Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

जूता लाख टके का

सियासत में जूते की बड़ी अहमियत है. जूते चलते भी खूब है और उछलते भी खूब. वैसे तो जूते की असल जगह पैरों पर है, मगर इस मामले में जूता लोगों के दिमाग में चल रहा है. चर-चर की चहलकदमी के बीच जूते की कीमत आंकी जा रही है. ये जूता है, शौकीन मिजाज नेताजी का, सो इसकी चर्चा कीमत के आगे बढ़ भी नहीं रही. दरअसल हुआ कुछ यूं कि विधानसभा में बजट अनुदान मांग पर चर्चा चल रही थी. कांग्रेस के एक विधायक ने बीजेपी के पूर्व मंत्री और सीनियर विधायक के जूते का किस्सा छेड़ दिया. कहने लगे कि नेताजी एक लाख रुपए का जूता पहनकर सदन में गरीब किसान की बात करते हैं. सदन में बैठे दूसरे विधायकों की भौंहे चौड़ी हो गई. होनी भी थी जूता और वह भी एक लाख रुपए का. बस फिर क्या था, सदन में किसानों के मुद्दे पर चर्चा में भाग लेने बैठे दूसरे विधायकों के दिमाग से ‘गरीब किसान’ बाहर हो गया और जगह ‘जूते’ ने ले ली. कुछ टेक्नो फ्रेंडली विधायक भी थे, जो इस उम्मीद से बार-बार नेताजी के जूतों की ओर नजर दौड़ाने लगे कि एक बार जूते के ब्रांड का नाम पता चल जाए. गूगल कर इसकी असली कीमत पता कर ली जाएगी. आंखों के स्कैनर ने काम किया और ब्रांड ढूंढ निकाला गया. पता चला कि फ्रांस की Givenchy कंपनी का जूता नेताजी के पैरों की शोभा बढ़ा रहा है. टेक्नो फ्रेंडली विधायक ने जूते का ब्रांड तो ढूंढ लिया, पर कीमत डॉलर में दिखाई पड़ रही थी. ज्यादा नहीं थी, करीब 1200-1300 डॉलर. बहरहाल इधर चर्चा जूता तक ठहर गई थी, नेताजी की शर्ट की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया. वह बार-बार शर्ट की उधड़ी हुई जेब दिखाते रहे, जिससे पेन का एक सिरा बाहर लटक रहा था. मगर यहां महत्व जूतों का था, जाहिर है फटी शर्ट का जिक्र तक नहीं होना था. नेताजी ज्ञानी पुरुष हैं, बखूबी जानते हैं कि जूतों से ही आदमी की पहचान होती है. जूतों से ही हैसियत आंकी जाती है. आधुनिकता के इस दौर में आदमी की इज्जत का रखवाला जूता ही है.

थानों में राज्य गीत

ब्यूरोक्रेसी में सिर्फ कलेक्टर ही प्रयोगधर्मी नहीं होते, पुलिस महकमे में भी ऐसे कई किरदार हैं, जो प्रयोगों में रुचि रखते हैं. अब एक जिले के एसपी ने अपने जिले के सभी थानों में प्रतिदिन राज्य गीत गाए जाने के निर्देश दे दिए. ठीक वैसे ही जैसे स्कूलों में कक्षा लगने के पहले प्रार्थनाएं होती है. अब जिले के पुलिस वाले अपने स्कूल के दिन याद कर रहे हैं. कईयों ने इस अनूठे प्रयोग को ये कहते हुए सराहा कि राज्य गीत राज्य की अस्मिता का प्रतीक है. अच्छा है कि थानों में अब यह गूंजेगा. उधर पीएचक्यू के केबिन में बैठे आईपीएस के सुर बिल्कुल अलग राग अलापते दिखे. एक सीनियर आईपीएस की टिप्पणी काबिलेगौर है कि पुलिसिंग का मतलब सिर्फ और सिर्फ लाॅ एंड आर्डर है. अब भला लाॅ एंड आर्डर को छोड़कर थाने में पहले राज्य गीत गाया जाए यह ठीक नहीं है. वैसे भी सरकारी आयोजनों में ही राज्य गीत गाए जाने के निर्देश है. महकमे में ये कहकर भी चुटकी ली जा रही है कि सरकार की नजर कोरबा को लेकर थोड़ी टेढ़ी हो रही थी, सो राज्य गीत के जरिए साधने की तरकीब सूझी. तरकीब ने काम भी किया है. ऐन केन प्रकारेण हालात पक्ष में बने रहे, ये सबसे जरूरी है. 

आखिर मामला क्या है !

छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र में इस दफे एक चर्चा खूब जोर शोर से चल रही है. खासतौर पर विपक्षी खेमा अचरज के साथ एक-दूसरे से यह पूछता दिख रहा है कि भाई आखिर मामला क्या है ! विपक्षी खेमे में यह गुफ्तगू सुनी गई है कि स्पीकर सरकार से नाराज चल रहे हैं. तभी तो जो सालों में नहीं हुआ, वह अब होता दिख रहा है. टेबलेट खरीदी में गड़बड़ी का एक मामला सदन में उठा, तो सीधे ही विधानसभा की कमेटी से जांच कराने का ऐलान कर दिया. एक दूसरे मामले में सरकार के एक मंत्री से पूछ बैठे, आप जांच कराएंगे या मैं जांच करा लूं? गुफ्तगू में एक बात और सुनी गई है कि इस दफे बाकी सभी विभागों के लगाए गए प्रश्नों में खूब कांट छांट किए गए, लेकिन मुख्यमंत्री के विभागों से जुड़े सवालों में कोई कांट छांट नहीं. अब विपक्षी खेमा इन सबमें खुश होने की बजाए हैरान नजर आ रहा हैं. वैसे कई मर्तबा स्पीकर साहब ये बयान दे चुके हैं कि उन्हें राज्यसभा जाने की इच्छा है. एक पूर्व मंत्री ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनके दिलो दिमाग में राज्यसभा की तस्वीर इंगित हो गई हैं, सो उनका मन यहां नहीं कर रहा होगा. बहरहाल स्पीकर बहुत पावरफुल ओहदा है. चाहे तो जो करा लें….

तू-तू मैं-मैं 

एक विधानसभा का ये किस्सा भी सुनिए. कई बार सदन के शोर शराबे में कुछ अहम बातें छूट जाती है. उस विधानसभा में एक बड़बोले मंत्री हैं, जो बात-बात पर खड़े होकर विपक्ष पर कटाक्ष करने से नहीं चूकते. विपक्षी खेमे के सीनियर विधायक से अक्सर उनकी तूृ-तू, मैं-मैं होती रहती है. पिछले के पिछले सत्र में तो बकायदा मंत्री के इस रवैये की वजह से विपक्ष ने बायकाट कर दिया था. लेकिन स्थिति जस की तस है. अभी सत्र में एक घटना ऐसी घटी कि विपक्ष के सीनियर विधायक से उनकी तू-तू, मैं-मैं हो गई. इस तू-तू, मैं-मैं के बीच दोनों के बीच का संवाद चंद सेकंड के लिए असंसदीय हो चला. इस बीच विपक्ष के सीनियर विधायक ने अपना आपा खोकर ये तक कह दिया कि पटक-पटककर मारूंगा. शोर शराबे में लोग या तो इसे सुन नहीं पाए या विवाद ना बढ़े इसलिए अनसुना करना ही बेहतर समझा. वैसे देशभर की विधानसभाओं में से ये विधानसभा ही इकलौता ऐसा सदन हैं, जहां पक्ष-विपक्ष की तमाम तकरारों के बाद भी संसदीय परंपरा का पालन किया जाता है. उम्मीद तो यहीं की जानी चाहिए कि जो मर्यादा पक्ष-विपक्ष ने मिलकर गढ़ी है, वह बरकरार रहे. 

आईजी में फंसा पेंच !

पुलिस महकमे में जल्द अहम बदलाव होने के संकेत हैं. डीपीसी के बाद नए बने आईजी में से कई चेहरे होंगे, जिनकी नई ताजपोशी होगी. रायपुर रेंज में भी नए आईजी की नियुक्ति की जाएगी. इस वक्त आनंद छाबड़ा आईजी इंटेल के साथ-साथ रायपुर रेंज भी संभाल रहे हैं. यह जिम्मेदारी संभालते हुए उन्हें दो साल से अधिक का वक्त बीत गया है. सुनने में यह आया है कि उन्होंने खुद दोहरी जिम्मेदारी का बोझ कम करने की अर्जी लगाई थी. इधर कहा जा रहा है कि रायपुर रेंज के नए आईजी के चयन में पेंच आ गया है. ये तय है कि बद्रीनारायण मीणा, आरिफ शेख और अजय यादव में से किसी एक नाम पर अंतिम मुहर लगेगी, लेकिन ताजपोशी किससे सिर होगी, यह मामला उलझा हुआ है. तीनों आईपीएस रायपुर में बतौर एसएसपी काम कर चुके हैं. पहले चर्चा थी कि एडीजी राजेश मिश्रा को एसीबी-ईओडब्ल्यू की कमान सौंपकर आरिफ शेख को रायपुर आईजी बनाया जाएगा, मगर अब किन्हीं कारणों से राजेश मिश्रा एसीबी-ईओडब्ल्यू नहीं भेजे जा रहे. ऐसे में सरकार को एसीबी-ईओडब्ल्यू में आरिफ शेख का विकल्प नहीं मिल रहा. अब बचे बद्रीनारायण मीणा और अजय यादव. समीकरण किसके पक्ष में बनेगा, इस पर फिलहाल कुछ कहना जल्दबाजी होगी. मजबूत दावे की बात करें तो बद्रीनारायण मीणा के नाम पर सहमति बनने की खबर है, मगर अजय यादव की दावेदारी भी बेहद मजबूत है. सुना है कि यादव के पक्ष में कुछ प्रभावशाली लगे हुए हैं.  

