‘तमाचाबाज’ आईपीएस

रायगढ़ में एक नए नवेले आईपीएस पहुंचे हैं. उनकी ट्रेनिंग के वक्त जब ‘एथिक्स एंड ह्यूमन राइट’ की क्लास चल रही थी, तब वह यकीनन गप्पे लड़ाने में मशरूफ रहे होंगे. क्लास में थोड़ा सलीका सीखा होता, तो ड्यूटी कर रहे एक पत्रकार को तमाचा मारने की धमकी ना देते. जनाब की भर्ती ताजा-ताजा है. प्रोबेशन पीरियड शुरू ही हुआ है, लेकिन तेवर और मिजाज ऐसे हैं, मानो डीजी बन गए हैं. हुआ कुछ यूं कि रायगढ़ में एक बड़े आयोजन के कवरेज के लिए पत्रकार पहुंचे थे. मीडिया गैलरी में खड़े एक सीनियर पत्रकार पर नवोदित आईपीएस भड़क गए. गुस्से से लाल होकर कह दिया, ‘एक तमाचा खींचकर मारुंगा’. एक तस्वीर में आईपीएस पत्रकार को तमाचा रसीद करने पर आमादा है, तो कुछ अरसा पहले आई एक तस्वीर में सरकार इस पत्रकार को राज्य अलंकरण सम्मान से सम्मानित करती दिख रही है. सरकार सम्मान दे रही है, अफसर सम्मान को रौंद रहे हैं. सरकार इस पत्रकार को पीएचडी की डिग्री देती है, अफसर तमाचे का सर्टिफिकेट देने का इरादा रखते हैं. बड़ा अद्भुत संयोग है. एक सामान्य आदमी को जब ओहदा मिल जाए. जी हुजूरी के लिए अर्दली मिल जाए, बंगला-गाड़ी मिल जाए, तब ऐसी स्थिति में वह सामान्य कहां रह पाता है. शायद आईपीएस को लगता है कि ये सब पाकर उन्हें बादशाहत मिल गई. मगर यहां उन्हें ठहराव की जरूरत है. ये समझने के लिए कि जिसे वह अपनी बादशाहत समझ रहे हैं, दरअसल वह उनकी नौकरी है. नौकरी ने उन्हें जो ओहदा और अधिकार दिया है, वह रौब दिखाने के लिए नहीं है. यूं ही चलते फिरते तमाचा मारने की धमकी देने के लिए तो कतई नहीं. आज प्रोबेशनर आईपीएस हैं, कल को किसी जिले की कमान संभालेंगे, अच्छा है समय रहते सीख ले लें. 

महिला IAS भड़की

अफसरों पर अपना रौब दिखाने वाले सत्ता पक्ष के एक विधायक को महिला आईएएस की नसीहत मिल गई. विधायक अपनी हरकतों से पहले ही अफसरों में हिकारत भरी नजरों से देखे जाते रहे हैं. अफसरों से गैर जरूरी काम करवाना विधायक की फितरत बन गई थी. विधायकी की वजह से कोई अफसर जवाब भी नहीं देता था. विधायक का काम होता रहा. इस बीच हाल ही में विधायक के जिले में एक महिला आईएएस तबादले में पहुंची. जाहिर है विधायक की मंशा अपनी हेकड़ी जमाने की रही होगी, उन्होंने महिला आईएएस को फोन घनघना दिया. पहले रौब जमाया फिर काम बताया. महिला आईएएस तेजतर्रार निकली. ना रौब काम आया, ना खौफ बना. उल्टे महिला आईएएस ने नसीहत देते हुए दो टूक कह दिया, दोबारा फोन मत करना. अब विधायक की बेचारगी ऐसी है कि महिला आईएएस से मिली नसीहत ना उगल पा रहे हैं, ना पचा पा रहे हैं. चुनाव करीब है. शायद विधायक यह समझ रहे हैं कि शालीनता बरतने में ही समझदारी है. 

