एसपी के ‘ठाठ बाट’
अदम गोंडवी की कविता की वह पंक्ति एक जिले के एसपी पर खूब फबती दिखती है, जिसमें वह कहते हैं कि ‘ जो डलहौजी ना कर पाया, वो ये हुक्काम कर देंगे’…एसपी साहब कुछ यूं ही समझ आते हैं. आजकल एसपी साहब के ठाठ बाट के खूब कसीदे पढ़े जा रहे हैं. पिछले दिनों उनके बंगले पर दो बंदर आ गए थे. बंदरों पर भला किसका नियंत्रण? मगर इससे साहब की भौंहे तन गई. कहते हैं कि बंगले की ड्यूटी कर रहे दो सिपाही नाप दिए गए. साहब बड़े सख्त मालूम पड़ते हैं. फरमान सुनाया गया है कि एसपी साहब की गाड़ी भले ही पांच किलोमीटर तक चलकर वापस आ जाए. गाड़ी दोबारा धोई जाये. सो ड्राइवर दिन में कई दफे गाड़ियां धोते रहते हैं. चर्चा है कि एसपी बंगले के कुछ उसूल बनाए गए हैं. जैसे: यहां काम करने वाले अर्दलियों को नजर उठाकर देखने की मनाही होगी, ठीक ठाक दिखने और सलीके से रहने वाले आरक्षकों की ही तैनाती होगी. वगैरह-वगैरह. अंग्रेज चले गए. जाते-जाते अपनी अंग्रेजियत इस एसपी के पास छोड़ गए. खैर, कहा यह भी जाता है कि बंगले पर दो दर्जन से ज्यादा आरक्षक तैनात हैं. एसपी साहब के कुत्ते की देखभाल के लिए डाॅग स्क्वाड के मास्टर की ड्यूटी लगी है. जिले में कोई वारदात हो जाए और डाॅग स्क्वाड की जरूरत हो, तब भी उसे जाने के लिए साहब के इशारों का इंतजार होता है. घटना कितनी बड़ी ही क्यों ना हो. साहब के कुत्ते की देखभाल ज्यादा जरूरी है. एसपी साहब खाने-पीने और घूमने के शौकीन है. भले ही बंगले पर छह-छह खानसामा रखा हो, मगर हफ्ते में दो-चार दिन बाहर हो आते हैं. मातहत बताते हैं कि किसी रेस्टोरेंट-होटल में लाटसाहब के पहुंचने के पहले जगह खाली करा दी जाती है. घूमने का अंदाज कुछ यूं बताया जाता है कि तीन-तीन दिन दफ्तर नहीं आते. फ्लाइट पकड़कर कभी मुंबई, तो कभी नागपुर-दिल्ली हो आते हैं. उच्च अधिकारियों को भनक तक नहीं लगती. हाल फिलहाल की बात है. बताते हैं कि जब डीजीपी ने एसपी साहब को फोन किया था. तब एसपी कान्हा में चिल कर रहे थे. डीजीपी का फोन भी उनकी नजर में तब दो कौड़ी का बन गया. डीजीपी का फोन तक नहीं उठाया. डीजीपी सिर्फ डीजीपी बन गए. एसपी ‘साहब’ हो गए.
IFS की कारस्तानी
एक डिवीजन के अधीन काम करने वाले रेंजर की पुलिस में दी गई शिकायत की चर्चा जोरों पर हैं. रेंजर का शिकायती पर्चा अफसरों के मोबाइल पर तैर रहा है. ये शिकायत एक महिला आईएफएस के विरुद्ध कोतवाली में दी गई है, जो उस डिवीजन में बतौर डीएफओ तैनात है. शिकायत का मजमून यह है कि- महिला आईएफएस ने घर का राशन, साग-सब्जी, फल, अंडा, मछली, मीट, चिकन, बिरयानी, बच्चों के खिलौने से लेकर घर की खिड़कियों के पर्दे और जमीन पर बिछाने की कालीन तक रेंजर से मंगाया. इन सब पर रेंजर ने करीब नब्बे हजार रुपए खर्च किए. महिला आईएफएस की मालिश पर खर्च रकम जोड़ दी जाए, तो रेंजर ने करीब एक लाख दो हजार रुपए अपनी जेब से खर्च किए. रेंजर रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़े हैं, सो उन्होंने एक दिन एक लाख दो हजार रुपए की पर्ची इस उम्मीद से महिला आईएफएस को थमा दी कि खर्च की गई रकम वापस मिल सके. रकम की वापसी तो नहीं हुई, धमकी जरूर मिल गई. सामंतवादी संस्कृति की वाहक बनी इस आईएफएस ने अपनी धमकी में यह कहने से कोई गुरेज नहीं किया कि मंत्री और पीसीसीएफ से कहकर सस्पेंड करा दूंगी. मानो पीसीसीएफ और मंत्री उनके इशारों पर काम करते हैं. खैर, रेंजर का मिजाज गर्म था. मामला थाने पहुंचा दिया. अब शिकायती पर्चा वायरल है. रकम की वापसी होगी या नहीं, इसका अता पता नहीं, लेकिन विभाग के अफसरों तक मामला पहुंच चुका है. रिटायरमेंट के पहले रेंजर की क्रांति चर्चा में है. जून 2023 में रिटायरमेंट है. अगले कुछ महीनों में किसी गड़बड़ी में नाम आ जाए तो कोई बड़ी बात नहीं.
नौ करोड़ में क्या-क्या !
