही ऐसा कोई महीना बीतता होगा, जब उनका दौरा ना होता हो. पार्टी की राजनीतिक जमीन मजबूत करने की बड़ी जिम्मेदारी उन पर है. जिम्मेदारी का बोझ भारी है, यकीनन कंधे थकते भी होंगे. बदन टूटता भी होगा. अब कार्यकर्ता तो हाथ-पैर दबाने से रहे., सो थोड़ी राहत पाने नेता अपने होटल के स्पा सेंटर जा पहुंचे. भीनी भीनी खुशबूओं के बीच नेता जी सुकून ढूंढ ही रहे थे कि अचानक पुलिस ने दबिश दे दी. पुलिस की टीम में महिला अफसर भी मौजूद थीं. नेता जी झेप गए. नजरें चुराने की नाकाम कोशिश करने लगे, मगर थे तो राष्ट्रीय दल के प्रभारी. बच ना सके. नेता जी के हाल का विवरण यहां नहीं दिया जा सकता. केवल समझा जा सकता है. खैर, नेता पुलिस के सामने खूब गिड़गिड़ाए. पार्टी और अपना रुतबा खत्म हो जाने की दुहाई दी. पुलिस टीम ने आला अफसरों से बात की. नेता का कद बड़ा है. अपने इलाके में लोकप्रिय भी है. रायशुमारी के बाद अफसरों ने उन्हें रियायत दे दी. 

पुलिस बिरादरी नाराज ! 

चर्चा है कि स्पा सेंटरों पर कार्रवाई से पुलिस बिरादरी ही नाराज है. खासतौर पर ऐसे टीआई, जिनके इलाके के स्पा सेंटरों का काम खूब फल फूल रहा था और वहां दबिश दे दी गई. टीआई उस वक्त विचलित हो गए, जब अफसरों ने उनके इलाकों के स्पा सेंटरों की लिस्ट मांगी. मन मसोसकर लिस्ट देनी पड़ी. खबर आई कि कई पुलिस अफसर भी स्पा जाने के शौकीन हैं. यह बात पुलिस बिरादरी की आपस की चर्चा में ही फूटकर बाहर आई. बात निकली तो पोल खुलती चली गई. एक ने बताया कि फलाने स्पा में फलाने साहब नियमित तौर पर जाते रहे हैं. रजिस्टर में उनका नाम भी दर्ज मिल जाएगा. दूसरे ने कहा कि शराब के ठेके बंद होने से जो नुकसान पुलिस को उठाना पड़ा, उसकी थोड़ी बहुत भरपाई स्पा सेंटरों से कर ली जाती है. अब वहां भी छापे डलते रहेंगे, तो दिक्कत होगी. इसी चर्चा में मालूम चला कि पड़ोसी जिले में भी पुलिस स्पा सेंटरों के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रही है. एक माल के स्पा सेंटर में छापे के दौरान जब रिकार्ड खंगाला गया, तब एक बड़े अफसर का नाम लिखा मिला. जाहिर है जिक्र तक नहीं होना था. 

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मंत्री के बंधे ‘हाथ-पैर’

एक मंत्री की अपने ही विभाग में चल नहीं रही है. कहा जा रहा है कि अफसर ने मंत्री के हाथ-पैर बांध रखे हैं. सिवाए नाक फुलाने के अलावा मंत्री कुछ और कर नहीं पा रहे. ये वही मंत्री हैं, जो इन दिनों रुप लोभी बने बैठे हैं.(पिछला कॉलम पढ़ें)…बताते हैं कि एक सेंट्रल फंडेड स्कीम से जुड़े टेंडर में की गई गड़बड़ी ने सरकार की जमकर फजीहत करा दी थी. तब आनन-फानन में टेंडर निरस्त करना पड़ा था. खूब हल्ला मचा था.  चुनाव करीब है,ऐसे में सरकार की सीधी नजर मंत्रियों के कामकाज पर है. इस मंत्री की लापरवाही से कहीं लेने के देने ना पड़ जाए, इसलिए सरकार ने ऐसे अफसर की तैनाती की है, जिसने मंत्री की मनमानी पर शिकंजा कस दिया है. मंत्री के गैर जरुरी निर्देशों की एक जगह तय कर दी गई है. वह है ‘कूड़ादान’…

14 माइनस 9

चुनाव करीब है. राजनीतिक उठापठक शुरू हो गई है. जमीनी स्थिति भांपने राजनीतिक दलों के सर्वे तेज हो गए हैं. ऐसे ही एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि बीजेपी के मौजूदा 14 विधायकों में 9 की स्थिति बेहद खराब है. यानी 14 में 9 माइनस कर दे, तो केवल पांच विधायक ही ऐसे हैं, जिनकी स्थिति थोड़ी ठीक है. संगठन के आला नेता भी यह मानते हैं कि इन विधायकों को दोबारा टिकट दिया गया, तो जितना मुश्किल होगा. सर्वे कहता है कि इस वक्त चुनाव हुए तो पूरे राज्य में बीजेपी 32 से 35 सीट ही जीत सकती है. पिछले चुनाव की तुलना में यकीनन बीजेपी की सीटें सभी सर्वे में बढ़ रही है, लेकिन सरकार बनाने का सपना अभी भी कोसों दूर है. बीजेपी के एक आला नेता ने अपनी टिप्पणी में कहा कि, पार्टी सिर्फ बैठकों से नहीं चलती. लोगों के बीच दिखते रहना चाहिए. बीजेपी बैठकों से बाहर नहीं आ पा रही….

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बैस की वापसी!

 महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस की सक्रिय राजनीति में वापसी की चर्चा जोर-शोर से उठ रही है. इन चर्चाओं के बीच बैस ने अपने बयान में कहा है कि उनकी भूमिका राष्ट्रीय नेतृत्व तय करेगा. जो भी जिम्मेदारी तय होगी, वह तैयार रहेंगे. चुनाव के कुछ महीने पहले रमेश बैस की वापसी के संकेतों के अपने समीकरण है. इस वक्त राज्य की राजनीति की धुरी ओबीसी के इर्द गिर्द सिमट गई है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कुर्मी समाज से आते हैं. बीजेपी के पास इस समाज से भूपेश बघेल के कद के बराबर कोई चेहरा नहीं है. बीजेपी रमेश बैस के जरिए एक चेहरा खड़ा कर सकती है. साहू वोट बैंक साधने के लिहाज से बीजेपी ने अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. बैस की यदि वापसी होती है, तो कुर्मी वोट बैंक को साधने में मदद मिल सकती है. सोशल इंजीनियरिंग के इस फार्मूले को ही रमेश बैस की वापसी की चर्चाओं से जोड़कर देखा जा रहा है.