‘नमस्ते’ नेताजी

जनता दरबार में नेता को ‘गरीब’ दिखते रहना चाहिए. नेता की विलासिता बाहर आई, तो सबक सिखाने में जनता कहां पीछे रहेगी. पिछली सरकार के नेता-मंत्री इसका उदाहरण है. बहरहाल एक सीनियर विधायक हैं, जो एक बोर्ड के चेयरमेन भी है. बड़ी सादगी के लिए पहचाने जाते हैं. स्कूटर की सवारी करते हैं. चौक-चौराहों पर बैठकर हर गुजरने वाले को नमस्ते-सलाम करना बिल्कुल भी नहीं भूलते. इनकी इन्हीं खूबियों की वजह से शहर के एक चौक का नाम भी नमस्ते चौक रख दिया गया है. इतिहास ऐसे नेताओं को कभी नहीं भूलता. दशक बाद जब कोई चौक से गुजरेगा, तो यकीनन ये सवाल मन में कौंधता मिलेगा कि आखिर इस चौक को लोग नमस्ते चौक क्यों कहते हैं. खैर, हकीकत ये है कि स्कूटर की सवारी जनता जनार्दन को जमीनी दिखाने की एक कवायद भर है. जैसे ही विधायक को एक बोर्ड की चेयरमैनशिप मिली, नेता जी अपने एक्चुअल किरदार में आ गए. उनकी अपनी ही पार्टी में अब लोग इस पर चुटकी लेकर नाक भौं सिकोड़ने लगे हैं कि स्कूटर तो बस सादगी का बहाना है, असलियत सुविधाओं को भोगना है. अब बोर्ड चेयरमेन हैं, तो एक गाड़ी मिलेगी ही, मगर चर्चा है कि बोर्ड की एक नहीं चार गाड़ियां नेता के इस्तेमाल के लिए आरक्षित हैं. अब स्कूटर पर घूमने वाले नेता को भला चार-चार गाड़ियों की क्या जरूरत. लेकिन यहां सरकारी सुविधाओं को सिर्फ लेना नहीं है, जी भर दुहना है. आखिरी बूंद तक निचोड़ना है, तब जाकर नेताओं के भोग विलास वाली सैकड़ों सालों से चली आ रही गौरवशाली परंपरा का हिस्सा बन सकेंगे. नमस्ते-नमस्ते करते जीवन भर धूल थोड़े ही फांकना है. नेता जी जमीन पर थे, तो थोड़े जमीनी थे, जमीन से थोड़ा ऊपर उठे हैं, तो थोड़ा प्रैक्टिकल हो गए हैं. 

जंगलराज

राज्य प्रशासनिक सेवा के नतीजे जारी कर पीएससी सवालों के घेरे में है. आरोप है कि जिन पर पारदर्शिता के साथ नियुक्ति करने की जिम्मेदारी थी, उन्हीं चेहरों ने खूब भाई-भतीजावाद चलाया. अपनों की ही धड़ाधड़ नियुक्ति कर दी. बहरहाल यह मामला अब कोर्ट का रुख अख्तियार करता दिख रहा है. खैर, इस मामले से परे, लेकिन इससे ही जुड़ी दूसरी बात. कुछ साल पहले एक विभाग में अफसरों के कुछ पद निकाले गए थे. पहले कोरोना ने और बाद में आरक्षण विवाद ने भर्ती रोक दी. अब जाकर भर्ती प्रक्रिया हुई है. इस भर्ती को लेकर एक चौंकाने वाली चर्चा सुनी गई है. एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से आई जानकारी कहती है कि इस विभाग में अफसरों की भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद से ही सौदे का खेल शुरू हो गया. चर्चा में यह सुना गया है कि भर्ती परीक्षा के पहले ही बड़ा सौदा कर लिया गया. जिन अभ्यर्थियों का चयन किया जाना है, उन्हें पहले ही प्रश्न पत्र दे दिए गए, जिससे लिखित परीक्षा में किसी तरह की रुकावट ना आए. इंटरव्यू पहुंचने के बाद की स्थिति आला अफसरों के हाथों थी ही. सुना यह भी गया है कि कुछ लोगों को पड़ोसी राज्य के एक बड़े शहर ले जाकर दो हफ्ते रखा गया. वहां उनकी तैयारी कराई गई. बहरहाल अब सवाल खड़ा हो रहा है कि जब चयनित अभ्यर्थियों की सूची आएगी, तब किन-किन लोगों का चयन होगा. राज्य प्रशासनिक सेवा के नतीजों की तरह कहीं इसमें भी सवाल ना उठ जाएं? दावा किया जा रहा है कि परीक्षा लेने वाली संस्था के अध्यक्ष के मातहत एक कर्मचारी का फोन खंगाला जाए, तो पूरा ब्यौरा मिल जाएगा. गरीब तबके के अभ्यर्थी कहने लगे हैं कि यहां गजब ‘जंगलराज’ है. अभ्यर्थी कहते हैं कि प्यून की भर्ती के लिए दस लाख की बोली लग रही है. 