आईपीएस पर गंभीर टिप्पणी

राज्य गठन के बाद संभवतः यह पहला मौका है, जब न्यायिक जांच आयोग ने किसी सीनियर आईपीएस अधिकारी की भूमिका पर सवाल उठाया गया है. मदनवाड़ा नक्सल मुठभेड़ की जांच कर रही जस्टिस एस एन श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाले आयोग ने अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन एसपी विनोद चौबे समेत 29 पुलिसकर्मी की शहादत का जिम्मेदार आईपीएस मुकेश गुप्ता को ठहराया. अपनी रिपोर्ट में आयोग के अध्यक्ष ने कड़े शब्द लिखे हैं. मुकेश गुप्ता को घमंडी बताते हुए रिपोर्ट में ये टिप्पणी दर्ज की गई है कि, ”यह घटना घमंड का नतीजा है, जिसमें कलंकित, फूहड़पन और गैर जिम्मेदाराना ढंग से नेतृत्व प्रदान किया गया”. इस रिपोर्ट में ये भी तथ्य सामने आया है कि एडीजी गिरधारी नायक ने अपने बयान में कहा था कि उन्होंने घटना पर प्रस्तुत अपनी जांच प्रतिवेदन में मुकेश गुप्ता को पुरस्कार दिए जाने की अनुशंसा नहीं की थी, बावजूद इसके उन्हें राष्ट्रपति पदक दिया गया. मदनवाड़ा नक्सल मुठभेड़ पर आई न्यायिक जांच आयोग की ये रिपोर्ट कई तरह के सवाल उठा रही है. सवाल ये भी खड़ा हो रहा है कि नायक के जांच प्रतिवेदन को तब की सरकार ने आखिर ताक पर क्यों रखा, जबकि उस प्रतिवेदन में गुप्ता की भूमिका पर सवाल खड़े किए गए थे. हालांकि इन तमाम सवालों के परे ये भी गौरतलब है कि जब आयोग की इस रिपोर्ट को कैबिनेट में रखा गया, तब सूबे के एक मंत्री ने ये कहते हुए सवाल उठाया था कि मुकेश गुप्ता का पक्ष आयोग ने नहीं लिया. बहरहाल आयोग की रिपोर्ट अब सार्वजनिक है. मुख्यमंत्री ने भी अपने बयान में दो टूक कहा है कि सरकार रिपोर्ट में की गई अनुशंसा का अध्ययन कर ना केवल एफआईआर दर्ज कराई जाएगी, बल्कि दोषी के विरूद्ध कार्रवाई भी की जाएगी. 

खैरागढ़ उप चुनाव

खैरागढ़ उप चुनाव को लेकर तारीखों के ऐलान के साथ ही चुनावी बिसात बिछनी शुरु हो गई है. देवव्रत सिंह के निधन के बाद उप चुनाव हो रहे हैं, लेकिन जिस पार्टी से उन्होंने चुनाव लड़ा था, उसकी चर्चा भी चुनावी रण में कहीं नहीं है. इधर कांग्रेस-बीजेपी की चुनावी घेराबंदी तेज हो गई है. बीजेपी ने तो बाकायदा प्रत्याशी चयन की आधी कवायद पूरी कर ली है. सुना है कि तीन नामों का पैनल बनाया गया है, जिसमें कोमल जंघेल, विक्रांत सिंह और किसी चंद्राकर के नाम शामिल हैं. जंघेल पिछला चुनाव बेहद कम मार्जिन से हारे थे. सामाजिक समीकरण भी उनके पक्ष में है. विक्रांत सिंह पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह के भांजे हैं. जिला पंचायत उपाध्यक्ष हैं. विक्रांत ने छोटा चुनाव लड़ा है, लेकिन प्रतिशत सौ फीसदी रहा है. उधर कांग्रेस में पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, प्रभारी पी एल पुनिया, अध्यक्ष मोहन मरकाम समेत संगठन की एक अहम बैठक चुनाव को लेकर हुई थी. देवव्रत सिंह के निधन के बाद जब राज परिवार में झगड़ा पैलेस की दहलीज के बाहर आया, तब कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व पहली पत्नी के पक्ष में खड़ा नजर आया, तब ये अनुमान लगाया गया था कि कहीं उन्हें ही कांग्रेस अपना प्रत्याशी तो नहीं बना रही. इस चुनाव में यदि सबसे ज्यादा किसी की साख दांव पर है, तो वह है पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह. खैरागढ़ उनके प्रभाव वाला इलाका माना जाता रहा है. बावजूद इसके की पिछले चुनाव में जेसीसी ने जीत दर्ज की थी. वैसे इसका तगड़ा दृष्टांत मिलता है कि उप चुनाव में जीत सत्ताधारी दल के हिस्से आती है. दंतेवाड़ा और मरवाही इसके उदाहरण हैं.