करीब महीने भर पहले रायपुर के साइंस कालेज मैदान में श्रमिक सम्मेलन का आयोजन हुआ. सरकारी योजनाओं के हितग्राही जुटे. सम्मेलन में भारी भीड़ उमड़ी. सम्मेलन की तैयारी बड़ी थी. बड़ा डोम लगा था. बड़ा मंच सजा था. बड़े-बड़े नेता जुटे थे. सम्मेलन में डायरेक्ट बैनेफिट ट्रांसफर के जरिए विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत एक लाख श्रमिकों को करीब 47 करोड़ रुपए की राशि बांटी गई. सरकार श्रमिकों की चिंता कर रही है. अच्छी बात है. श्रम शक्ति को सरकार का यह सम्मान है. बहरहाल सम्मेलन जब खत्म हुआ और खर्चों के भुगतान की फाइल दौड़ी तब मालूम पड़ा कि सम्मेलन के आयोजन पर करीब नौ करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए. श्रमिकों को बांटी गई रकम का करीब बीस फीसदी हिस्सा. सरकार के अच्छे कामों पर भी अफसर कैसे पलीता लगाते हैं. यह उसकी एक बानगी है. अब सोचिए नौ करोड़ रुपए में क्या-क्या हो सकता था?
IAS अवार्ड अटका
राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर मायूस हैं. दो सालों से आईएएस अवार्ड नहीं हुआ. आईएएस संवर्ग के लिए 2021 के लिए तीन पद और 2022 के लिए चार पद यानी कुल सात पद रिक्त है. इन पदों के लिए 2008 बैच के अफसरों को आईएएस अवार्ड दिया जाना है. वरिष्ठता सूची में संतोष देवांगन, हिना नेताम, अश्विनी देवांगन, रेणुका श्रीवास्तव, आशुतोष पांडेय, सौम्या चौरसिया और रीता यादव के नाम शामिल हैं. बताते हैं कि सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से केंद्र को प्रस्ताव नहीं भेजे जाने की वजह से ऐसे हालात बने हैं. सामान्य प्रशासन विभाग की अनदेखी कहिए या फिर कोई दूसरी वजह अफसरों के हिस्से केवल मायूसी ही है. अमूमन आईपीएस अवार्ड के लिए होने वाली डीपीसी आईएएस के बाद ही होती रही है, लेकिन राज्य में संभवतः यह पहला मौका होगा, जब आईपीएस अवार्ड के लिए डीपीसी हो गई और आईएएस अवार्ड के लिए राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर सरकार की ओर मुंह ताकते खड़े हैं.
टिकट कटेगी या बचेगी !
2023 के रण में कूदने के पहले राजनीतिक दलों के भीतर माथापच्ची चल रही है कि मौजूदा विधायकों में से किसकी टिकट कटेगी और किसकी बचेगी? कांग्रेस 71 विधायकों के साथ सत्ता में है, जाहिर है टिकट की माथापच्ची सबसे ज्यादा कहीं है तो कांग्रेस में है. विधायक असमंजस में है कि आगामी चुनाव में मैदान में वह मोर्चा लेने तैयार होंगे या बदलाव की जद में आ जाएंगे. समय-समय पर सत्ता-संगठन की सर्वे रिपोर्ट से विधायकों को आइना दिखाया जाता रहा है. सियासत का आइना थोड़ा अलग होता है, जिसके चेहरे पर चमक ज्यादा दिखती है, टिकट उसका कटता है. जिसके चेहरे की रंगत उड़ जाती है. उसकी टिकट पक्की. सीधा सा समीकरण है. रंगत उड़ने के पीछे आशय उसकी हाड़ तोड़ मेहनत से है. अब सवाल यह है कि मौजूदा विधायकों में से कई हैं, जिसका चेहरा ग्लो कर रहा है. जाहिर है ऐसे विधायक नपेंगे. इस बीच एक चर्चा में मुख्यमंत्री का यह कहना कि करीब 60 विधायकों की स्थिति ठीक है, यह उन विधायकों को थोड़ी राहत दे सकता है, जो मानकर चल रहे हैं कि उनकी टिकट कटेगी ही. कर्म ही कुछ ऐसे हैं. बहरहाल कांग्रेस में कई चेहरे ऐसे हैं, जिनका परफारमेंस बहुत उम्दा तो नहीं है, मगर राजनीतिक विरासत ऐसी है कि टिकट देने की मजबूरी पार्टी की है.
गुजराती को टिकट कब!
रायपुर उत्तर इकलौती ऐसी विधानसभा सीट है, जो राष्ट्रगान के महत्व को बखूबी समझती है. राष्ट्रगान में लिखा है, पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा….रायपुर उत्तर सीट ने इन सभी को जगह दी है. मौजूदा विधायक कुलदीप जुनेजा पंजाबी है, पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी सिंधी समाज से हैं, जिनकी बुनियाद सिंध से है. वहीं मराठा यानी मराठी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सच्चिदानंद उपासने रायपुर उत्तर सीट से उम्मीदवारी कर चुके हैं, ये बात अलग है कि उन्हें हार का सामना करना पड़ गया था. ऐसे में अब सिर्फ गुजरात बाकी है. देखते हैं आने वाले चुनाव में शायद किसी राजनीतिक दल से किसी गुजराती उम्मीदवार को टिकट नसीब हो जाए. वैसे भी रायपुर उत्तर में गुजराती समाज का बड़ा आधार है.