चुनावी बाजार

चुनाव अब एक बड़ा ‘बाजार’ बन गया है. राजनीतिक दल ग्राहक हैं और कारपोरेट कंपनियां सर्विस प्रोवाइडर. सैकड़ों करोड़ रुपए लेकर ये कंपनियां वोटरों के बीच परसेप्शन डेवलप करने का बड़ा खेल खेलती है. यही परसेप्शन ईवीएम पर डाले जाने वाले वोट को प्रभावित करता है. छत्तीसगढ़ में होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस और बीजेपी ने ऐसी ही कई कंपनियों के साथ डील कर ली है. जमीन पर चुनाव लड़ती राजनीतिक पार्टियां दिखेंगी. पर्दे के पीछे समीकरण बनाने का काम इन कंपनियों के हिस्से होगा. एक पॉलिटिकल पावर हाउस की भूमिका में कंपनी काम करेगी. पूरा का पूरा चुनावी प्रबंधन इन कंपनियों के हाथों होगा. चर्चा है कि कर्नाटक में कांग्रेस को किला फतह कराने वाली कंपनी इंक्लूसिव माइंड छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के लिए काम करेगी.  इंक्लूसिव माइंड के प्रमुख सुनील कनुगोलू हैं, जो प्रशांत किशोर यानी पीके के पूर्व सहयोगी रह चुके हैं. इस कंपनी ने हिमाचल प्रदेश चुनाव में भी कांग्रेस के लिए काम किया था. छत्तीसगढ़ के साथ-साथ मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी यही कंपनी कांग्रेस को जिताने समीकरणों का खेल रचती दिखेगी. चर्चा यह भी है कि सिर्फ इंक्लूसिव माइंड ही नहीं बल्कि पॉलिटिकल इंटेलिजेंस प्रोवाइडर कंपनी मैट्रिक्स इंटेलिजेंस और चुनाव प्रबंधन संभालने वाली कंपनी रिफाई कंसल्टिंग भी कांग्रेस के लिए राज्य में काम कर सकती है. इधर छत्तीसगढ़ में बीजेपी को दिल्ली की कंपनी वराही एनालिटिक्स की सहायता मिलने की खबर है. इस कंपनी ने कर्नाटक चुनाव में भी बीजेपी के लिए काम किया था. सुनते हैं कि इस कंपनी की सीधी रिपोर्ट संगठन महामंत्री बी एल संतोष को जाती है. वहीं कहा जा रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सीधी रिपोर्ट करने वाली कंपनी नेशन विथ नमो भी बीजेपी के लिए काम कर सकती है. साल 2008 में ब्रिटिश जर्नलिस्ट जेम्स कार्डिंग की एक किताब आई थी ‘अल्फा डाॅग्स’. अपनी इस किताब में जेम्स कार्डिंग बताते हैं कि ‘बैकरूम स्ट्रेटजिस्ट’ के रूप में ऐसी कंपनियां कैसे पॉलिटिकल पावर हाउस बनकर काम करती हैं. नेताओं को पढ़ने लिखने में दिलचस्पी कहां. जेम्स कार्डिंग की किताब ही पढ़ लिया जाए, तो परसेप्शन बनाने का खेल कैसे खेला जाता है, यह समझ आ जाएगा.

बीआरएस की एंट्री !

बीआरएस प्रमुख केसीआर के साथ अमित जोगी की फोटो ने राज्य में सियासी बातचीत का एक मुद्दा दे दिया. चर्चा जोरों से चल पड़ी कि क्या अमित जोगी जेसीसी का विलय बीआरएस में करने जा रहे हैं. मुमकिन है भी. जेसीसी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. संजीवनी बूटी की जरूरत तो है ही. फिलहाल कांग्रेस की हांडी पर जेसीसी की दाल गलती नहीं दिख रही. जेसीसी को एक कंधा चाहिए. वही कंधा बीआरएस बन सकती है. बीआरएस राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद तेलंगाना के बाहर दूसरे राज्यों में जमीन ढूंढ रही है. छत्तीसगढ़ में जेसीसी में थोड़ी बहुत संभावना दिख रही होगी, शायद तभी केसीआर इस ‘सौदे’ के लिए आगे बढ़े होंगे. सियासी पंडित कहते हैं कि यदि जेसीसी का बीआरएस में विलय या गठबंधन होता है, तो कोंटा और बीजापुर जैसे सीमावर्ती विधानसभा सीट पर आंशिक असर पड़ सकता है. बहरहाल अगर ऐसा हुआ, तो ‘जोगी’ को सबसे बड़ा फायदा क्या होगा? इस सवाल के जवाब की आखिरी सीमा यही दिखती है कि जोगी को आने वाले सालों में जमे रहने के लिए जमकर फाइनेंशियल सपोर्ट मिलेगा. बीआरएस के पास पैसे का पेड़ है. कोई कमी नहीं. 

तबादले

चुनाव आयोग ने छत्तीसगढ़ चुनाव का बिगुल फूंक दिया है. मुख्य सचिव को चिट्ठी लिखकर निर्देश दिया गया है कि तीन साल से एक ही जगह जमे अधिकारी-कर्मचारियों का तबादला कर दिया जाए. जाहिर है, आने वाले दिनों में जमकर तबादले होंगे. इन तबादलों के बीच खबर ये भी है कि जल्द ही कई जिलों के कलेक्टर इधर-उधर किए जाएंगे. एसपी तबादले के बाद कलेक्टरों की सूची आनी बाकी है. आईपीएस में भी आईजी स्तर के अधिकारियों के तबादले होंगे. बस्तर, सरगुजा, बिलासपुर बदलाव की जद में आ सकता है.